देश को कालाधन और भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अगुवाई वाले एन.डी.ए. सरकार के 500 एवं 1000 रूपये का विमुद्रीकरण के फैसले के परिप्रेक्ष्य में अब अहम प्रश्न यह भी है कि क्या भविष्य में चिकित्सा जैसे पवित्र क्षेत्र में कालाधन का आवक रूकेगा? क्योंकि देश का मेडिकल क्षेत्र दशकों से कालाधन और भ्रष्टाचार का अहम स्त्रोत बना हुआ है।देश के शक्तिशाली राजनेताओं, कार्पोरेट घरानों, नौकरशाहों तथा रसूखदारों के लिए मेडिकल क्षेत्र कालाधन को निवेश करने का अहम जरिया बना हुआ है।

देश का चिकित्सा क्षेत्र दो हिस्सों यानि चिकित्सा शिक्षा और चिकित्सा सेवा में बंटा हुआ है। उपरोक्त दोनों क्षेत्रों में सरकार के साथ-साथ निजी भागीदारी भी है, देश में लगभग 425 मेडिकल कालेज हैं जिसमें लगभग आधे प्राईवेट कालेज हैं। निजी मेडिकल और डेंटल कालेजों के स्नातक और स्नातकोत्तर सीटों में प्रवेश के लिए खुले आम बोली लगती रही है। लेकिन इस साल केन्द्र सरकार के मेडिकल कालेजों में दाखिले के लिए आयोजित नेशनल एलिजिबिलीटी एंड इंट्रेंस टेस्ट यानि नीट के चलते इस भ्रष्टाचार पर अंकुश लगने की संभावना बलवती हुयी। इसके बावजूद चालू साल में निजी मेडिकल कालेज प्रबंधनों द्वारा सरकारी कोटे की सीटों में तय फीस से ज्यादा वसूलने तथा मैनेजमेंट तथा एन.आर.आई. कोटे की सीटों को ऊंचे दामों पर बेचने की शिकायतें प्रकाश में आयी है। दरअसल निजी मेडिकल कालेजों में पचास फीसदी सीटें सरकारी कोटे की रहती है जबकि बाकी पचास फीसदी सीटें प्रबंधन और एन.आर.आई. कोटे के लिए निश्चित है।इस साल निजी मेडिकल कालेजों में दाखिले के लिए ‘नीट’ की अनिवार्यता के चलते कालेज प्रबंधनों ने सरकार पर अपने प्रभाव का उपयोग कर फीस में दो से पांच गुना बढ़ोतरी के चलते अनेक निजी मेडिकल कालेजों की सीटें रिक्त रह गयी है। अब इन सीटों को कालेज प्रबंधन एन.आर.आई. तथा मैनेजमेंट कोटे की सीटों को भरने के लिए सुप्रीम कोर्ट और सरकार का दरवाजा खटखटाया था। सरकारी मेडिकल कालेजों के फीस में कोई बढ़ोतरी नहीं हुयी है। दूसरी ओर निजी कालेज प्रबंधन मैनेजमेंट और एन.आर.आई. कोटे की सीटों को कम करने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं है, क्योंकि इन सीटों में प्रवेश के नाम पर पालकों से लाखों-करोड़ो रूपए वसूले जाते हैं जो प्रवेश देने व प्रवेश लेने वाले यानि क्रेता व विक्रेता दोनों पक्षों का कालाधन ही रहता है।

एक रिपोर्ट के अनुसार बीते सालों तक देश में हर साल निजी मेडिकल कालेजों में लगभग 12,000 करोड़ रूपए कालाधन के रूप में जमा होते रहे हैं। ‘नीट’ के द्वारा दाखिले से पहले मेडिकल कालेजों में एम.बी.बी.एस. की सीटें 30 लाख तथा पी.जी. की सीटें एक करोड़ से तीन करोड़ तक बिकती रही है। जानकारी के अनुसार एम.बी.बी.एस की लगभग 15,100 तथा पी.जी एवं डिप्लोमा की लगभग 9,808 सीटें बीते साल बेची गयी। विडंबना यह कि इस साल नीट के बावजूद निजी मेडिकल कालेज के प्रबंधन और एन.आर.आई. कोटे की सीटों की फीस 45 लाख से 95 लाख तक पहुंच गयी।

इन सीटों में प्रवेश लेने वाले लगभग सभी छात्र फीस के बड़े हिस्सें की अदायगी बतौर नगद ही करते हैं जो सीधे तौर पर कालाधन के रूप में प्रबंधन को प्राप्त होता है। हालिया परिप्रेक्ष्य में गौर करें तो संभव है आने वाले साल में नये करेंसी के अभाव के चलते इन सीटों में प्रवेश नगद की जगह ‘‘गोल्ड’’ यानि सोने के एवज में होने की संभावना है। बहरहाल चिकित्सा शिक्षा कईयों के लिए ब्लैकमनी को ‘व्हाइट’ करने का जो जरिया बना हुआ है उसे तोड़ना जरूरी है, क्योंकि इसका दुष्परिणाम चिकित्सा सेवा में दृश्टिगोचर हो रहा है। विडंबना है कि जो अभिभावक या छात्र मेडिकल में दाखिले के लिए लाखों-करोड़ो खर्च करता है इसे वह अपने चिकित्सा पेशे में मरीजों से ‘बेरहमी’ से वसूलना भी चाहता है। इसी मानसिकता के चलते प्राईवेट नर्सिंग होम और डॉयग्नोस्टिक सेंटर कालेधन के बहुत बड़े स्त्रोत बने हुए है।

ज्यादातर निजी नर्सिंग होम एवं डायग्नोस्टिक सेंटर के कर्ता-धर्ता अपनी फीस की रसीद नहीं देते जिससे वे अपनी बड़ी कमाई आयकर की नजरों से छिपा लेते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार देश के प्राइवेट नर्सिंग होम और डायग्नोस्टिक सेंटरों में लगभग 70 फीसदी भुगतान नगद ही होता है। इन अस्पतालों द्वारा कुछ ही आमदनी को आयकर के दायरे में लाया जाता है। संभव है भविष्य में सरकार इस क्षेत्र में कर चोरी रोकने के लिए बिलिंग साफ्टवेयर सहित कुछ सख्त पारदर्शी तरीके लागू करें। इसके अलावा मेडिकल शिक्षा को नियमन करने वाली स्वायतशासी संस्था भारतीय चिकित्सा परिशद् यानि एम.सी.आई, डेंटल सहित अन्य चिकित्सा परिषद भी कालाधन और भ्रष्टाचार के केन्द्र बने हुए हैं।एम.सी.आई. के पूर्व अध्यक्ष डॉ. केतन देसाई की काली कमाई के आंकड़े एवं अन्य चिकित्सा परिषदों के पदाधिकारियों के लाखों के घूसखोरी में गिरफ्तारी इन संस्थाओं की काली करतूतों की पोल खोलते हैं।

बहरहाल सरकार के नोटबंदी सहित अन्य उपायों से चिकित्सा क्षेत्र में जारी आर्थिक कदाचरण एवं भ्रष्टाचार पर अंकुश लगने की आस बनी है क्योंकि यह कदाचरण चिकित्सा जैसे पवित्र पेशे को कलंकित कर रहा है, इसके लिए पारदर्शी व्यवस्था और कड़े कानून की सख्त दरकार है।

 

सम्प्रति- लेखक डा.संजय शुक्ला शासकीय आर्युवेदिक कालेज रायपुर में व्याख्याता है।