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बहन मायावती ने अजीत जोगी को दिया धीरे से जोर का झटका – अरुण पटेल

अरूण पटेल

छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री रहे अजीत जोगी को लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती ने धीरे से जोर का झटका दे दिया है और अब हालात ऐसे हो गए कि जोगी को अपने समर्थकों को पार्टी में बनाये रखना बहुत मुश्किल हो गया है। एक-एक कर उनकी पार्टी के अनेक लोग कांग्रेस में जा रहे हैं और जो कांग्रेस में नहीं गए उनमें से कुछ बड़े चेहरे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवारों को समर्थन दे रहे हैं। ‘चौबे जी गये छब्बे जी बनने, दुबे जी बनकर रह गये’ यह कहावत आज के हालात में जोगी पर पूरी तरह फिट बैठ रही है। 2018 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में जोगी ने मुख्यमंत्री बनने या सत्ता की चाबी अपनी मुट्ठी में बंद करने की लालसा में बसपा से तालमेल कर लिया था। मायावती की पार्टी के लिए 35 और 55 सीटें जोगी ने अपनी पार्टी के लिए रखीं। उन्हें भरोसा था कि छत्तीसगढ़ के लोग उन्हें पसंद करते हैं और उनकी पार्टी को अच्छा-खासा समर्थन मिलेगा लेकिन चुनाव नतीजों ने जोगी व मायावती के मंसूबों पर पानी फेर दिया। उन्हें त्रिशंकु विधानसभा की उम्मीद थी लेकिन कांग्रेस ने 68 सीटें जीतकर भाजपा को भी इनके साथ चौंका दिया।

विधानसभा चुनाव में न तो सत्ता की चाबी उनके हाथ में रही और न ही विपक्ष की कोई प्रभावी भूमिका। जोगी की पार्टी ने पांच और बसपा ने दो सीटें जीतीं। धीरे-धीरे जोगी की पार्टी के नेता अपनी मूल पार्टी कांग्रेस में जाने लगे। जब कांग्रेस कार्यकर्ताओं में विरोध होने लगा तब मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल तथा वरिष्ठ मंत्री टीएस सिंहदेव को कहना पड़ा कि स्थानीय इकाइयों को विश्‍वास में लेकर ही कांग्रेस की सदस्यता दी जाएगी, लेकिन यदि कोई बाहर रहकर पार्टी का समर्थन कर रहा है तो उसे कैसे रोका जा सकता है। मायावती राष्ट्रीय राजनीति करना चाहती हैं इसीलिए वे पूरी लोकसभा की 11 सीटें लड़ रही हैं। उन्होंने अपने चुनाव पूर्व गठबंधन के बड़े सहयोगी जोगी को विश्‍वास तक में नहीं लिया और एकतरफा सभी लोकसभा के निर्वाचन क्षेत्रों में अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी। जोगी स्वयं लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहते थे ताकि राष्ट्रीय राजनीति में कोई महत्वपूर्ण भ्ाूमिका अदा कर सकें, लेकिन उनके अरमानों पर पानी फिर गया क्योंकि बहनजी ने एक भी सीट नहीं छोड़ी। छत्तीसगढ़ की राजनीति में धीरे-धीरे जोगी हाशिए पर जाते नजर आने लगे हैं क्योंकि उनके संगी-साथी जो विधायक नहीं हैं पार्टी से किनारा कर रहे हैं। दलबदल कानून के चलते इक्का-दुक्का विधायक पार्टी नहीं छोड़ सकते, लेकिन सत्ताधारी दल से गलबहियां करने से किसी को नहीं रोका जा सकता। जोगी परिवार से उनकी बहू ॠचा जोगी ने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन वे हार गयीं, अब जोगी दम्पत्ति यानी वे और उनकी पत्नी डॉ. रेणु जोगी विधायक हैं।

मायावती ने उनके साथ जैस व्यवहार किया उसकी पीड़ा जोगी छिपा भी नहीं रहे। उन्होंने कहा कि जांजगीर को छोड़कर कहीं भी बहुजन समाज पार्टी ने मजबूत प्रत्याशी नहीं उतारे है। जिन्हें मैदान में उतारा गया उनसे अधिक मजबूत जीतने वाले चेहरे भी मौजूद थे यानी जोगी के मन की यह पीड़ा उजागर हो रही है कि मायावती ने प्रत्याशी घोषित करते समय उनसे पूछा भी नहीं और उनके लिए एक भी सीट नहीं छोड़ी। रायपुर से बसपा के लोकसभा प्रत्याशी ने तो अपना समर्थन कांग्रेस उम्मीदवार को देते हुए कांग्रेस का दामन थाम लिया। मुख्यमंत्री बघेल ने साफतौर पर कहा कि जोगी के लिए कांग्रेस के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं। वैसे उनका यह तर्क वास्तविकता के धरातल पर सही उतरा है कि जोगी के कांग्रेस से अलग होने पर कांग्रेस कमजोर होने की जगह अधिक मजबूत होगी। कांग्रेस का एक धड़ा हमेशा शिकायत करता रहा था कि कांग्रेस को कोई और नहीं जोगी ही हराते हैं और जब तक वे कांग्रेस के साथ रहेंगे, कांग्रेस की सरकार नहीं बन पायेगी। यह एक संयोग ही है कि विधानसभा के चुनावी नतीजों के बाद बघेल का तर्क शत-प्रतिशत सही निकला और कांग्रेस ने 68 सीटें जीत लीं। अब यह तो बघेल या जोगी ही बता सकते हैं कि एकतरफा कांग्रेस ने जोगी के लिए दरवाजे बंद कर दिए या जोगी ने वापस आने के संकेत दिए हैं। जोगी ने सार्वजनिक तौर पर केवल इतना कहा कि कांग्रेस की और उनकी विचारधारा एक है और भाजपा साम्प्रदायिक पार्टी है लेकिन उनकी पार्टी व दोनों में अन्तर यह है कि वे दोनों राष्ट्रीय पार्टियां हैं और उनकी पार्टी क्षेत्रीय पार्टी है। इसका जो जैसा चाहे अर्थ निकालने के लिए स्वतंत्र है।

 

सम्प्रति-लेखक श्री अरूण पटेल अमृत संदेश रायपुर के कार्यकारी सम्पादक एवं भोपाल के दैनिक सुबह सबेरे के प्रबन्ध सम्पादक है।