घोलतीर के पास हुए भीषण हादसे के बाद जहां प्रशासन और आपदा राहत दल बचाव कार्य में जुटे थे, वहीं स्थानीय ग्रामीणों ने अपनी जान की परवाह किए बगैर अदम्य साहस का परिचय दिया। बिना किसी विशेष उपकरण या संसाधनों के, स्थानीय युवा खाई में उतरे और घायलों को बचाने के लिए अथक प्रयास किए।
उन्होंने एनडीआरएफ, एसडीआरएफ सहित अन्य जवानों का भी रेस्क्यू ऑपरेशन में पूरा सहयोग किया। इन स्थानीय लोगों के साहस और त्वरित कार्रवाई ने कई जिंदगियां बचाने में अहम भूमिका निभाई।
जिस जगह यह हादसा हुआ, वहां सड़क के नीचे सीधे ढलान वाली गहरी खाई है। जैसे ही वाहन सड़क से नीचे खाई में गिरा, कुछ यात्री खिड़कियों के शीशे टूटने से बाहर छिटक गए और जोर-जोर से चिल्लाते हुए मदद मांगने लगे। रोने-चीखने की आवाज सुनते ही स्थानीय लोग तुरंत मौके पर पहुंच गए।
अलकनंदा नदी के दूसरे छोर पर बसे भटवाड़ी गांव के निवासी और घटना के प्रत्यक्षदर्शी शिक्षक सतेंद्र सिंह भंडारी ने बताया कि वह पैदल मार्ग से घोलतीर जा रहे थे, तभी वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
हादसा होता देख उन्होंने बिना देर किए आपदा प्रबंधन अधिकारी से संपर्क कर घटना की जानकारी दी और स्वयं भी कोठगी झूला पुल के दूसरी छोर से पगडंडी के सहारे सीधे घटनास्थल पर पहुंच गए। उन्होंने बताया कि घायलों में कुछ को गंभीर चोटें आई थीं।
दो बच्चों सहित कुछ महिलाओं को कम चोटें थीं, पर वे दर्द से बिलख-बिलख कर रो रहे थे। सतेंद्र ने बताया कि स्थानीय अन्य युवाओं और व्यापारियों ने भी घायलों को सड़क तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। साथ ही उन्होंने एनडीआरएफ, आईटीबीपी, सेना, फायर और पुलिस के रेस्क्यू ऑपरेशन पूरा होने तक लगातार सहयोग किया।
रेलवे परियोजना में कार्यरत वीरेंद्र सिंह रावत ने बताया कि वह सुबह अपनी ड्यूटी पर जा रहे थे, तभी उन्हें फोन पर एक यात्री वाहन के दुर्घटनाग्रस्त होने की सूचना मिली। वह भी तुरंत घटनास्थल की ओर दौड़ पड़े।
उन्होंने बताया कि सबसे पहले उन्होंने एक घायल महिला को बचाकर सड़क तक पहुंचाया। इसके बाद उन्होंने अन्य लोगों के साथ मिलकर सात लोगों का रेस्क्यू किया। उन्हें एक खून से लथपथ शव भी मिला। स्थानीय युवा गौरव चौधरी ने बताया कि जैसे ही उन्हें खबर मिली कि हादसा हो गया है, वह अन्य लोगों के साथ दौड़ते हुए मौके पर पहुंचे।