Tuesday , April 23 2024
Home / आलेख / दिलों के फासले के बीच मिले अखिलेश शिवपाल – राज खन्ना

दिलों के फासले के बीच मिले अखिलेश शिवपाल – राज खन्ना

हाथ पैरों की ओर झुके।जबाब में आशीष के हाथ भी उठे।पर जब माइक सामने आया तो दिल की बात जुबान पर थी।इसमें तल्खी थी।दर्द भी।गिले शिकवे भी।मुलायम परिवार को एक दिखाने की हर कोशिश में रिश्तों की तुरपन कुछ और उधड़ जाती है।अखिलेश की रथ यात्रा की शुरुआत के कार्यक्रम में शिव पाल यादव शामिल होंगे,इसे लेकर पहले संशय था।शिवपाल उसमे शामिल हुए।लेकिन शिवपाल और अखिलेश दोनों के ही भाषणों ने साफ़ किया था कि कुर्सियों के बीच भले चंद कदमों का फासला हो लेकिन दिलों के बीच का फासला बहुत बढ़ चुका है।अखिलेश की रथ यात्रा की तारीखों को इस बात से जोड़ा गया था कि लखनऊ से दूर रहकर अखिलेश पार्टी के 5 नवम्बर के रजत जयंती कार्यक्रम में हिस्सेदारी से बचना चाहते हैं।शिवपाल ने अखिलेश की रथयात्रा तो अखिलेश ने पार्टी के रजत कार्यक्रम में शामिल होकर अटकलों पर तो विराम लगा दिया लेकिन परस्पर दूरी पर मोहर लगा दी।

समाजवादी पार्टी का नजारा दिलचस्प है।दोनों पक्ष नेता जी के नाम की कसमें खाते हैं लेकिन उनकी मौजूदगी में एक दूसरे की खबर लेने का कोई मौका नहीं छोड़ते।रजत जयंती कार्यक्रम में वही एक बार फिर दोहराया गया।अब परिवार के रिश्तेदार बन चुके लालू यादव ने अखिलेश-शिवपाल को अगल बगल खड़ा किया। अखिलेश ने चाचा के पैर छुए।चाचा ने आशीर्वाद भी दे दिया।पर माइक पर चाचा अखिलेश पर वाण चला रहे थे कि कुछ लोग विरासत में सब पा लेते हैं और कुछ के हिस्से में कुछ नहीं आता।असल में ये निशाना अखिलेश पर था और सार्वजनिक शिकायत मुलायम से थी जिन्होंने भाई के संघर्षों की तारीफ भले की हो लेकिन गद्दी सौंपने में बेटे को ही तरजीह दी। उधर अखिलेश परीक्षा देने को तैयार बताते हुए चाचा को आगाह कर रहे थे कि समझ आएगा लेकिन सब बिगड़ जाने के बाद।मुलायम परिवार के झगड़े में अब कुछ भी नया नहीं है।परिवार खुलकर लड़ रहा है।मेलमिलाप की सब कोशिशें बार बार ढेर हो रही हैं।नेता जी लगातार तो चाचा-भतीजे बीच बीच में झगड़े की अगली किश्त के बीच एका का सन्देश देते हैं।ये सन्देश जिस मतदाता के लिए है, वह क्या सोचता है?असलियत में चुनाव की ओर तेजी से बढ़ रहे उ.प्र का मतदाता सरकार के कार्यकाल के आखिरी महीनो में  समाजवादी पार्टी की किस्मत के बारे में फैसला ले चुका है।चुनाव के जरिये ये सार्वजनिक होगा।पार्टी विपरीत फैसले की आहट से डरी हुई है।एक ओर एक बार फिर सरकार में न आने का डर तो दूसरी ओर चाचा भतीजे के झगड़े में पार्टी के दो फाड़ होने के खतरे ने समर्थकों को बेचैन कर रखा है।

परिवार और पार्टी के मुखिया मुलायम के सामने ही उनके सपने की तामीर बिखर रही है।पार्टी और उनका परिवार एक दूसरे के पर्याय हैं।और यह परिवार ही उन जड़ों में मट्ठा डाल रहा जिससे निकले वृक्ष की छाया में सत्ता सुख की बड़ी हिस्सेदारी परिवार को अब तक हासिल हो रही है।उनकी सार्वजनिक जयकार करता बेटा फैसलों से उन्हें लगातार दर किनार कर रहा है।मुलायम दिखाना चाहते हैं कि वह अभी भी सब कुछ हैं।अपनी ताकत का सबूत वे बिखरे जनता दलियों के जमघट के जरिये दे रहे हैं लेकिन खुद उनकी पार्टी का एका बड़े खतरे में है।वे दूसरों को जोड़ने के अभियान पर हैं। 2019 दूर है। और दिल्ली तो उनके लिए अब और दूर हो चुकी है।मुलायम मान चुके हैं कि 2017 में 2012 दोहराना मुश्किल है।और तब जब कुनबे के लोग ही एक दूसरे को निपटाने में जुटें हो तब तो और भी मुश्किल ।झगड़ते बेटे भाई के बीच घायल पार्टी और निराश कैडर के बूते चुनावी जंग की जीतने की चुनौती है।2012 में अकेले बूते स्पष्ट बहुमत और  फिर सरकार की उपलब्धियों की फेहरिस्त के बाद भी अनुभवी मुलायम सिंह को पता है कि उन नतीजों को दोहराना मुमकिन नहीं।वहां तक या उसके आसपास पहुँचने के लिए उन्हें सहयोगियों की तलाश है।वह उस दिशा में बढ़ भी रहे हैं।

फिलवक्त चुनाव नतीजों को लेकर सिर्फ अटकलें लग सकती हैं लेकिन सपा प्रचार अभियान में पिछड़ चुकी है,इसमें किसे शक है।उससे सत्ता छीनने के लिए बेचैन भाजपा और बसपा की बड़ी रैलियां हो रही हैं।यात्रायें निकल रही हैं।बूथ स्तर तक तैयारियां चल रही हैं।उधर सपा के नेता कार्यकर्ता तय नहीं कर पा रहे कि किस खेमे से जुड़ने में भलाई है ? पार्टी की हलचल घूम फिरकर राजधानी के इर्द गिर्द है।पार्टी दूसरे दलों पर जो बोलती है,उसमे किसी को दिलचस्पी नहीं।सुर्खियां बन रही हैं तो अखिलेश और शिवपाल के किसी कार्यक्रम में साथ शामिल होने या न होने की।हुए शामिल तो एक दूसरे पर किये हमलों की।भाव भंगिमाओं की।और इसीलिए पार्टी के 25 सालो के सफर का रजत जयंती कार्यक्रम मजबूती के लिए कम परिवार के लड़ते खेमों के दिए जख्मों की टीस के लिए ज्यादा याद किया जाएगा।

सम्प्रति- लेखक श्री राज खन्ना वरिष्ठ पत्रकार है।उनके समसामायिक राजनीतिक एवं अन्य मुद्दों पर आलेख राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक समाचार पत्रों में छपते रहते है।