वर्ष 2020 का साल लगभग 80 वर्षों के बाद एक बड़ी त्रासदी का साल रहा है। इसकी शुरूआत ही न केवल देश में बल्कि दुनिया में एक ऐसी महामारी से हुई जो अज्ञात भी थी और ला ईलाज भी। 100 साल पहले 1920 के आसपास देश में प्लेग फैला था और जिससे वस्तुतः लाखों लोग मरे थे। कहा जाता है कि उस ज़मानें में 20-30 लाख लोग प्लेग की महामारी से मौत के शिकार हुए थे। परंतु प्लेग के बारे में कुछ दवाएं और जानकारियां उस समय थीं, 1940 के दशक में भी जो भीषण अकाल पड़ा था, उसमें भी लाखों लोग मौत के शिकार हुए थे और वह भी कम से कम जानकारी में था, परन्तु कोरोना की महामारी के फैलने के बाद ही उसके बारे में खोजबीन और अध्ययन शुरू हुए और दवाएं तो अभी एक वर्ष बीत जाने के बाद भी प्रमाणिक तौर पर नहीं बन सकीं है।
वैक्सीन के परीक्षण चल रहे है और परीक्षण काल में ही देशों और कम्पनियों में बिक्री को लेकर प्रतिस्पर्धात्मक होड़ शुरू हो गई है। सरकारें भी केवल वैक्सीन के वितरण उपलब्धता कीमत और गुणवत्ता के बारे में मीडिया प्रचार तक सीमित है। यद्यपि कोरोना से मरने वालों की संख्या तुलनात्मक रूप से कम है। परन्तु, कोरोना का मानसिक भय 19वीं सदी की महामारी जिसमें मरने वालों की संख्या 40 से 50 गुना ज्यादा थी उससे 1000 गुना ज्यादा है। वैश्वीकरण और मशीनी दौर ने मानवीय रिश्तों को पहले भी प्रभावित किया था। परन्तु कोरोना की महामारी ने तो जैसे मानवता को ही मार दिया है। जहां पत्नी अपने पति के, बेटा अपने पिता के और परिजन अपने परिवार वालों के अंतिम संस्कार में भी जाने के इच्छुक नहीं है।
कोरोना की महामारी का वायरस कहां और कैसे जन्मा इसको लेकर दुनिया में बहस भी है, खेमाबंदी भी है और दोपारोपण है। परंतु यह निर्विवाद सत्य है कि दुनिया के बड़े-बड़े प्रदूषण ने पर्यावरण को और मानव को इतना नष्ट और कमजोर कर दिया है कि, उसकी सहनशीलता और क्षमता लगभग शून्य जैसी हो गई। हाल ही की एक वैज्ञानिक रपट के अनुसार देश में लगभग 19 लाख लोग प्रदूषण के चलते एक वर्ष में मौत के शिकार हुए और अकेले मध्यप्रदेश में ही लगभग डेढ़ लाख लोग मरे है। प्रदूषण ने पर्यावरण की भी हत्या की है, और मानवता की भी। करोड़ों छोटे-छोटे बच्चे धूल और धुंए के प्रदूषण अस्थमा के शिकार हो रहे है। प्राणवायु के अभाव में इंसान के फेंफड़ें नष्ट और कमजोर हो चुके हैं। और दुनिया के चिकित्सक यह कह रहे है कि, कोरोना के फैलाव का एक बड़ा कारण इम्युनिटी पावर का कम होना भी है। पर अब दुनिया को इस नए वर्ष में यह सोचना होगा कि अशुद्ध वायु, अशुद्ध भोजन, अशुद्ध पानी अनाज और सब्जियों का जहर इस सीमा तक बढ़ चुका है कि वह अपने आप में एक महामारी और उसका जनक बन चुका है। जो नदियाँ देश की पवित्र नदियां कहीं जातीं थी, गंगा और यमुना, कृष्णा और गोदावरी अब वे कारखानों के बेस्ट मटैरियल से जहरीली बन चुकी है। परमाणु परीक्षण, परमाणु ताप घर छिपे तौर पर मानवता को नष्ट करने के नए विकास के उपक्रम है। याने वैश्विक विकास की अवधारणा ही वैश्विक विनाश का पर्याय बन गई है।
देश की अर्थव्यवस्था जो पहले से ही मंदी की ओर थी कोरोना वर्ष में और अधिक प्रभावित हुई है, और 7 प्रतिशत से घटकर लगभग 4 प्रतिशत तक आ गई है। 2020 के कोरोना वर्ष में जहाँ आम आदमी के रोज़ी-रोटी और रोज़गार पर भारी विपरीत असर हुआ है। वहीं बड़े-बड़े कारपोरेट, दान पूँजीपति और उद्योगपतियों का अतुल्य विकास हुआ है। देश के 4-5 करोड़ फुटकर व्यापारियों के धंधे बंद होने की कगार पर परंतु अमेजन फ्लिपकार्ट और ऐसी अन्य होम डिलेवरी के नाम पर महाकाय कंपनियों का दैत्याकार बड़ा है।
आनलाईन शिक्षा और कोरोना के नाम पर शिक्षण संस्थाओं की बंदी से जहाँ एक तरफ लाखों शिक्षक बेरोजगार हो गए है, वहीं दूसरी तरफ 4 करोड़ ग्रामीण कस्बाई और नगरों की शिक्षा का ढांचा ही लगभग नष्ट हो चुका है। आनलाईन शिक्षा के नाम पर मोबाईल कंपनियों ने लाखों करोड़ों का धंधा कर लिया और बच्चों को अशिक्षा और अज्ञानता के अंधकार में ढकेल दिया है।
देश में सरकारी क्षेत्र के ऊपर कोरोना की आड़ में निजीकरण का हमला हुआ है, और वे विशालकाय देश की जनता की पूँजी से खड़े हुए सार्वजनिक क्षेत्र के कारखाने जिनमें देश के कुल बजट से दस गुनें से अधिक पूँजी लगी है। यथा रेलवे, उड्डयन यातायात आदि मिट्टी मोल के भाव निजी क्षेत्रों को बेचे जा रहे हैं। जहाँ एक तरफ संपन्न दुनिया रेल का निजीकरण समाप्त कर रेल को सार्वजनिक क्षेत्र में ला रही है, वहाँ भारत सार्वजनिक क्षेत्र को खत्म कर निजी हाथों में देकर भारतीय रेल को अडानी-अंबानी रेल बना रहा है।
देश के किसान बेचैन हैं, और हरियाणा और पंजाब जैसे सीचिंत कृषि के संपन्न किसान अपने भविष्य की आकांक्षाओं से इतने भयभीत हैं कि 40 दिनों से इतनी भीषण ठंड में राजधानी की सीमा पर ठंड में बैठे हैं और जान दे रहे हैं। 40 से अधिक किसान भीषण सर्दी के कारण धरना देते मौत के शिकार हो चुके हैं। परंतु देश के संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री संवैधानिक संस्थाएं संसद और सर्वोच्च न्यायालय सब मूक दृष्टा है। और लोकतंत्र की आत्मा सत्ता और जनता के बीच संवाद ठहरा हुआ है। सत्ता ने संसद को पंगु और चाकर बना दिया है, जहाँ बगैर मतदान के ध्वनिमत से प्रस्ताव पारित कर दिए जाते है। कोरोना के नाम पर संसद और विधानसभा के सत्र टाल दिए गए हैं। तथा संवैधानिक प्रावधान लंबित कर दिए गए हैं।जो राजनीतिक दल मुश्किल से एक माह पहले हजारों लाखों लोगों की चुनाव प्रचार की रैलियां आयोजित कर रहे थे, वही अब कोरोना के नाम पर 550 लोगों की संसद, सौ दो सौ विधायकों की विधानसभाओं की बैठक नहीं कर रहे हैं। जो संसद और विधानसभाएं युद्धकाल में मुखर रहीं वे अब कोरोना के बहानें आत्महत्या को विवश हैं।
संवैधानिक नियमों के अनुसार 06 माह के अंतराल में संसद और विधानसभाओं के सत्र होना चाहिए पर इन्हें बगैर कहे निष्प्रभावी कर दिया गया है। 1950 के दशक में जहाँ साथ में औसतन 100-125 दिन संसद और विधानसभाएं चलतीं थी अब एक-एक दिन का भी सत्र नहीं चला पा रही है। देश की जनता कमजोर और मूक है, वरना यह सवाल पूछा जाना चाहिए जो सांसद और विधायक कोरोना के भय से संसद और विधानसभा में जनता के मुद्दे नहीं उठा सकतें, उन्हें सांसद और विधायक रहने का वेतन और भत्ते उठाने का क्या हक है ? जब संसद और विधानसभा ही नहीं चलना हो तो एक-एक हज़ार करोड़ रूपया खर्च कर संसद भवन और 20 हज़ार करोड़ के विस्टा प्रोजेक्ट पर जनता का धन बर्बाद करने की क्या आवश्यकता है ? 2020 ने देश और दुनिया को संकेत दे दिया है कि कोरोना और उसके बदलते रूपों, प्रदूषण और ऐसे ही अन्य प्राकृतिक संकटों से बचना है तो फिर 1910 में बापू की लिखी हिंद स्वराज की तरफ जाओं जो समूची दुनिया की मानवता सभ्यता और प्रकृति को बचाने का बीजमंत्र है। राष्ट्रपिता ने 110 साल पहले मंत्र दिए थे महानगरों के बजाय गाँव दैत्याकार तकनीक के बजाय हाथ और कान्क्रीट के महलों के बजाय शुद्ध वायु और जल देने वाली ग्रामीण सभ्यता और कृषि। परंतु किसान न्यूनतम मूल्य पाने के लिए मर रहा है, और कारखानेदार अधिकतम मूल्य लूटने के लिए खुला छोड़ दिया गया है। 2021 का आने वाला साल शिक्षा और सुधरने का साल हो सकता है, परन्तु आम लोगों को भी अब चुप्पी तोड़ना होगी, बोलना होगा संविधान में रक्षा खोजने की बजाय संविधान की रक्षा को आगे आना होगा और गाँधी की ओर मुड़ना होगा।
सम्प्रति- लेखक श्री रघु ठाकुर देश के जाने माने समाजवादी चिन्तक है।प्रख्यात समाजवादी नेता स्वं राम मनोहर लोहिया के अनुयायी श्री ठाकुर लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के संस्थापक भी है।