ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में कुल भूख से पीडि़त संख्या का एक चौथाई भाग भारत में रहता है।पाकिस्तान, बंग्लादेश और श्रीलंका जैसे हमारे पड़ोसी देश लगातार आंतरिक अशांति व अस्थिरता से जूझने के बावजूद हमसे बेहतर स्थिति में है। भूख का सीधा संबंध कुपोषण से है जिसके चलते भारत में अभी भी 17.5 फीसदी लोग कुपोषित है,तथा देश में हर साल 5 साल से कम उम्र के करीब 10 लाख बच्चे कुपोषण के कारण अपनी जान गंवा रहे हैं।

अंतर्राष्ट्रीय अन्न नीति अनुसंधान की रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया के 79 देशों में भूख और कुपोषण के मामले में 65 वे पायदान पर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार 70 प्रतिशत भारतीय महिलाएं खून की कमी यानि एनीमिया की शिकार हैं।उपरोक्त आंकड़े उस भारत देश की है जहां हर साल 50 हजार करोड़ रूपयों का अनाज, सब्जी व फल महज भंडारण के अभाव में नष्ट हो जाते हैं।भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है जो पूरी दूनिया को खाद्यान्न मुहैया कराता है लेकिन इसी भारत में हर वर्ष 25 लाख लोग भूख से मरते हैं तथा औसतन 7000 लोग रोज भुखमरी के शिकार हो रहे हैं। दुनिया में भुखमरी से मरने वाले देशों की सूची में भारत पहले क्रम पर है जहां 20 करोड़ लोग रोज भूखे पेट सोने के लिए विवश हैं जबकि पोषण और भूख मिटाने के लिए आवश्यक करोड़ो टन गेहूं, चावल, फल व सब्जियां गोदामों या खुले मैदान में सड़कर बर्बाद हो रही है।यह विडंबना नहीं बल्कि इसकी पराकाष्ठा है कि सरकारी तंत्र किसानों से खरीदे गये अनाज को खुले में छोड़कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान लेती है। आखिरकार किसानों को भुगतान किए गए कीमत भी तो देश के आम आदमी की खून-पसीने की कमाई का है।

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (ए.एफ.ओ.) ने अपनी रिपोर्ट ‘‘द स्टेट आफ फूड इनसिक्यूरिटी इन द वल्र्ड 2015’’ में भारत में भूखमरी व कुपोषण से मुक्ति के लिए खाद्यान्न के उचित भंडारण व वितरण पर जोर दिया है। दूसरी ओर अनाज के सड़ने का अर्थशास्त्र यह भी है कि बीते साल भंडारण के अभाव में 1454 टन गेहूं नष्ट हो गया। इस गेहूं को सरकार ने किसानों से 13.50 रूपये प्रति किलो के हिसाब से खरीदा था जिसे सड़ने के बाद 6.75 रूपये प्रतिकिलो की दर से शराब कंपनियों को बेचा गया। एक शोध के अनुसार देश में प्रतिवर्ष 21 मिलियन टन गेहूं भंडारण की समुचित व्यवस्था के अभाव में नष्ट हो जाता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के आंकड़ो के मुताबिक भारत में हर साल लगभग 12 मिलियन टन फल और 21 मिलियन टन सब्जियां भंडारण की व्यवस्था नहीं होने के कारण नष्ट होती है। बहरहाल देश का अन्नदाता एक तरफ बुआई के लिए बीज नहीं होने के कारण या कर्ज के चलते आत्महत्या के लिए मजबूर है वहीं सूखे की आहट, भूखमरी व कुपोषण के बीच जरूरी है कि देश में भंडारण की सुविधा बढ़ाई जाए।

देश के प्रतिष्ठित उद्योग संगठन ऐसोचैम ने अपने अध्ययन में बताया है कि भंडारण क्षमता की कमी के कारण भारत में तकरीबन 40 फीसदी अनाज का रखरखाव उचित तरीके से नहीं हो पाता। ऐसे में हर साल उत्पादित अनाज का तीस फीसदी हिस्सा बर्बाद हो जाता है।देश में अनाज के उत्पादन के लिहाज से इस समय भारतीय खाद्य निगम (एफ.सी.आई.) के पास खाद्यान्न भंडारण की क्षमता लगभग 32 मिलियन टन है जबकि एफ.सी.आई. प्रतिवर्ष लगभग 50 मिलियन टन के करीब अनाज खरीद करती है। यानि क्षमता के अतिरिक्त अनाज खुले आसमान के नीचे असुरक्षित रखा जाता है।विडंबना है कि एक तरफ देश में हरित क्रांति के बाद बंपर फसली पैदावार हो रहा है लेकिन आजादी के 68 वर्षों बाद भी हमारी सरकारों ने किसानों के श्रम सिंचन से तैयार सृजन को माकूल संधारण करने में उदासीनता दिखाई है जबकि सरकार हर साल खाद्य सब्सिडी पर हजारों करोड़ रूपये खर्च कर रही है।

विचारणीय है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली में फैले भ्रष्टाचार से निजात व अनाज के भंडारण की उचित व्यवस्थाएं जब तक सरकार की प्राथमिकता में शामिल नहीं होगी तब तक सरकारी सब्सिडी और अनाज की बर्बादी बदस्तूर जारी रहेंगी। देश में अनाज की बर्बादी के मद्देनजर 27 जुलाई 2010 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जिस देश में हजारों लोग भूख से बेहाल है वहां अन्न का एक दाना भी बर्बाद होना अपराध की श्रेणी में आता है। यह केन्द्र सरकार की जिम्मेदारी है कि वह अनाज को सड़ने की बजाय उसका उचित भंडारण व गरीबों और भूखों के बीच इसका न्यायपूर्ण वितरण सुनिश्चित करें। लेकिन पांच साल बाद भी सरकार न तो इस सुझाव को मान रही है और न ही पर्याप्त क्षमता वाले आधुनिक भंडारण गृहों के निर्माण के प्रति गंभीरता दिखा रही है। ऐसा नहीं है कि भारत में खाद्य भंडारण के लिए कोई कार्यक्रम नहीं है, सन् 1979 में सरकार द्वारा खाद्यान्न बचाओ कार्यक्रम शुरू किया गया था। इस योजना के तहत किसानों में अनाज भंडारण में टंकियां उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन इस योजना का कोई साकारात्मक परिणाम दृष्टिगोचर नहीं हुआ।

किसी भी देश में जब तक अनाज के उत्पादन, भंडारण और वितरण की उचित व्यवस्था नहीं होगी तब तक उस देश में भुखमरी व कुपोषण खत्म नहीं हो सकता। खाद्यान्न का उचित भंडारण केवल अनाजों की सुरक्षा या भूख से मुक्ति के लिए ही नहीं है बल्कि यह कृषि प्रसंस्करण उद्योग तथा कृषि आपूर्ति श्रृंखला के मजबूती के लिए भी अत्यावश्यक है। अनाजों की बर्बादी पर अंकुश लगाने से मुद्रास्फीति व अनाज की बढ़ती कीमतों पर भी काबू पाया जा सकता है। देश में अब अत्याधुनिक व पर्याप्त क्षमता वाले भंडार गृहों की बहुत ही आवश्यकता है इसके लिए भंडारण व्यवस्था को विकेन्द्रित करने की भी जरूरत है। केन्द्र सरकार इस बात पर गंभीरता से विचार करे कि राज्यों को वित्तीय सहायता प्रदान कर खाद्यान्न के भंडारण व प्रबंधन की जिम्मेदारी राज्य सरकारों को ही सौंप दी जावे ताकि अनाज की बर्बादी पर अंकुश लग सके।

सम्प्रति – लेखक डा.संजय शुक्ला शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय, रायपुर में लेक्चरर हैं।