डिजिटल रुपया, डिजिटल रुपया, डिजिटल रुपया… बीते एक महीने से इन दो शब्दों की खूब चर्चा हो रही है। इसकी बड़ी वजह रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की तरफ से पहले होलसेल और अब रिटेल सेक्शन की डिजिटल करेंसी (Digital Currency) का ट्रायल शुरू करना है। डिजिटल करेंसी का जब से ट्रायल शुरू हुआ है तब से कई सवाल भी खूब चर्चा में हैं। जैसे क्रिप्टोकरेंसी क्या है? अगर यूपीआई पेमेंट का अच्छा रिस्पॉस है तो फिर डिजिटल करेंसी की जरूरत क्या है? आइए एक-एक करके इन सवालों के जवाब ढूढते हैं।
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क्या क्रिप्टोकरेंसी का विकल्प है डिजिटल रुपया?
प्रोटॉन इंटरनेट एलएलपी के फाउंडर और क्रिप्टोकरेंसी के लेन-देन को करीब से देख रहे शुभम उपाध्याय बताते हैं, “आरबीआई का डिजिटल रुपया और क्रिप्टोकरेंसी दोनों काफी अलग-अलग हैं। क्रिप्टोकरेंसी को रेगुलेट करने वाला कोई नहीं है। लेकिन डिजिटल रुपये के हर एक लेन-देन पर आरबीआई की नजर रहेगी। जहां क्रिप्टोकरेंसी की माइनिंग की जा सकती है, वहीं डिजिटल रुपये को आरबीआई जारी करेगा फिर बैंकों के जरिए यह आम-आदमी तक पहुंचेगा। इसलिए डिजिटल रुपये को क्रिप्टोकरेंसी कहना सही नहीं होगा।”
UPI, NEFT के होने पर डिजिटल रुपये की क्या जरूरत?
इस सवाल के जवाब में शुभम कहते हैं, “यूपीआई की सफलता को कोई भी नजरअंदाज नहीं कर सकता है। भारत की इस पेमेंट सर्विस के आगे दुनिया भर के अलग-अलग देशों की पेमेंट सर्विस कमजोर दिखती है। लेकिन इसके बावजूद जिस तरह से जी-20 के 16 देश डिजिटल करेंसी पर काम कर रहे हैं उनके मुकाबले भारत बहुत पीछे नहीं रह सकता था। दूसरी तरफ चीन के कई शहरों में डिजिटल करेंसी का पायलट प्रोजेक्ट सफलता पूर्वक संचालित हो रहा है, ऐसे में भारत अपने पड़ोसी को इस क्षेत्र में खुला मैदान नहीं देना चाहता है।”
रूस और यूक्रेन युद्ध की वजह से दुनिया भर के देश यह समझ गए हैं कि वैश्विक स्तर पर व्यापार के लिए डॉलर पर निर्भर नहीं रहा जा सकता है। खासकर अमेरिका ने जिस तरह से रूस के फॉरेक्स रिजर्व को सील किया, उसके बाद से कई देशों के मन में यह संशय खड़ा हो गया है कि अगर यही परिस्थितियां उनके साथ बनीं तो फिर उनकी अर्थव्यवस्था का क्या होगा? दुनिया भर के देशों की इस चिंता को डिजिटल करेंसी कम कर सकता है।
डिजिटल रुपये के जरिए भारत कैसे बन सकता है इकोनॉमिक सुपर पॉवर?
हाल ही में नौ रूसी बैंकों ने रुपये में व्यापार के लिए विशेष वोस्ट्रो खाते खोले हैं। विशेष वोस्ट्रो खाता खोलने के कदम से भारत और रूस के बीच व्यापार के लिए रुपये में भुगतान के निपटान का रास्ता साफ हो गया है। बता दें कि वोस्ट्रो खाता दरअसल ऐसा खाता होता है जो एक बैंक, दूसरे बैंक की तरफ से खोलता या रखता है।
शुभम कहते हैं, “पहले ईरान और अब रूस ने जो रास्ता दिखाया है उसका असर आने वाले दिनों में ये हो सकता है कि भारत अलग-अलग देशों की ट्रेड डील में रुपये में भी लेन-देन का विकल्प जोड़ दे। इससे एक तरफ जहां डॉलर पर हमारी निर्भरता कम होगी। वहीं, दूसरी तरफ एक्सपोर्ट भी बढ़ेगा। यही हमारी अर्थव्यवस्था के लिए बूस्टर डोज साबित हो सकता है। और इस पूरे काम में डिजिटल करेंसी की भूमिका काफी अहम रहेगी, क्योंकि इसी के जरिए लेन-देन आसानी और तेजी के साथ संभव हो सकेगा।”
डिजिटल रुपये को लेकर क्या सोच रहा है RBI?
इसी साल नवबंर में हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर शक्तिकांत दास ने एक सवाल के जवाब में बताया, “दुनिया बदल रही है, बिजनेस करने का तरीका बदल रहा है, टेक्नोलॉजी बहुत तेजी से बदल रही है। ऐसे में आपको भी समय के साथ तालमेल बनाए रखने की जरूरत है। ….नोट को प्रिंट करने में पेपर खरीदना, लॉजिस्टिक, स्टोरेज और फिर उसे छापने पर मेहनत के साथ-साथ पैसा भी खर्च करना पड़ता है। पेपर करेंसी की तुलना में यह कम खर्चीला होगा। यह क्रॉस बॉर्डर ट्रांजैक्शन और पेमेंट के लिए काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक अभी विदेश में पैसा भेजने पर औसतन 6 प्रतिशत शुल्क देना पड़ता है। लेकिन सीबीडीसी के आने से यह खर्च काफी कम हो जाएगा। यह आयात और निर्यात करने वालों के लिए काफी फायदेमंद रहेगा।”