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हनी ट्रैप कांड और पुरूषवादी समाज – रघु ठाकुर

रघु ठाकुर

पिछले लगभग एक माह से म.प्र. की राजनीति और मीडिया में हनी ट्रैप कांड प्रमुखता पर है, ऐसे कांड का प्रमुखता से होना स्वाभाविक भी है, क्योंकि प्रदेश की राजनीति पर इसके कई प्रकार के प्रभाव संभावित है। हनी ट्रैप कांड जैसे कांड बंधे समाज में एक हलचल पैदा करते है। वैसे यह कोई पहली बार हुआ है, ऐसा नहीं है बल्कि पहले भी देश और दुनिया में ऐसे कई कांड हो चुके है।

म.प्र. में हनी ट्रैप की शुरूआत एक अधिकारी की रिपोर्ट से हुई थी जिससे कई करोड़ रूपये ब्लेक मेलिंग में माँगे गए थे।प्रदेश सरकार ने इसकी जाँच के लिए एस.आई.टी.की घोषणा की और पहले श्री वर्मा को एस.आई.टी का चेयरमेन बनाया गया परन्तु एक दिन बाद ही श्री शर्मा को एस.आई.टी. चीफ बना दिया गया। जब श्री वर्मा ने इंदौर जाकर कागजात संभालना शुरू किया था, तभी उन्हें बदले जाने का समाचार आ गया। शायद वे भी इससे अनभिज्ञ थे। बाद में मीडिया के माध्यम से कुछ ऐसे अपुष्ट समाचार आए कि उन्हें इसलिये बदला गया है, क्योंकि वे इस काम के लिए अनिच्छुक थे। हालांकि श्री वर्मा ने अधिकृत तौर पर ऐसा कोई बयान नहीं दिया है। इस सब घटनाक्रम से लोगों के मन में संदेह होना स्वाभाविक है। क्योंकि सरकार आज एक व्यक्ति को नियुक्त करती है और अगले दिन दूसरे व्यक्ति को इसलिए यह आम धारणा पनपी है कि :-

1.सरकार जाँच पर अपना नियंत्रण चाहती है, ताकि किस दोषी को उजागर करना है किसे छिपाना है, यह उसके नियंत्रण में रहे।

2.जनश्रुति (चर्चा) यह कि, सरकार इस कांड को दबाना चाहती है, इसलिए यह बदलाव किया गया। कुल मिलाकर इतना तो है कि भले ही कोई भी कारण रहा है, परन्तु एस.आई.टी. के मुखिया को बदले जाने से आम लोगों के मन में जाँच के प्रति संदेह पैदा हुआ है, और अब तो ऐसे भी समाचार आए है कि, यह परिवर्तन और नियुक्ति मुख्यमंत्री की जानकारी के बगैर ही हुई है, और संभवतः डी.जी. स्तर पर हुई है। हालांकि यह खबर बहुत विश्वसनीय नहीं लगती है, एक तो इसलिए कि आम लोगों के मन में कमलनाथ सक्षम प्रशासक है और राजनीति के खेले खाए अनुभवी भी इसलिए उनकी राय के बगैर नियुक्ति होना या बदलाव होना लोग सम्भव नहीं मानते। डी.जी.पी. श्री सिंह ने जो संतुलित बयान दिया है, वह भी इस समाचार की पुष्टि नहीं करता। बल्कि ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री और सरकार एस.आई.टी. चीफ के बदलाव से अपनी छवि को बचाने के लिए ऐसे समाचार प्रसारित करा रही है। जो भी हो पर सरकार की कार्यप्रणाली पर आम जन के मन में प्रश्नचिन्ह तो लगा है।

इस कांड के उजागर होने के बाद मीडिया में निरन्तर कुछ लड़़कियों के नाम और चित्र छप रहे है, तथा यह कहा जा रहा हे कि ये कई बड़े उच्च अफसरों और नेताओं को जाल में फंसाती थी। उन्हें किसी स्थान पर बुलाकर चित्र आदि खींचकर उन्हें ब्लेक मैल करती थी। तथा उन लोगों से पैसे और ठेके आदि लेती थी।मैं मानता हूं कि यह आरोप सही होगा परन्तु इस घटनाक्रम के दो और पहलू है, जिन पर आश्चर्यचकित ढंग से कोई चर्चा मीडिया ने नहीं की :-

1.यह लड़कियां जिन लोगों को बुलाती थी वे कोई अनपढ़ गंवार नहीं है, बल्कि वे उच्च शिक्षित आई.ए.एस., आई.पी.एस., अफसर और शिक्षित राजनेता है। क्या यह इतने भोले-भाले है कि इन्हें कोई बुलाए और वह चले जाएंगे ? जो आई.ए.एस., आई.पी.एस., अफसर आम जनता के लिए दर्शन को उपलब्ध नही है, क्या वे ऐसे आसानी से लड़कियों के बुलाने से चले जाएंगे? यह स्पष्ट बात है कि, वे विलासिता के कामों में संलग्न रहे है और अपने पद का दुरूपयोग कर महत्वाकांक्षी होने से या आर्थिक रूप से कमजोर लड़कियों को न केवल फंसाते रहे है, बल्कि उन्हें पथभ्रष्ट करने के मूल अपराधी भी है। परन्तु यह आश्चर्यजनक है, कि उनके नाम व फोटो अखबारों में प्रकाशित नहीं हुए। जबकि वे इन लड़कियों से भी बड़े अपराधी है। यह हमारे पुरूषवादी समाज की पुरूषवादी मानसिकता है, या फिर उच्च पदों पर बैठे लोगों की आंतरिक एकता है, यह खोज का विषय है। होना यह चाहिए था कि इन अधिकारियों को भी सार्वजनिक रूप से कठघरे में खड़ा किया जाता और इन्हें फौरन नौकरी से बाहर किया जाता। क्योंकि यह आशंका भी स्वाभाविक है, कि यह अधिकारी भले आज चर्चा में आयें या इस कांड में फंसे हो परन्तु अपनी वासनाओं की पूर्ति के लिए इसके पहले भी उन्होंने कितने ही घर बर्बाद किए होंगे और कितनी बेटियों को कुपथ पर चलने को ललचाया होगा और उनके जीवन को बिगाड़ा होगा।

 2.देश में पनप रही भोगवादी संस्कृति तथा सत्ता का आकर्षण भी इन घटनाओं का जिम्मेवार है। यह दुर्भाग्य ही है, कि आज राजनीति या  फिल्म व मीडिया से लेकर बाजार और विज्ञापन में सफलता के नाम पर यौन शोषण का प्रचलन कुछ ज्यादा हो चला है। पिछले दिनों ‘‘मी टू’’ अभियान के बाद जिस प्रकार के खुलासे हुए जिनमें श्री अकबर जैसे बड़े पत्रकार और केन्द्रीय मंत्री, व अनेक लोगों के नाम आए थे, ऐसी घटनायें भी इसी भोग सभ्यता की द्योतक है। मैं कभी भी तथाकथित सफलता चाहे वह राजनीतिक हो आर्थिक-प्रशासनिक हो या अन्य प्रकार की, के लिए स्वैच्छिक यौन शोषण की सहमति को उचित नहीं मानूँगा, तथा उसे गंभीर अपराध मानता हूं। ऐसी घटनाओं से विशेषतः राजनीति, पत्रकारिता, फिल्म आदि क्षेत्रों में तो जाने वाली महिलाओं के प्रति सम्मान में एक आम गिरावट आई है। राजनीति में तो आजादी के आंदोलन में याने गाँधी जी के आंदोलन के समय से उच्च परिवारों की महिलाएं शामिल होती रही है, और उन्हें समूचे राष्ट्र और दुनिया में सम्मान के साथ देखा गया क्योंकि महात्मा गाँधी के दौर में यह गिरावट नहीं आई थी। जो लोग राजनीति में आते थे वे त्याग और कुर्बानी के लिए आते थे। पुरूष व महिलाएं अपनी नैतिक मर्यादाओं का पालन करते थे। हजारों महिलाएँ गाँधी जी के आंदोलन में जेलों में रही है जो सर्वसम्माननीय रही हैं। समाजवादी आंदोलन और वामपंथी आंदोलन में भी 40 के दशक से काफी महिलाएं सक्रिय राजनीति में काम करती रही है, और जिन्हें समूचा समाज त्याग की मूर्ति और सम्मान से देखता था व आज भी उसी सम्मान से याद करता है।

राजनीति की यह गिरावट विशेषतःआजादी के बाद शुरू हुई जब स्थायी सत्ता और सत्ता में पतित जमातों को महत्व मिलना शुरू हुआ। यशपाल के उपन्यासों में तो उन्होंने आजादी के बाद की इस गिरावट की शुरूआत का सटीक चित्रण किया था।

इस सारे कांड को समाज और मीडिया केवल लड़कियों पर केन्द्रित किए है। चाहे वह ‘‘हनी ट्रैप’’ का जुमला हो या, ‘‘हुस्न गिरोह’’ का जुमला हो। किसी न किसी प्रकार से केवल लड़की और महिला को ही अपराधी के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। जो लोग बड़े जोर-जोर से इस्लामिक लॉ कानून को महिला विरोधी बताकर चीखते है, अब वहीं लोग खुद भी वही आचरण कर रहे है। हमारा समाज आज भी कितना पुरूषवादी है, इस हनी ट्रैप कांड के बाद मीडिया के समाचारों ने इसे सिद्ध कर दिया है। और महिला राजनेता पत्रकार और अफसर भी इस पर चुप्पी साधे है। वे साहस के साथ इस सच को कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे है कि ब्लेकमेल की अपराधी महिलायें तो है पर जो पुरूष अपने पद और पैसे के लालच में उन महिलाओं को इस कुपथ पर खीचनें और लाने के जिम्मेवार है, वह इनसे भी बड़े गुनहगार है। अगर एक भी अधिकारी या राजनेता की पत्नी जिनके पति का नाम इस कांड में प्रगट या अप्रगट रूप से आया है, हिम्मत के साथ अपने पति पुरूष को कठघरे में खड़ा करती तो वे न केवल अपने नैतिक दायित्व को पूरा करती साथ ही अपने नर-नारी समता के कर्तव्य को भी पूरा करती। परन्तु इन मर्द लोगों की पत्नी महिलाएँ सब जानते हुए भी चुप है और अपने गुनहगार पतियों के अपराधों को छिपा रही है या उनका मूक समर्थन कर रही है।

राजसत्ता तो हनी ट्रैप कांड को ‘‘पोलिटिकल ट्रैप कांड’’ के रूप में देख रही है और वह इन विकृतियों को मिटाने या समाज को सुधारने के बजाय अपने भीतर बाहर के विरोधियों को ब्लेकमेल करने के लिए फाइल तैयार करने की इच्छुक नज़र आ रही है। राजनीतिक ब्लेकमेलिंग और फाइल बनाकर ‘‘फाइल ब्लेकमेलिंग’’ यह भी सत्ता राजनीति का पुराना दस्तूर रहा है जिसे हम पिछले सात दशकों से देखते सुनते रहे है। शायद आज भी सत्ता उसी तरीके पर चल रही है।

कुछ समय बाद मीडिया में भी इस कांड की चर्चा कम हो जाएगी। मीडिया भी छापते-छापते थक जाएगा। सत्ता अपने लक्ष्य हासिल कर चुप्पी साधेगी। और केवल यह लड़कियां समाज में अपराधी और पापिन बनकर घूमेंगी जो अपनी धन लिप्सा व मौज लिप्सा के चक्कर में पड़़कर इस जाल में फंसी। दरअसल यह केवल हनी ट्रैप का मामला मात्र नहीं है, बल्कि यह दुहरा ट्रैपकांड है। पहले ‘‘सत्ता विलास ट्रैप कांड’’ और फिर ‘‘हनी ट्रैप कांड’’ यह दोनों कांड एक ही सिक्के के दो पहलू है। राजनेता, अफसर और धन पति सोचे या न सोचे परन्तु हमारे समाज को तो इन मुद्दों पर सोचना चाहिए क्योंकि पुरूष या महिलाएं कुल मिलाकर समाज के ही अंग है, और इन विकृतियों को अगर रोका नहीं गया तो समूचा समाज ही सड़ेगा।

यह आश्चर्यजनक है कि, इतने लंबे समय से मीडिया ने लगातार लड़कियों के नाम तो छापे है जो अपराध में लिप्त बतायी जाती है। जबकि इन नामों को छापे बगैर भी इस अपराध को उजागर किया जा सकता था। इन्हें कानून क्या सजा देगा-देगा भी या नहीं देगा यह तो भविष्य के गर्भ में है। परन्तु इन्हे समाज में जिस हिकारत से देखा जाएगा वह तो शायद मौत से भी बदतर होगा। जब सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार पीड़ित बच्चियों के नाम व फोटो छापने पर रोक लगाई है तो अच्छा होता कि मीडिया इस पर भी संयम बरतता और महिलाओं के नाम और फाटों के बिना भी समाचार छापता तो बेहतर हेता।

दूसरे जो अधिकारी इस कांड में लिप्त है उन्हें कोई सजा अभी तक नहीं मिली। जबकि जिन उच्च पदों पर वे है और जिस प्रकार का उनका विलासी जीवन और आचरण है वह देश के लिए भी बड़ा खतरा हो सकता है। मान लो कल वे किसी राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े पद पर पहुँच जायें तो क्या अपनी विलासता को पूरा करने के लिए देश की गोपनीय सूचनाओं को नहीं बेच देंगे? ब्रिटेन के प्रोफ्यूमो कांड को याद करे जहाँ ऐसे आरोप में वहाँ के विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री तक को इस्तीफा देने को जनमत ने बाध्य किया था। परन्तु हम भारतवासी है यहां सब चलता है ?

 

सम्प्रति- लेखक श्री रघु ठाकुर देश के जाने माने समाजवादी चिन्तक है।