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गोवर्धन और देवारी तिहार पर भूपेश ने सपरिवार किया गौरी-गौरा, गोवर्धन पूजा

रायपुर, 26 अक्टूबर।छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सपरिवार इस बार भी अपने सरकारी आवास पर गोवर्धन और देवारी तिहार आज पारंपरिक हर्षोल्लास और उत्साह के साथ मनाया।

देवारी तिहार एवं गोवर्धन पूजा उत्सव में मुख्यमंत्री श्री बघेल ने अपनी धर्मपत्नी श्रीमती मुक्तेश्वरी बघेल और परिवार के सदस्यों के साथ गौरा-गौरी और गोवर्धन पूजा की और गौमाता को खिचड़ी खिलाकर प्रदेश की सुख-समृद्धि और खुशहाली की मंगलकामना की।

श्री बघेल ने इस अवसर पर देवरी, गोवर्धन पूजा, भाई दूज, और गौठान दिवस की बधाई देते हुए अपने संबोधन में कहा कि कोरोना के बाद छत्तीसगढ़ में दीपावली बड़े ही उत्साह के साथ मनाई गई। दीपावली के कुछ दिन पहले 17 अक्टूबर को न्याय योजनाओं के अंतर्गत लगभग 1900 करोड़ रुपए की राशि का अंतरण किसानों, पशुपालकों, स्व-सहायता समूहों, भूमिहीन कृषि मजदूरों के खातों में किया गया। इसके साथ ही कर्मचारियों के डीए में बढ़ोतरी और बिजली कर्मचारियों को भी दीवाली पर बोनस दिया गया। इससे छत्तीसगढ़ में इस साल बहुत उत्साह से दीपावली मनाई गई।

उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में एक दूसरे के घर में दीपक पहुंचाने की परंपरा रही है। यह परंपरा लक्ष्मी पूजा से शुरू होती है, गौरा-गौरी पूजन, गोवर्धन पूजा तक इसका निर्वहन होता है। दीपावली, भगवान राम के अयोध्या आगमन के उत्सव का त्यौहार है। इस त्यौहार के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा मनाई जाती है, भगवान कृष्ण जो स्वयं एक क्रांतिकारी विचारक थे उन्होंने न केवल अपने विचारों से बल्कि कार्यों से भी पूरी दुनिया को संदेश दिया। भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत और पशुधन की पूजा को प्राथमिकता दी। हमारी सरकार भी गौ-माता की सेवा करने का काम कर रही है। पशुपालकों को भी इसका लाभ मिल रहा है।

इस मौके पर जय मां सरस्वती समूह की महिलाओं ने छत्तीसगढ़िया वेशभूषा में मनमोहक सुआ नृत्य की प्रस्तुति दी और मगरलोड धौराभांठा के कलाकारों द्वारा बड़े उत्साह के साथ छत्तीसगढ़िया वाद्य यंत्रों एवं पारंपरिक वेशभूषा के साथ राउत नाचा की प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने पारंपरिक वेशभूषा में राउत नर्तक दलों के बीच पहुंचकर उनका उत्साह बढ़ाया।  इस उत्सव के लिए विशेष रूप से छत्तीसगढ़ की परंपरा अनुसार देवारी तिहार और गोवर्धन पूजन उत्सव के लिए मुख्यमंत्री निवास की साज-सज्जा, पारंपरिक ढंग से की गई थी।