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नागरिकता-कानून सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का नया औजार है – उमेश त्रिवेदी

                 उमेश त्रिवेदी

पिछले एक पखवाड़े से लोगों के जहन में यह सवाल खदबदा रहा है कि मोदी नागरिकता संशोधन कानून को लेकर सिर्फ मुसलमान ही नहीं, बल्कि पूर्वोत्तर राज्यों के हिन्दू आबादी भी इस कदर दहशदजदा क्यों हैं ? दहशत के दायरे शायद इसलिए बढ़ते जा रहे हैं कि झारखंड की चुनावी सभाओं में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके गृहमंत्री अमित शाह के तेजाबी भाषण उनके इन आश्‍वासनों को लहूलुहान कर रहे हैं कि नए नागरिकता कानून का भारत के मुसलमानों से कुछ भी लेना-देना है। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के आश्‍वासनों की ताकीद करने वाला दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम बुखारी का बयान भी खाली कारतूस सिद्ध हुआ है कि नागरिकता कानून को लेकर मुस्लिमों को खौफजदा नही होना चाहिए। नागरिकता कानून से जुड़ा एक गौरतलब पहलू यह भी है कि खौफ का दायरा सिर्फ हिंदुस्तान के मुसलमानों या पूर्वोत्तर राज्यों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसकी काली छाया ने पाकिस्तान में बसे अल्पसंख्यक हिंदू और सिखों को भी अपने घेरे मे समेट लिया है। वो लोग आशंकित हैं कि पाकिस्तान में इस कानून से पैदा होने वाली पेचीदगियों और संभावित उलझनों के प्रतिशोधी अंगारो में कहीं वो भी न झुलसने लगें।
पाकिस्तान के अल्पसंख्यक हिंदुओं और सिखों के खौफजदा होने का सबूत पाकिस्तान हिन्दू कौंसिल के पैट्रन राजा असर मंगलानी का वह बयान है, जिसमें उन्होने पाकिस्तान के हिंदू-समुदाय की ओर से भारत के ऩए नागरिकता कानून के ताजा प्रारूप को एकमत से खारिज कर दिया है। असर मंगलानी ने कहा है कि भारत के अपने ही संविधान का उल्लंघन करने वाला यह कानून देश को सांप्रदायिक आधार पर बांटने वाला राजनीतिक कृत्य है। यह बयान तुर्की की समाचार एजेंसी के हवाले एक्सप्रेस ट्रिब्यून में प्रकाशित हुआ है। उनका कहना है कि पाकिस्तानी हिन्दुओं को इस कानून के माध्यम से भारतीय नागरिकता अस्वीकार्य है। पाकिस्तान में सिख समुदाय के नेता गोपाल सिंह के बयान का गौरतलब पहलू यह है कि भारत और पाकिस्तान और भारत दोनो जगह सिख-समुदाय अल्पसंख्यक है । इस नाते मैं भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की पीड़ा और भयाक्रांत मनोदशा को भलीभांति समझ सकता हूं। यह कानून उनके लिए उत्पीड़न है। यदि हम पाकिस्तान में हिंदू अल्पसंख्यक नेता असर मंगलानी और सिख-नेता गोपाल सिंह के बयानों को मजबूरी में दिए गए बयान मानकर खारिज करने या उसकी इंटेन्सिटी कम करने की कोशिश करेगें, तो जामा मस्जिद के शाही इमाम बुखारी द्वारा नागरिकता कानून के समर्थन को भी हमें मजबूरी मे दिए गए बयानों की श्रेणी में ही ऱखना होगा, क्योंकि मोदी सरकार के कार्यकाल में भारत मे बहुसंख्यक हिन्दुओं का दबदबा किसी से छिपा नहीं है।
बहरहाल, पाकिस्तान के अल्पसंख्यक हिंदुओं और सिखों द्वारा भारत के नागरिकता-कानून को नकारना अपनी जगह है, लेकिन सवाल यह है कि अपने बलबूते पर लोकसभा में बहुमत हासिल करने वाले देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके गृहमंत्री अमित शाह की भाजपा सरकार की विश्‍वसनीयता का ग्राफ इतना गिरा हुआ क्यों है? अवाम उनकी बातों पर ऐतबार क्यों नही कर रहा है? लोग इस बात से मुतमईन क्यों नही हो पा रहे हैं कि इसका वास्ता भारत मे रहने वाले मुसलमानों की नागरिकता से कतई नहीं है?
भाजपा को लगता है कि उसके राजनीतिक-शस्त्रागार राम मंदिर के बाद हिंद ध्रुवीकरण के लिए नए औजारों की जरूरत होगी। भविष्य में सांप्रदायिकता के नाम पर राजनीतिक ध्रुवीकरण करने के लिए नागरिकता कानून और एनआरसी भाजपा के प्रमुख औजार होगें। नागरिकता कानून के समर्थन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की भाषा भाजपा के सांप्रदायिक-इरादों की पुष्टि भी कर रही है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का यह बयान गौरतलब है कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का फायदा सिर्फ भाजपा को मिलता है। दिल्ली में चुनाव सामने हैं और ब-जरिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण भाजपा इसका फायदा उठाना चाहती है।
झारखंड के चुनाव अभियान में मोदी और अमित शाह के भाषण और भाषा उनके सांप्रदायिक इरादों का खुलासा कर रही है। 15 दिसम्बर 19 को झारखंड के दुमका की रैली में मोदी ने नागरिकता कानून का उल्लेख करते हुए कहा था कि ’ये आग लगाने वाले कौन हैं, ये उनके कपड़ों से ही पता चल जाता है।’ उसके बाद एक सभा में मोदी ने कांग्रेस को चुनौती देते हुए कहा था कि ’यदि दम है तो कांग्रेस पूरे पाकिस्तान को भारत की नागरिकता देने की घोषणा करे।’ मोदी के दोनों भाषण यह खुलासा करने के लिए पर्याप्त हैं कि भाजपा नागरिकता कानून पर किन इरादो के साथ काम कर रही है? राजनीतिक बदनीयती का खुलासा करने के लिए राज्यसभा में बीते सप्ताह सरकार व्दारा दिए गए आंकड़े पर्याप्त हैं। मौजूदा कानूनो के तहत भी अल्पसंख्यकों को लगातार नागरिकता देने काम होता रहा है। गृह मंत्रालय की जानकारी के मुताबिक 2016 से 2018 के दौरान 1988 लोगों को भारत की नागरिकता प्रदान की गई। इनमें 1595 पाकिस्तान से आए प्रवासी थे और 391 अफगानी प्रवासी थे। 2019 में भी 712 पाकिस्तानी 40 अफगान प्रवासियों को भारत की नागरिकता दी गई। सिर्फ समय सीमा 11 साल से घटाकर 5 साल तक घटाकर इस काम को आगे बढ़ाया जा सकता था, लेकिन मोदी-सरकार के इरादे सिर्फ मुसलमानों को अलग करके इसे हिंदू-मुसलमान की राजनीति में तब्दील करना था।

 

सम्प्रति- लेखक श्री उमेश त्रिवेदी भोपाल एवं इन्दौर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है।यह आलेख सुबह सवेरे के 19 दिसम्बर 19  के अंक में प्रकाशित हुआ है।