
रायपुर 17 दिसम्बर।भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने छत्तीसगढ़ के राज्य सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों की वित्तीय स्थिति, कॉरपोरेट गवर्नेंस मानकों और परियोजना क्रियान्वयन क्षमता पर गंभीर चिंता जताई है।
कैग ने इसके साथ ही राज्य में स्मार्ट सिटी मिशन के तहत परियोजनाओं के क्रियान्वयन में उल्लेखनीय देरी, कमजोर निगरानी व्यवस्था और उपलब्ध धनराशि के अपर्याप्त उपयोग को भी रेखांकित किया गया है। ये निष्कर्ष मार्च 2023 को समाप्त अवधि के लिए राज्य सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों पर भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की नवीनतम ऑडिट रिपोर्ट में दर्ज हैं, जिसे संविधान के अनुच्छेद 151 के तहत कल 16 दिसंबर को छत्तीसगढ़ विधानसभा में प्रस्तुत किया गया।
रिपोर्ट संख्या 5, वर्ष 2025, में राज्य सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों के कार्य-प्रदर्शन का व्यापक आकलन, छत्तीसगढ़ में स्मार्ट सिटी मिशन पर एक प्रदर्शन ऑडिट तथा छत्तीसगढ़ ग्रामीण आवास निगम लिमिटेड से संबंधित एक अनुपालन ऑडिट शामिल है। रिपोर्ट में वित्तीय प्रदर्शन, कॉरपोरेट गवर्नेंस और परियोजना निष्पादन से जुड़ी प्रणालीगत कमजोरियों को उजागर किया गया है, जिनका सार्वजनिक धन और शहरी विकास पर व्यापक प्रभाव पड़ता है।
नवीनतम अंतिम रूप दिए गए खातों के आधार पर 20 राज्य सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों के विश्लेषण से पता चला कि 31 मार्च 2023 तक छत्तीसगढ़ में कुल 28 राज्य सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम थे, जिनमें 27 सरकारी कंपनियां और एक वैधानिक निगम शामिल था। इनमें से 26 उपक्रम कार्यरत थे, जबकि दो निष्क्रिय थे। कार्यरत उपक्रमों में से चार विद्युत क्षेत्र से संबंधित थे। 30 सितंबर 2023 तक 25 राज्य सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों के 47 खाते लंबित पाए गए, जिनमें कुछ मामलों में छह वर्ष तक की देरी थी।
इन उपक्रमों में इक्विटी और दीर्घकालिक ऋण के रूप में छत्तीसगढ़ सरकार का कुल निवेश ₹7,579.09 करोड़ रहा, जबकि कुल निवेश ₹20,961.61 करोड़ था। दीर्घकालिक ऋणों की बकाया राशि ₹846.06 करोड़ रही और ऋण-इक्विटी अनुपात 1.96 दर्ज किया गया। राज्य सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों का संयुक्त वार्षिक कारोबार ₹42,172.73 करोड़ रहा, जो छत्तीसगढ़ के सकल राज्य घरेलू उत्पाद का 9.22 प्रतिशत है।
जहां दस राज्य सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों ने ₹879.22 करोड़ का लाभ दर्ज किया, वहीं सात उपक्रमों को ₹1,143.10 करोड़ का घाटा हुआ। छत्तीसगढ़ स्टेट पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड और छत्तीसगढ़ स्टेट सिविल सप्लाइज कॉरपोरेशन लिमिटेड सहित पांच प्रमुख उपक्रमों का संचयी घाटा ₹10,252.86 करोड़ तक पहुंच गया। ऑडिट जांच में यह भी सामने आया कि वित्तीय विवरणों में त्रुटियों के कारण लाभ में ₹1,194.79 करोड़ तथा परिसंपत्तियों और देनदारियों में ₹1,231.80 करोड़ का प्रभाव पड़ा।
रिपोर्ट में कॉरपोरेट गवर्नेंस में लगातार चूक को भी उजागर किया गया है। 16 राज्य सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों ने वर्ष में निदेशक मंडल की अनिवार्य चार बैठकें आयोजित नहीं कीं और 12 में से केवल एक उपक्रम में निर्धारित संख्या में स्वतंत्र निदेशक थे। आठ पात्र उपक्रमों में से केवल चार में पूर्णकालिक प्रमुख प्रबंधकीय कार्मिक नियुक्त किए गए, जबकि 12 में से केवल दो उपक्रमों में ऑडिट समिति का गठन किया गया। केवल एक उपक्रम में नामांकन एवं पारिश्रमिक समिति गठित थी और छह पात्र उपक्रमों में से किसी ने भी शिकायत निवारण हेतु सतर्कता तंत्र स्थापित नहीं किया।
भारत सरकार द्वारा जून 2015 में प्रारंभ किए गए स्मार्ट सिटी मिशन के प्रदर्शन ऑडिट में कैग ने बताया कि यह मिशन रायपुर, बिलासपुर और नवा रायपुर में विशेष प्रयोजन वाहनों के माध्यम से लागू किया गया। स्मार्ट सड़कें, भूमिगत विद्युत केबलिंग और एकीकृत कमांड एवं कंट्रोल केंद्र जैसी पहलें किए जाने के बावजूद, परियोजनाओं के क्रियान्वयन की गति धीमी बनी रही।
₹9,627.70 करोड़ की स्वीकृत परियोजना लागत के मुकाबले 2016–17 से 2022–23 के बीच केवल ₹2,644.44 करोड़ के 476 कार्यादेश जारी किए गए, जो कुल अनुमानित लागत का मात्र 27 प्रतिशत है। मार्च 2023 तक इनमें से केवल 62 प्रतिशत कार्य पूर्ण हो पाए और वास्तविक व्यय ₹1,213.12 करोड़ रहा। कार्यादेश जारी करने में देरी, स्थल उपलब्ध कराने में विफलता, कार्यक्षेत्र में बार-बार बदलाव और कमजोर अनुबंध प्रबंधन के कारण प्रगति प्रभावित हुई, जिसके परिणामस्वरूप केंद्र सरकार के फंड में कटौती हुई और राज्य के मिलान अनुदान में भी कमी आई।
ऑडिट में यह भी पाया गया कि कुछ परियोजनाएं अपात्र बोलीदाताओं को प्रदान की गईं, कार्य में देरी पर दंड नहीं लगाया गया अथवा कम लगाया गया और बिना निविदा आमंत्रित किए अतिरिक्त कार्य दिए गए। नवा रायपुर में प्रतिबंधात्मक निविदा शर्तों के कारण बोलीदाताओं की भागीदारी कम रही और 84 प्रतिशत कार्य एक ही ठेकेदार को सौंपे गए। स्मार्ट सिटी मिशन के दिशा-निर्देशों से विचलन के भी मामले सामने आए, जिनमें गैर-तकनीकी परियोजनाओं पर व्यय और निर्धारित क्षेत्र आधारित विकास क्षेत्र से बाहर किए गए कार्य शामिल हैं।
निगरानी तंत्र को भी अप्रभावी पाया गया। राज्य स्तरीय उच्चाधिकार प्राप्त संचालन समिति ने परियोजना प्रस्तावों की स्वीकृति के बाद समीक्षा बैठकें नहीं कीं। स्मार्ट सिटी सलाहकार मंच की बैठकें नियमित रूप से आयोजित नहीं हुईं, तृतीय-पक्ष निगरानी सुनिश्चित नहीं की गई और किसी भी विशेष प्रयोजन वाहन में पूर्णकालिक मुख्य कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति नहीं की गई।
एक अनुपालन ऑडिट में कैग ने यह भी बताया कि छत्तीसगढ़ ग्रामीण आवास निगम लिमिटेड ने ₹55 करोड़ की राशि को ऑटो-स्वीप सुविधा के बिना बचत खाते में जमा कर ₹5.32 करोड़ का ब्याज नुकसान उठाया।
रिपोर्ट में राज्य सरकार को सिफारिश की गई है कि वह घाटे में चल रहे और निष्क्रिय उपक्रमों की कार्यप्रणाली की त्वरित समीक्षा करे, खातों के अंतिम रूप देने के लिए समय-सीमा का सख्ती से पालन सुनिश्चित करे, कॉरपोरेट गवर्नेंस अनुपालन को मजबूत करे, स्मार्ट सिटी विशेष प्रयोजन वाहनों में पूर्णकालिक नेतृत्व की नियुक्ति करे और सार्वजनिक निवेश की सुरक्षा तथा सेवा वितरण में सुधार के लिए सतत राजस्व मॉडल विकसित करे।
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