“करत करत अभ्यास के जड़ मति होत सुजान“ यह कहावत ग्वालियर लोकसभा चुनाव में सटीक बैठती दिख रही है। एक लोकसभा उपचुनाव सहित तीन लोकसभा चुनाव लगातार हारने वाले अशोक सिंह पर कांग्रेस ने चौथी बार फिर दांव लगाया है। चुनाव नतीजों से ही यह पता चल सकेगा कि चौथी बार किस्मत आजमा रहे अशोक सिंह लोकसभा पहुंच कर यह सीट कांग्रेस की झोली में डाल पाते हैं नहीं। उनका मुकाबला भाजपा के विवेक नारायण शेजवलकर से हो रहा है। वैसे तो एक प्रकार से 18 कोणीय मुकाबले में सीधी टक्कर कांग्रेस के अशोक सिंह और भाजपा के विवेक नारायण शेजवलकर के बीच ही है लेकिन बसपा की ममता बलवीर सिंह कुशवाहा चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश कर रही हैं। इस क्षेत्र में पहले बहुजन समाज पार्टी का असर रहा है लेकिन धीरे-धीरे यह कम होता चला गया और विधानसभा के हाल ही में हुए चुनाव में बसपा की ताकत यहां और भी कमजोर हो गयी, जबकि 2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा को 76 हजार और 2014 के लोकसभा चुनाव में 67 हजार मत मिले थे।
जहां तक अशोक सिंह का सवाल है उनसे बेहतर कांग्रेस के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था। वे यहां के कद्दावर नेता रहे पूर्व मंत्री राजेंद्र सिंह के बेटे हैं और स्वयं अपने सद्व्यवहार और मिलनसार होने के कारण काफी लोकप्रिय हैं, उन्हें यह गुण विरासत में अपने पिता राजेंद्र सिंह से मिला है। अशोक सिंह की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2007 के लोकसभा उपचुनाव में उन्होंने ग्वालियर राजपरिवार की यशोधरा राजे सिंधिया को जो भाजपा उम्मीदवार के रुप में चुनाव लड़ रही थीं और शिवराज सिंह सरकार में मंत्री थीं, उन्हें कड़ी टक्कर दी। यशोधरा राजे इस चुनाव में केवल 36 हजार 474 मतों के अन्तर से ही चुनाव जीत पाईं। 2009 के आमचुनाव में अशोक सिंह ने उन्हें फिर कड़ी टक्कर दी और यशोधरा राजे का मार्जिन घटकर 26 हजार 591 रह गया। 2014 की प्रचंड मोदी लहर में भाजपा के कद्दावर नेता और उमा भारती, बाबूलाल गौर एवं शिवराज सिंह सरकार में महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे तत्कालीन प्रदेश भाजपा अध्यक्ष तथा वर्तमान में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी 29 हजार 699 मतों के अन्तर से ही चुनाव जीत पाये। ग्वालियर की राजनीति पर ग्वालियर राजपरिवार का गहरा असर रहा है।
भाजपा के विवेक शेजवलकर की राह आसान बनाने के लिए स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ग्वालियर आ चुके हैं तो अशोक सिंह के समर्थन में ग्वालियर में कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया भी दस्तक दे चुके हैं। मुख्यमंत्री कमलनाथ और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी अशोक सिंह के लिए वोट मांगने इस लोकसभा क्षेत्र में आ चुके हैं। ग्वालियर में वैसे भाजपा मजबूत रही है लेकिन यहां एकतरफा चुनाव नतीजे उसके पक्ष में नहीं आये हैं। 1989 से इस क्षेत्र में एक उपचुनाव मिलाकर नौ चुनाव हुए हैं जिनमें से चार माधवराव सिंधिया ने जीते हैं, तीन बार वे कांग्रेस उम्मीदवार के रुप में विजयी हुए तो एक बार 1996 में मध्यप्रदेश विकास कांग्रेस के बैनर तले जीते। बाद में वे फिर कांग्रेस में आ गये। 1999 और 2004 का लोकसभा चुनाव सिंधिया ने गुना से लड़ा, जिसका प्रतिनिधित्व अब उनके बेटे कांग्रेस महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया कर रहे हैं। 1984 के लोकसभा चुनाव में माधवराव सिंधिया ने ग्वालियर में भाजपा उम्मीदवार अटलबिहारी वाजपेयी को लगभग पौने दो लाख मतों के अंतर से पराजित करने में सफलता हासिल की थी। 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के रामसेवक सिंह चुनाव जीते थे, उसके बाद हुए एक उपचुनाव और दो आमचुनावों में भाजपा ने यहां से जीत का परचम लहराया। 2018 के विधानसभा चुनाव में ग्वालियर का राजनीतिक परिदृश्य लगभग पूरी तरह बदल गया और इसके अंतर्गत आने वाले आठ विधानसभा क्षेत्रों में से सात पर कांग्रेस के विधायक एवं एक पर भाजपा का विधायक है। कांग्रेस की स्थिति यहां बहुत मजबूत हो गयी है। मोदी लहर में 2014 का लोकसभा चुनाव काफी कम मतों से जीतने के बाद अब बदली हुई परिस्थितियों में तोमर मुरैना से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। जहां तक भाजपा उम्मीदवार विवेक शेजवलकर का सवाल है उन्होंने हमेशा राजनीति ग्वालियर शहर में की है जबकि अशोक सिंह का ग्वालियर शहर के अलावा अन्य ग्रामीण क्षेत्रों में भी अच्छा-खासा प्रभाव रहा है।ग्वालियर इलाके में महाराष्ट्रीयन मतदाताओं की संख्या काफी अधिक है जिसका फायदा शेजवलकर को मिल सकता है वे ग्वालियर के महापौर हैं और शहर में उनके द्वारा कराये गये विकास कार्यों को वे अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश कर रहे हैं। अशोक सिंह को दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया दोनों का समर्थन मिल रहा है और उन्हें तीन बार चुनाव हारने के बाद भी उम्मीदवारी सिंधिया के समर्थन से ही मिली है। हाल के विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा पर 1 लाख 33 हजार 936 मतों की बढ़त कांग्रेस को हासिल हुई है। अशोक सिंह चुनाव जीतेंगे या नहीं यह इस बात पर निर्भर करेगा कि वे इस मजबूत बढ़त को कितना कामय रख पाते हैं।
सम्प्रति-लेखक श्री अरूण पटेल अमृत संदेश रायपुर के कार्यकारी सम्पादक एवं भोपाल के दैनिक सुबह सबेरे के प्रबन्ध सम्पादक है।