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मुखर मोदी भक्तों और मौन विरोधियों के बीच कड़ा मुकाबला – अरुण पटेल

अरूण पटेल

लोकसभा का आम चुनाव पूरे देश सहित मध्यप्रदेश में भी मुखर मोदी भक्तों और मौन मोदी विरोधियों के बीच सिमट कर रह गया है, इसमें जिसकी संख्या ज्यादा होगी वह चुनावी बाजी जीत लेगा। मुखर मोदी भक्तों ने पूरे चुनावी परिदृश्य को मोदीमय बना देने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है तो वहीं दूसरी ओर धीरे-धीरे मौन मोदी विरोधी एकजुट हो रहे हैं तथा वे जहां जो गैर-भाजपाई उम्मीदवार जीतता हुआ नजर आ रहा है उसके साथ जुड़ रहे हैं। राष्ट्रवाद, सर्जिकल स्ट्राइक और अब मसूद अजहर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कराने में मिली सफलता को लेकर मोदी समर्थक मुखर होकर चुनावी परिदृश्य को एकतरफा बनाने की कोशिश कर रहे हैं। यदि चुनावी परिदृश्य केवल मोदी के चेहरे तक सिमट कर रह गया तो फिर चुनावी नतीजे आश्‍चर्यजनक व चौंकाने वाले हो सकते हैं, अन्यथा मौन मोदी विरोधी भी एकजुट होकर पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। जहां तक मध्यप्रदेश का सवाल है मुख्यमंत्री कमलनाथ के सामने सबसे बड़ी चुनौती कम से कम विधानसभा चुनाव में जिन लोकसभा क्षेत्रों में कांग्रेस को बढ़त मिल गयी उनमें कांग्रेस की जीत बरकरार रखते हुए उसे आगे बढ़ाना है साथ ही भाजपा के इस आत्मविश्‍वास को थामना है जिसके तहत वह मान रही है कि प्रदेश में मोदी के पक्ष में अंडर करेंट चल रहा है। भाजपा का प्रयास एक मजबूर नहीं मजबूत प्रधानमंत्री के नारे पर वोट मांगते हुए पूरे चुनाव को मोदी पर केंद्रित कर देना है तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी हर गरीब परिवार को 72 हजार रुपये साल देने तथा किसानों, युवाओं एवं समाज के अन्य वर्गों के हित में घोषणापत्र में किए गए वायदों पर जोर देते हुए ‘अब होगा न्याय’ नारे पर मतदाताओं से कांग्रेस को जिताने की अपील कर रहे हैं।

मध्यप्रदेश में 6 मई को जिन सात लोकसभा क्षेत्रों में मतदान होना है उनमें टीकमगढ़ दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा, होशंगाबाद और बैतूल शामिल हैं। इनमें से पांच सामान्य और एक-एक अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। फिलहाल सातों सीटों पर भारतीय जनता पार्टी काबिज है इसलिए उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि हर हाल में इन सभी सीटों पर जीत का परचम लहराया जाए। कांग्रेस को इन क्षेत्रों में खोने के लिए कुछ भी नहीं है जबकि पाने की अनन्त संभावनाएं छिपी हुई हैं। देश में पांचवें चरण और मध्यप्रदेश में दूसरे चरण का मतदान होना है वहां अपनी-अपनी पार्टियों के पक्ष में माहौल बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी चुनावी रैलियां कर चुके हैं। प्रादेशिक नेताओं में मुख्यमंत्री एवं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कंधों पर क्रमश: कांग्रेस और भाजपा उम्मीदवारों की चुनावी नैया पार लगाने की अहम जिम्मेदारी है। छिंदवाड़ा में अपने और अपने पुत्र नकुलनाथ के चुनाव से फुरसत पाने के बाद अब कमलनाथ अपनी समूची ताकत प्रदेश में चल रही कथित मोदी लहर को कमजोर करने के लिए और मैदानी स्तर पर कसावट लाने के लिए जी-जान से जुट गए हैं।

सरकार की उपलब्धियों और चुनावी वचनों को जिस तेज गति से कांग्रेस सरकार ने पूरा किया है उस फेहरिस्त को हाथ में थामे कमलनाथ मतदाताओं को भरोसा दिला रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में पार्टी ने जो वायदे किए हैं उन्हें पूरी शिद्दत से पूरा किया जायेगा। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कमलनाथ सरकार पर हर क्षेत्र में विफल रहने और किसानों सहित विभिन्न वर्गों से की गयी वायदाखिलाफी को एक बड़े हथियार के रुप में इस्तेमाल कर रहे हैं। भाजपा की रणनीति यह है कि उम्मीदवार गौण हो जाए और केवल मोदी के चेहरे को आगे कर लोगों से वोट मांगे जायें, जबकि कमलनाथ का प्रयास यह है कि स्थानीय मुद्दों के साथ ही लोगों के जीवन से जुड़ी कठिनाइयों को उभारते हुए उम्मीदवार आधारित चुनाव बनाया जाए। भाजपा अपनी इस कमजोरी को भांप चुकी है कि यदि उम्मीदवारों के चेहरों पर मतदाता वोट डालता है तो फिर उसके ऐसे उम्मीदवारों का जीतना मुश्किल हो जाएगा जो अपेक्षाकृत कमजोर हैं। मध्यप्रदेश में जिन सात क्षेत्रों में दूसरे चरण में मतदान हो रहा है वे राज्य के बुंदेलखंड, विंध्य और महाकौशल अंचल में आते हैं। इन क्षेत्रों में आने वाले 54 विधायकों में से 33 भाजपा, 19 कांग्रेस और एक-एक सपा-बसपा के हैं, इसलिए कांग्रेस के सामने यही चुनौती है कि वह हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव से भी अच्छा प्रदर्शन करे ताकि इनमें से कुछ सीटों पर काबिज हो सके।

भाजपा के गढ़ में सेंध लगाने की कोशिश में कांग्रेस    

दमोह लोकसभा क्षेत्र में सांसद प्रहलाद पटेल का मुकाबला कांग्रेस उम्मीदवार के रुप में पूर्व विधायक और किसान नेता प्रताप सिंह लोधी से हो रहा है। हालांकि भाजपा इस क्षेत्र में जीत के प्रति आश्‍वस्त है लेकिन फिर भी उसके एक बड़े नेता व पूर्व सांसद रामकृष्ण कुसमरिया कांग्रेस के पाले में खड़े हैं। यहां दिलचस्प मुकाबला इस मायने में हो गया है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों के ही उम्मीदवार लोधी जाति के हैं। कांग्रेस की कोशिश है कि लोधी वोट बंट जायें। उसे सबसे बड़ा भरोसा तीन लाख दलित मतदाताओं पर है जबकि बसपा के चित्तू खरे चुनावी मुकाबले को त्रिकोणात्मक बनाने की कोशिश कर रहे हैं और उन्हें उम्मीद है कि दलित मतदाताओं के बीच वे सेंध लगा लेंगे। खजुराहो भाजपा का गढ़ रहा है, इस क्षेत्र में भाजपा को अपनी सीट बचाये रखना उसकी तुलना में संघ के लिए नाक का सवाल बन गया है क्योंकि यहां का उम्मीदवार संघ की पसंद का है। भाजपा ने विष्णुदत्त शर्मा को चुनाव मैदान में उतारा है जो भाजपा के प्रदेश महामंत्री हैं और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को मजबूत बनाने में उनकी अहम भूमिका रही है। भाजपा के इस क्षेत्र में 6 विधायक हैं लेकिन उन्हें पैराशूटर उम्मीदवार माना जा रहा है इसके कारण ही कुछ असंतोष भी है। कांग्रेस राजपरिवार की कविता सिंह को चुनाव मैदान में उतारकर इस सीट को भाजपा से छीनने का पूरा प्रयास कर रही है। समाजवादी पार्टी ने दस्यु ददुआ के बेटे वीरसिंह को चुनाव मैदान में उतारा है, ऐसा माना जा रहा है कि वे भाजपा के मतों में ज्यादा सेंध लगायेंगे।

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित टीकमगढ़ में केंद्रीय मंत्री डॉ. वीरेंद्र सिंह खटीक की राह रोकने के लिए कांग्रेस ने किरण अहिरवार को चुनावी समर में उतारा है। कांग्रेस का चुनावी गणित अहिरवार वोट पर टिका हुआ है तो सपा ने भाजपा के पूर्व विधायक आर.डी. प्रजापति को चुनाव मैदान में उतारकर त्रिकोणीय मुकाबला बना दिया है। इस संसदीय क्षेत्र में समाजवादियों का अपना प्रभाव रहा है और उत्तरप्रदेश की सीमा से सटे होने के कारण चुनावी मुकाबला यहां दिलचस्प हो गया है। प्रजापति चूंकि भाजपा से आये हैं इसलिए सपा को उम्मीद है कि वे अपने साथ कुछ भाजपा के वोट भी लायेंगे ताकि सपा चुनावी मुकाबले में मजबूत स्थिति में नजर आये। रीवा लोकसभा क्षेत्र में भाजपा सांसद जनार्दन मिश्रा फिर से चुनाव मैदान में हैं जिनका मुकाबला कांग्रेस उम्मीदवार सिद्धार्थ तिवारी से हो रहा है जिनके दादा श्रीनिवास तिवारी और पिता सुंदरलाल तिवारी हैं। उन्हें भरोसा है कि परिवार की राजनीतिक विरासत और सहानुभूति का उन्हें फायदा मिलेगा। बसपा के विकास पटेल कांग्रेस भाजपा की लड़ाई में तीसरा कोण बनने की कोशिश कर रहे हैं। सतना में भाजपा के गणेश सिंह चौथी बार लगातार लोकसभा में पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं। तीन लाख ब्राह्मण मतदाता होने के कारण कांग्रेस ने यहां ब्राह्मण कार्ड खेलकर गणेश सिंह की राह में रोड़े अटकाने की कोशिश की है। पिछला लोकसभा चुनाव गणेश सिंह मोदी लहर होते हुए भी 8 हजार 688 मतों के अन्तर से ही जीत पाये थे, इस बार भाजपा के लिए अपनी सीट बचाना आसान नहीं है। होशंगाबाद में भाजपा ने सांसद उदयप्रताप सिंह को फिर से चुनाव मैदान में उतारा है वे तीसरी बार लोकसभा में पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। पहला लोकसभा चुनाव उन्होंने कांग्रेस टिकट पर लड़ा था। उनका मुकाबला कांग्रेस के नये चेहरे दीवान शैलेंद्र सिंह से हो रहा है। देखने की बात यही होगी कि उदयप्रताप के तीसरी बार लोकसभा में पहुंचने का मार्ग शैलेंद्र सिंह रोक पाते हैं या नहीं। अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित बैतूल लोकसभा क्षेत्र में एक प्रकार से सीधा मुकाबला कांग्रेस के रामू टेकाम और भाजपा के दुर्गादास उइके के बीच हो रहा है। 1989 से यहां एक उपचुनाव सहित नौ लोकसभा चुनाव हुए जिनमें से केवल एक में कांग्रेस के असलम शेर खान चुनाव जीते थे, शेष चुनावों में जीत का परचम भाजपा ने ही लहराया। 2009 से यह क्षेत्र अनसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हो गया है। भाजपा के इस मजबूत किले में कांग्रेस सेंध लगाने की कोशिश कर रही है, यहां पर दोनों उम्मीदवार नये हैं। भाजपा की इस क्षेत्र में मजबूत पकड़ है, लेकिन चुनाव परिणाम से ही पता चल सकेगा कि मुख्यमंत्री कमलनाथ ने जिस उम्मीद से नये चेहरे रामू टेकाम पर दांव लगाया है वह जीतने पर सफल हो पाता है या नहीं।

 

सम्प्रति-लेखक श्री अरूण पटेल अमृत संदेश रायपुर के कार्यकारी सम्पादक एवं भोपाल के दैनिक सुबह सबेरे के प्रबन्ध सम्पादक है।