Friday , March 29 2024
Home / MainSlide / ‘नास्त्रेदमस’ के मोदी और ‘सतयुग’ में ‘सियासी-सत्कर्म’(?) की कहानी – उमेश त्रिवेदी

‘नास्त्रेदमस’ के मोदी और ‘सतयुग’ में ‘सियासी-सत्कर्म’(?) की कहानी – उमेश त्रिवेदी

उमेश त्रिवेदी

विश्‍व-गुरू’ और ’वैश्‍विक आर्थिक शक्ति’ बनने के लिए आतुर भारत के प्रारब्ध को लेकर लोगों के मन में उत्सुकता स्वाभाविक है। इतिहास-भूगोल, वेद-पुराण, भृगु-संहिता, ज्योतिष शास्त्र के साथ पिंजरे में बंद तोता-मैना की प्रश्‍नावलियों तक, महान भारत की तलाश अर्से से जारी है। सोलहवी शताब्दी फ्रांस में जन्मे विश्‍वविख्यात भविष्यवक्ता ’मिशेल दि नास्त्रेदमस’ ने अपनी पुस्तक ’प्रोफेसिस’ के छंदो में भारत के बारे में अप्रतिम घोषणाएं की थीं। बीसवीं सदी में भारत के इटावा जिले के खितौरा गांव में जन्मे संत ’घूरेलालजी शर्मा’ उर्फ ’संत तुलसीदास’ उर्फ ’बाबा जय गुरूदेव’ ने भारत के फलक पर स्वर्णिम रेखाएं खींचते हुए कहा था कि ’ जय गुरूदेव, सतयुग आएगा’। नास्त्रेदमस ने पांच सौ साल पहले अपनी बात कही थी, जबकि बाबा जय गुरूदेव का आव्हान मात्र पचास साल पुराना है।
’धर्म’ आज तक जैसे टीवी चैनल ने 11 फरवरी 2020 को यह प्रसारित किया था कि नास्त्रेदमस ने 465 साल पहले ही दुनिया में कोरोना महामारी फैलने की घोषणा कर दी थी। ’आज तक’ ने भविष्यवाणियां माइक्रोब्लागिंग वेबसाइट के कुछ ब्लॉगर्स के दावे के रूप में की है। इनका कोई पुरावा नहीं है। फिर भी किसी मान्य चैनल पर ऐसे प्रसारण वैज्ञानिकता को चुनौती देते हैं। 16वीं सदी (1503-1566) में फ्रांस में जन्मे नास्त्रेदमस भविष्यवक्ता के साथ ही डॉक्टर और शिक्षक भी थे।
नास्त्रेदमस ने अपनी किताब ’प्रोफेसिस’ के छंदों में भविष्य की घटनाओं का उल्लेख किया है। विज्ञान और तर्क की कसौटियों पर दुनिया की घटनाओं और नास्त्रेदमस के शब्दों के बीच दिखाए गए संबंध काफी हद तक गलत सिद्ध हुए हैं। काल्पनिक व्याख्याओं या गलत अनुवाद के कारण इन्हें सटीक नही माना जा सकता है। वैज्ञानिक धरातल पर नास्त्रेदमस के कथन इतने कमजोर हैं कि उन्हे वास्तविक भविष्य बताने की शक्ति के साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत करना बेकार है।
नास्त्रेदमस के संबंध में यह निष्कर्ष भी गौरतलब है कि उनके व्दारा उदघोषित कुछ घटनाओं की प्रस्तुति जानबूझकर गलत तरीके से की गईं है। कुछ घटनाओं का अनुवाद ही गलत पाया गया है। यह सब कुछ उद्देश्यपूर्वक किया गया है। पांच साल सौ साल पुरानी इन कथित भविष्यवाणियों को वर्तमान में ढालने का शौक हमेशा परवान पर रहता है।
नास्त्रेदमस की भविष्यवाणियों में ’किन्तु-परन्तु’ के मायाजाल के कारण अतिरिक्त स्पष्टीकरण की जरूरत होती है, जबकि बाबा जयगुरूदेव के ’सतयुग’ की घोषणा में साफगोई और स्पष्टता है। नास्त्रेदमस और बाबा जय गुरूदेव की भविष्यवाणियों का काल खंड आगे-पीछे ही चल रहा है। भाजपा का भक्त-समुदाय अभिभूत है। भाजपा नेताओं के साथ ही कतिपय यू-ट्यूब लिंक इस प्रचार मे जुटे हैं कि नास्त्रेदमस के छंदों में भारत के जिस अवतार पुरूष का जिक्र पांच सौ साल पहले हुआ था, वो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के रूप में सामने खड़े हैं। मार्च 2017 में ही भाजपा सांसद किरीट सौमैया ने लोकसभा में कहा था कि नास्त्रेदमस ने भारत में जिस शासक का जिक्र किया था, वह और कोई नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही हैं। सौमैया से पहले तत्कालीन मंत्री किरण रिजिजु ने इस बात को दोहराया था।
नास्त्रेदमस की जुबानी मोदी की जो कहानी सामने आ रही है, उसके अनुसार गरीब घर में पैदा मोदी से लोग पहले नफरत करेंगे, फिर बेइंतिहा प्यार करेंगे, वो वर्षों तक राज करेंगे, भारत के साथ-साथ दुनिया के मुक्तिदाता के रूप मे उनकी पहचान बनेगी…। भाजपा के चुनाव अभियानो में भी नास्त्रेदमस की कहानियों का जबरदस्त उपयोग होता रहा है।
बहरहाल, नास्त्रेदमस के ’वैश्‍विक महामानव’ नरेन्द्र मोदी के अभी तक इतिहास के पन्ने अस्तित्व में नही आए हैं, लेकिन उनके प्रधानमंत्रित्व में बाबा जय गुरूदेव के तथाकथित ’सतयुग’ की ढेरों प्रवृत्तियां अंगड़ाई लेती नजर आ रही हैं। राजनीतिक ’सतयुग’ का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि रिजर्व बैंक ने 24 अप्रैल को ही देश के 50 सबसे बड़े डिफाल्टर्स के 68 हजार करोड़ रूपए के कर्ज माफ कर दिए हैं। इनमें मोदी की मित्र-मंडली में शरीक मेहुल चोकसी, नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे लोग शरीक हैं। कोरोना के लिए निर्मित हजारों करोड़ के प्रधानमंत्री केयर्स फंड का सरकारी ऑडिट इसलिए जरूरी नहीं है कि भारत जयगुरूदेव के ’सतयुग’ मे प्रवेश कर चुका है। इस तारतम्य में कोरोना की जांच के लिए आयातित टेस्ट-किट्स में करोड़ों की हेराफेरी भी गौरतलब नही हैं।
मोदी-सरकार की बड़ी खूबी है कि भ्रष्टाचार के आरोपों पर उसकी शाश्‍वत चुप्पी है। केन्द्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने एनडीए-1 के प्रारंभ में ही कह दिया था कि हम भ्रष्टाचार के आरोपों पर इस्तीफा देने वाले लोग नही हैं। भाजपा खामोश है कि दिल्ली मे भाजपा के पांच सितारा कार्यालय के निर्माण के लिए चार-सौ पांच सौ करोड़ रुपए कैसे जुटे… मंहगे चुनाव अभियानों के लिए पैसा कहां से आ रहा है… राज्य-सरकारों को बनाने-बिगाड़ने का खेल कैसे चल रहा है…? सूची लंबी है, लेकिन यह जयगुरू देव का राजनीतिक सतयुग है, जिसमें सब कुछ ठीक चल रहा है… भारत के भाग्य-विधाताओं की भूमिका को लेकर राजनीति में राष्ट्रवाद और राष्ट्रवाद में राजनीति गिरगिट की तरह रंग बदलते रहते हैं।

 

सम्प्रति-लेखक श्री उमेश त्रिवेदी भोपाल एवं इन्दौर से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है।यह आलेख सुबह सवेरे के 29 अप्रैल के अंक में प्रकाशित हुआ है।वरिष्ठ पत्रकार श्री त्रिवेदी दैनिक नई दुनिया के समूह संपादक भी रह चुके है।