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लोकसभा चुनाव: बुंदेलखंड में आसान नहीं डगर कांग्रेस की – अरुण पटेल

अरूण पटेल

बुंदेलखंड अंचल में पड़ने वाले चार लोकसभा क्षेत्रों सागर, टीकमगढ़, दमोह और खजुराहो में लोकसभा चुनाव को अभी तक के चुनावी इतिहास से जोड़कर देखा जाए तो एक-दो अपवादों को छोड़कर नब्बे के दशक से आज तक कभी कांग्रेस या समाजवादियों के लिए उर्वरा रही यहां की जमीन धीरे-धीरे कांग्रेस के लिए बंजर होती गयी जबकि भारतीय जनता पार्टी ने यहां आहिस्ता-आहिस्ता अपने पैर मजबूती से जमा लिये हैं। ताजा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को अपेक्षा से अधिक इस अंचल में सफलता मिली लेकिन लोकसभा चुनाव की दृष्टि से देखा जाए तो इन सीटों पर कांग्रेस के लिए डगर आसान नहीं रही है। उसे यदि डगर आसान बनाना है तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और मुख्यमंत्री कमलनाथ को कांग्रेस की राह में अभी तक बिछे उन कांटों को पहले छांटना होगा जो पार्टी को चुनावों में चुभन का अहसास कराते रहते हैं।

सागर पर चढ़ा भगवा रंग

सागर लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व इस समय पूर्व समाजवादी नेता और बाद में भाजपाई हुए लक्ष्मीनारायण यादव कर रहे हैं। यादव ने पिछले चुनाव में कुल 9 लाख 76 हजार 629 मतों में से 4 लाख 82 हजार 580 मत प्राप्त कर कांग्रेस के गोविंद सिंह राजपूत पर अच्छी खासी बढ़त हासिल की थी। यादव को 54.11 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे। कांग्रेस के गोविंद सिंह राजपूत को 3 लाख 96 हजार 244 मत मिले थे जो कि 40.57 प्रतिशत थे। वे 1 लाख 20 हजार 792 मतों के अन्तर से हार गये। ताजा विधानसभा चुनाव में राजपूत ने मौजूदा सांसद लक्ष्मीनारायण यादव के बेटे सुधीर यादव को भारी मतों से पराजित किया और वर्तमान में वे कमलनाथ मंत्रिमंडल में राजस्व जैसे महत्वपूर्ण विभाग के मंत्री हैं।सागर लोकसभा सीट भाजपा के मजबूत भगवाई किले में तब्दील हो चुकी है। इस सीट पर पिछले छह लोकसभा चुनावों से उसका ही कब्जा रहा है और इससे पूर्व आखिरी बार 1991 में यह सीट उस समय कांग्रेस के पाले में गयी थी जब उसके उम्मीदवार आनंद अहिरवार ने भाजपा के रामप्रसाद अहिरवार को हराया था। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित यह लोकसभा सीट 2009 से सामान्य सीट हो गयी है और अब इसमें बुंदेलखंड के अलावा मध्यप्रदेश के पूर्व घटक रहे मध्यभारत की भी तीन विधानसभा सीटें शामिल हो गयी हैं और इन तीनों में भी भाजपा का अच्छा असर रहा है। 2014 का लोकसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा गया था और उस समय केवल सुरखी विधानसभा क्षेत्र में ही कांग्रेस को बढ़त मिली थी, अन्य सात विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा ने बढ़त ली थी। 2018 के विधानसभा चुनाव में कमोवेश हालात जस के तस हैं, सुरखी को छोड़कर अन्य क्षेत्रों में भाजपा विधायक ही विजयी रहे हैं।

टीकमगढ़ में कांटे की टक्कर 

टीकमगढ लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व इस समय डॉ. वीरेंद्र कुमार खटिक कर रहे हैं। 2009 से यह लोकसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गया है। उत्तरप्रदेश की सीमा से लगे इस क्षेत्र में तीसरी ताकत के रुप में कहीं-कहीं बहुजन समाज पार्टी एवं समाजवादी पार्टी का भी असर है इसलिए वह भी चुनाव परिणामों पर असर डालने की क्षमता रखती हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के डॉ. वीरेन्द्र कुमार खटिक को कुल 55.20 प्रतिशत यानी 4 लाख 22 हजार 979 मत प्राप्त हुए जबकि कांग्रेस के डॉ. कमलेश वर्मा को महज 27.96 प्रतिशत यानी 2 लाख 14 हजार 248 मत ही मिल पाये और वे 2 लाख 8 हजार 731 मतों के भारी अन्तर से चुनाव हार गये। इस चुनाव में आठों विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा उम्मीदवार को कांग्रेस प्रत्याशी पर अच्छी खासी बढ़त मिली थी जबकि हाल के विधानसभा चुनाव में तीन कांग्रेस और एक समाजवादी पार्टी का विधायक सफल रहा जो कि कमलनाथ सरकार को समर्थन दे रहा है। इस प्रकार इस लोकसभा क्षेत्र में इस बार चुनावी लड़ाई कांटे की हो सकती है। देखने वाली बात यही होगी कि क्या कांग्रेस यहां जीत दर्ज करा पायेगी। इस क्षेत्र में केंद्रीय मंत्री और झांसी की लोकसभा सदस्य तथा प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती का भी अच्छा खासा प्रभाव है।

पसोपस में फंसा दमोह

दमोह लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही चुनाव जीतने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना होगा क्योंकि यहां भाजपा में काफी गुंटबंदी है। भाजपा के एक बड़े नेता और कई बार लोकसभा व विधानसभा के सदस्य रहे डॉ. रामकृष्ण कुसमरिया ने भाजपा से विद्रोह कर दिया है और कांग्रेस का दामन थाम लिया है। प्रहलाद सिंह पटेल ने कई लोकसभा चुनाव जीते हैं लेकिन सामन्यत: क्षेत्र बदल-बदल कर। एक बार वे छिंदवाड़ा में कमलनाथ को चुनौती देने गये थे लेकिन उस चुनाव में कमलनाथ की जीत का अन्तर तो उन्होंने हजारों में ला दिया था लेकिन स्वयं चुनाव जीत नहीं पाये थे। भाजपा ने दमोह में पुन: पटेल को ही उम्मीदवार घोषित किया है। मोदी लहर में हुए 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रहलाद सिंह पटेल को 5 लाख 13 हजार 79 मत मिले जो कि 56.25 प्रतिशत थे। कांग्रेस के महेंद्र प्रताप सिंह चौधरी को 2 लाख 99 हजार 780 मत मिले थे जो कि 32.87 प्रतिशत थे। पटेल 2 लाख 13 हजार 299 मतों के अन्तर से यह चुनाव जीते थे। यह पूरा संसदीय क्षेत्र बुंदेलखंड अंचल में ही आता है और 2014 के लोकसभा चुनाव में इस क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले आठों विधानसभा क्षेत्रों में पटेल को कांग्रेस प्रत्याशी पर अच्छी खासी बढ़त मिली थी लेकिन ताजा विधानसभा चुनाव में परिदृश्य बदल गया है और अब आठ में से चार विधायक कांग्रेस के हैं और एक विधायक बहुजन समाज पार्टी का तथा भाजपा के खाते में केवल तीन सीटें आई हैं।

किस पर भारी पड़ेगा खजुराहो

खजुराहो लोकसभा क्षेत्र बुंदेलखंड के अलावा परिसीमन के बाद महाकौशल अंचल तक फैल गया है और अब पांच विधानसभा क्षेत्र बुंदेलखंड और तीन विधानसभा क्षेत्र महाकौशल अंचल के इसमें आते हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में जीते भाजपा उम्मीदवार नागेंद्र सिंह अब विधायक बन चुके हैं। वैसे तो खजुराहो सीट मूलत: बुंदेलखंड अंचल की मानी जाती है लेकिन इसकी भौगोलिक स्थिति के कारण विंध्य व महाकौशल अंचल की राजनीति का भी कुछ न कुछ असर इस पर देखने को मिलता है। यह सीट प्रदेश की एक अहम लोकसभा सीट रही है जिसका प्रतिनिधित्व कांग्रेस की विद्यावती चतुर्वेदी से लेकर भाजपा नेत्री उमा भारती तक कर चुकी हैं, लेकिन जब उमा भारती चुनाव लड़ने भोपाल चली गयी थीं तो उस समय लोकसभा चुनाव कांग्रेस के सत्यव्रत चतुर्वेदी ने जीत लिया था। खजुराहो सीट से एक बार उमा भारती भाजपा प्रत्याशी के रुप में लोकसभा चुनाव हार भी चुकी हैं। यदि पुराने इतिहास को देखा जाए तो भाजपा को यहां सात बार चुनाव में सफलता मिली है तो छ: बार कांग्रेस ने भी जीत दर्ज कराई है, लेकिन बीते तीन चुनावों से इस सीट पर भाजपा ही जीतती आ रही है। खजुराहो में पिछला लोकसभा चुनाव नागेंद्र सिंह ने भारी मतों से जीता था। उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार राजा पटेरिया को 2 लाख 46 हजार 945 मतों के अन्तर से हराया था। नागेंद्र सिंह को 4 लाख 74 हजार 966 मत मिले थे जो कि 54.31 प्रतिशत थे जबकि कांग्रेस के राजा पटेरिया को 2 लाख 27 हजार 476 मत ही मिल पाये जो कि 26.01 प्रतिशत था। 2014 के लोकसभा चुनाव में हर विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस उम्मीदवार पर भाजपा को अच्छी खासी बढ़त मिली थी जबकि हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में दो विधायक कांग्रेस के और शेष भाजपा के हैं। इस लोकसभा सीट के कुछ विधानसभा क्षेत्रों में बहुजन समाज पार्टी भी अपना प्रभाव रखती है। विजयराघवगढ़ के वर्तमान भाजपा विधायक संजय पाठक हैं जो कि पिछले लोकसभा चुनाव के समय कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गये थे। उसके बाद उन्होंने एक उपचुनाव और एक विधानसभा चुनाव भाजपा टिकिट पर जीता। उनके पिता कांग्रेसी विधायक रहे और दिग्विजय सिंह मंत्रिमंडल में मंत्री भी थे। इस क्षेत्र में भी दिलचस्प चुनावी मुकाबला होने की संभावना है।

और यह भी

पिछले कुछ समय से चुनावों में जुमलों और नारों का अपना अलग ही नजारा देखने को मिला है। लोकसभा चुनाव के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने एक नारा दिया है कि ‘पहले मामा को रवाना किया अब चौकीदार की बारी है।‘ उनका इशारा मामा यानी शिवराज सिंह चौहान और चौकीदार यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर था।

 

सम्प्रति-लेखक श्री अरूण पटेल अमृत संदेश रायपुर के कार्यकारी सम्पादक एवं भोपाल के दैनिक सुबह सबेरे के प्रबन्ध सम्पादक है।