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देश में लावारिस गौवंश की समस्या गंभीर – रघु ठाकुर

रघु ठाकुर

समूचे देश में लावारिस गौवंश ही समस्या गंभीर हो गई है, और देश के स्तर पर कई करोड़ लावारिस गाय और सांड सड़कों पर कब्जा किये बैठे रहते हैं। फिर किसानों के खेत पर घुसकर फसले नष्ट करते हैं और बहुतेरे किसानों की सारी फसलें नष्ट करते हैं। यह स्थिति विशेषतः भारत के मध्य से लेकर उत्तर पश्चिम और पूर्व के भारतीय सीमा तक फैली हुई है।

बेचारे किसान रात-रात भर जागते हैं, किसानों के बेटे रात को डंडा लेकर अपने खेतों को बचाने के लिये पहरा देते हैं इसके बावजूद भी खेतों को बचा पाना किसान के लिए कठिन रहता है। पहले से ही किसान नील गायों के हमलों और आतंक से प्रभावित रहा है, क्योंकि नील गाय इकट्ठे 50-60 की संख्या में चलते है और एक बार जिसके खेत में पहुंच जाते है उसकी फसल को नष्ट कर देते है। नील गाय दरअसल गाय नहीं बल्कि एक पशु है जिसका कोई इस्तेमाल समाज के लिये नहीं है। यह भी एक प्रकार से सांड या घोड़े जैसा पशु है पर समाज के लिए लिये उतना भी काम नहीं आता जितना सांड या घोड़े आते है। भले ही तकनीकी के विकास के चलते यातायात के साधनों का स्वरूप बदल गया है और अब घोड़े या बैलों का इस्तेमाल लगभग सामाजिक जीवन या कृषि कार्यें में न के बराबर हो रहा है। फिर भी सांडो का इस्तेमाल गौवंश के गर्भाधान के लिये होता है तथा कस्बों और गाँवों में अभी भी घोड़ों का थोड़ा बहुत प्रयोग हो रहा है, परंतु नील गाय तो बिल्कुल ही अनुपयोगी है। चूंकि नील गाय के नाम के साथ गाय जुड़ा हुआ है, अतः देश के दकियानूसी और अंधविश्वासी जमात के लिये वह गाय का बहाना है। सरकार ने नील गाय के मारने पर भी रोक लगाई है, और किसान के सामने ऐसी लाचारी पैदा हो जाती है कि अपनी आंखों के सामने अपनी पूँजी और परिश्रम से संतान के समान तैयार कि हुई फसलों को नष्ट होते देखता रहता है और उसके पास रोने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता।

गायों में भी दो प्रकार की गाय है पहली जिसने दूध देना बंद कर दिया है इस कारण से वह किसान व पशु पालन के नजरिये से आर्थिक बोझ के समान है, और इसलिये, लाचार होकर किसान उन्हें खुले में भटकने के लिये छोड़ देता है तथा उसे जो मिल जाये वह खाने और अपनी मौत मरने के लिये लाचार हो जाती है। ऐसी गायों की संख्या देश में करोड़ों में पहुंच चुकी है, और इससे वह सड़कों पर स्थायी अवरोध और दुर्घटनाओं का कारण बन गई है। हमारे देश में औसतन प्रतिवर्ष 12-13 लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं में मर जाते हैं, और अगर इन दुर्घटनाओं का अध्ययन किया जाये तो इनमें से अधिकांश दुर्घटनाओं का कारण लावारिस पशु होते हैं। चूंकि गाय की हत्या एक गंभीर आपराधिक और दंड का कारण बन गई है, अतः विशेषकर बड़ी गाड़ी चलाने वाले (ट्रक, बस) अपनी गाड़ियों की रफ्तार कम कर गाड़ी चलाते हैं, ताकि कोई दुर्घटना न हो, विशेषतः दिन के समय सड़क पर गाय से टक्कर होना, दंगा फसाद का एक कारण बन जाता है। जहां एक तरफ सरकारें चार लेन या छह लेन वाली सड़कों के निर्माण पर अरबों रूपये खर्च कर रही है ताकि यातायात त्वरित व सुगम हो, ईंधन का इस्तेमाल कम हो, पर यह सब बेकार जा रहा है। तात्पर्य है कि जब वाहन गति ही नहीं पकड़ पाते तब स्वाभाविक है कि ईंधन का इस्तेमाल अधिक होगा और इस कारण ना केवल पेट्रोल-डीजल की खपत ज्यादा होती है, बल्कि निरंतर बगैर चले भी इंजन स्टार्ट रहने से जो धुंआ निकलता है, उससे प्रदूषण भी बहुत फैलता है। भारत सरकार के मुताबिक दिल्ली के प्रदूषण में पंजाब, हरियाणा, और दिल्ली के किसानों के पराली जलाने से मात्र 4 प्रतिशत का हिस्सा होता है, जबकि पराली जलाने के महीने वमुश्किल से 1-2 माह होते हैं, परंतु यातायात के अवरोध से, गाड़ियों से निकलने वाला धुंआ पूरे वर्ष प्रदूषण फैलाता है। चूंकि इस प्रदूषण का शिकार ग्रामीण और कस्बाई अंचल के लोग होते हैं, अतः यह हमारे देश की व्यवस्था, भद्रलोक और शिक्षित समुदाय के लिये चिंता का विषय नहीं होता है, इनकी चिंता तो सिर्फ महानगर तक सिमटी रहती है।

आजकल देश में कई प्रकार के दिखावटी और दकियानूसी अभियान चल रहे हैं। कुछ लोगों ने अभी माँग शुरू की है, कि गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाये। यह आश्चर्यजनक है कि, जो लोग स्वतः गाय को माता घोषित करते हैं, उसे ही पशु बनाना चाहते हैं, याने माता के दर्जे से नीचे गिराना चाहते हैं। गाय या गौवंश की हत्या के नाम पर तो दंगे फसाद हो जाते हैं, और विशेषतः पिछले 7-8 वर्षों में जो माब लिचिंग की घटनायें हुई है उनमें अधिकांश का कारण गाय के गोश्त का शक जो कि देश के दिमाग में ऐसा बह गया है कि अगर हिन्दू गाय का गोश्त ले रहा हो तो कोई शंका नहीं करेगा, परंतु अगर मुस्लिम बकरे या मुर्गे का गोश्त ले जा रहा हो तो वह फसाद और माब लिचिंग का काम करता है। यहां तक की बगैर किसी जाँच के वे लोग थैलो के भीतर रखे गोश्त को गाय का गोश्त बना देते हैं, जो अपने आप को शाकाहारी बताते हैं।

लावारिस गौवंश की समस्या को लेकर देश की सरकारों ने, कुछ धार्मिक सामाजिक संस्थाओं ने अभी तक एक ही उपाय खोजा है कि गौशालायें बनाई जायें, सरकारें इन गौ शालाओं के ऊपर अरबों रूपया का अनुदान खर्च कर रही है। जब 2018 में म.प्र. में कांग्रेस सरकार बनी तो तत्कालीन मुख्यमंत्री जी ने कलेक्टरों को निर्देश दिया था कि यदि सड़कों पर गाय दिखती है तो वे स्वयं जिम्मेदार होंगे और आज्ञाकारी प्रशासन तंत्र कुछ दिनों तक विशेषतः छिन्दवाड़ा क्षेत्र में और उन स्थानों पर जहां मुख्यमंत्री का दौरा होता था लावारिस गायों को सड़कों से हटाने में लग गये थे। माब लिचिंग वाले बहादुरों से यह सवाल कोई नहीं पूँछता की आखिर इन अनुपयोगी गायों को कौन बेचता है, क्या वे हिन्दू नहीं होते? जो अपनी गाय को अनुपयोगी और बोझ समान होने पर मरने के लिये बेचता है तो क्या वह भी गौ हत्या का अपराधी नहीं है? दरअसल गौ हत्या के नाम पर भी एक प्रकार की सांप्रदायिक राजनीति चलने लगी है।

लगभग देश की सभी सरकारें चाहे वह किसी भी दल की क्यों न हों अपने कार्यक्रमों में यह घोषणा करती हैं कि लावारिस पशुओं की समस्या के निदान के लिये कितनी गौ शालायें खोली जायेगी, कितनी जमीन देंगे, और कितना अनुदान देंगे आदि-आदि। इन सत्ताधीशों को यह भी पता नहीं है कि अब गांव में सार्वजनिक उपयोगों के लिये जमीनें ही नहीं बची हैं। यहां तक की गोचर भूमि सरकारें पहले ही नष्ट कर चुकी हैं। फिर सरकारी अनुदान का क्या इस्तेमाल हो रहा है? इसका भी कोई खुलासा नहीं करता। छत्तीसगढ़ के रायपुर, दुर्ग में, म.प्र. के आगर मालवा में और दिल्ली में सरकार से करोड़ों रूपया अनुदान प्राप्त करने के बावजूद गौ शालाओं में हज़ारों की संख्या में गाय कैसे मरी, पोस्टमार्टम होने पर उनके पेट में चारे या भूसा का टुकड़ा भी नहीं मिला और यहां तक की पानी भी नहीं मिला। क्या इन हज़ारों गायों की भूख प्यास से मौत के लिये इन गौशालाओं के संचालकों को गौ हत्या के लिये अपराधी नहीं माना जाना चाहिये? परंतु अब शायद देश में हिन्दू होने पर, या गैर मुस्लिम होने पर गाय के नाम का अनुदान खाने पर और उन्हें मरने देने का संभवतः विशेषाधिकार प्राप्त हो गया है।

लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी पिछले लगभग 6-7 वर्षों से यह सुझाव सरकारों को देती रही हैं कि गौ शालायें खोलकर अनुदान की लूट से सत्ता पक्ष के समर्थकों के पेट तो भर सकते हैं परंतु गाय नहीं बच सकती। दकियानूसी जमाते कितनी सक्रिय हैं इसका एक उदाहरण भोपाल में मिला, जब भोपाल के पशुपालन विभाग ने प्रदेश भर में सांडों में बधियाकरण का अभियान चलाने पर लगभग 12 लाख से अधिक सांडों में से लगभग 2 लाख सांडों का बधियाकरण हुआ, जिस पर म.प्र. सरकार ने 12 करोड़ रूपये खर्च किये। इस पर भोपाल की सांसद ने इसका विरोध किया। यह आश्चर्यजनक है कि आदमी का परिवार नियोजन हो सकता है परंतु सांसद के अनुसार सांडों का नहीं। आजकल दुनिया में और देश में अंगदान से लेकर देयदान तक का एक अच्छा कार्य शुरू हुआ है। एक मरे हुये व्यक्ति के अंगों से दूसरे इंसान को जीवन मिलता है तो सोचिये कि जीवन की इससे बड़ी सार्थकता क्या हो सकती है? इस पर सरकारों की मोहर लगी है, परंतु अंधविश्वासी जमात के लिये इंसान का शरीर तो इस्तेमाल में लिया जा सकता है, परन्तु गौ वंश का का नहीं।

लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी ने सुझाव दिया है कि:-

  1. सरकारें गायों के लिये, उनके पालन हेतु एक किसान दो गायों के हिसाब से उन्हें 6 हज़ार रूपये प्रतिमाह उनके पालन को दें। इससे न जमीन की आवश्यकता होगी न भ्रष्टाचार होगा, न गाय भूख प्यास से मरेगी और किसानों को औसतन 72 हज़ार रूपये प्रतिवर्ष का आर्थिक लाभ मिलेगा।
  2. पिछले दिनों जितना भी अनुदान सरकारों ने गौशालाओं को दिया है, और उनमें जो गायों की मौते हुई हैं, उसकी जाँच कर जिम्मेवारी तय की जानी चाहिये।
  3. नील गाय को गाय नहीं माना जाना चाहिये तथा उन्हें खेतों में घुसने पर मारने का अधिकार किसानों को देना चाहिये और उनके चमड़े का इस्तेमाल समाज के लिये होना चाहिये। यह कितना आश्चर्यजनक है कि हम विदेशों से चमड़ा आयात करते हैं और अपने देश के चमड़े को बर्बाद करते हैं। जो लोग अपनी गायों का दूध निकालकर उन्हें सड़कों पर या खुलेआम छोड़ते हैं उन्हें दण्डित किया जाना चाहिये। अगर माता पिता की देख भाल न करने वाली संतान को दण्ड दिया जा सकता है तो गौ माता का दूध निकाल कर उसे सड़क पर छोड़ने वालों को दण्डित क्यों नहीं किया जा सकता?
  4. सांडों का बधियाकरण अभियान चले और अनुपयोगी सांडों का सामाजिक इस्तेमाल के लिये आवश्यक उपाय या नियम बनाये जायें।
  5. गौ वंश को बचाने के लिये उसे आर्थिक ईकाई बनाना होगा , और इस संबंध में समुचित उपाय किया जाना चाहिये। उम्मीद है कि नवाचार सोचने वाली सरकारें, प्रशासन और समाज, गौ वंश के मामले में भी नवाचार शुरू करेगा।

 

सम्प्रति- लेखक श्री रघु ठाकुर देश के जाने माने समाजवादी चिन्तक है।प्रख्यात समाजवादी नेता स्वं राम मनोहर लोहिया के अनुयायी श्री ठाकुर लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के संस्थापक भी है।