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2-जी स्पैक्ट्रम: देश की गुमराह राजनीति और माफीनामे की बातें – उमेश त्रिवेदी

उमेश त्रिवेदी

सीबीआई की स्पेशल कोर्ट में 2-जी घोटाले के सभी आरोपियों के दोषमुक्त हो जाने के बाद देश को एक महती सवाल का उत्तर ढूंढना होगा कि भारत में पक्ष-विपक्ष के राजनीतिक आरोपों की जवाबदेही और राजनीतिक-विमर्श का अनुशासन क्या होना चाहिए ?  पिछले चार दिनों से संसद में कामकाज इसलिए ठप है कि कांग्रेस मांग कर रही है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के खिलाफ पाकिस्तान के साथ मिलकर साजिश रचने के आरोपों को सिध्द करें या देश से माफी मांगे ? सीबीआई की अदालत में 2-जी घोटाला खारिज हो जाने के बाद माफीनामे की बात में कांग्रेस ने यह भी जोड़ दिया है कि 2-जी में झूठे आरोप लगाकर देश को भ्रमित करने के लिए भाजपा देश से माफी मांगे।

माफीनामे की पड़ताल यदि सार्वजनिक सच-झूठ के इंडेक्स पर करेंगे, तो पाएंगे कि राजनीति के शेयर-मार्केट में झूठ के स्टॉक्स सच की तुलना में कई गुना ज्यादा महंगे बिकते हैं। राजनीतिक फरेब के होड़-हुड़दंग और काला-बाजारी की कोई सीमा नहीं है। भोला-भाला देश मुकेश अंबानी की इस बात को सादगी का इंडिकेटर मानकर उनकी बलैंया लेते हुए नहीं थकता है कि वो जेब में पैसे नहीं रखते हैं और ना ही उनके पास क्रेडिट-कार्ड है। सब्ज-बागों के हसीन पेकिंग्स में फरेब का यह सामान चुनाव में खूब बिकता है और ठगाने के बावजूद इनके आगे सिर झुकाने के अलावा जनता के सामने कोई विकल्प नहीं है।

राजनीति में सच-झूठ के अपने पैमाने होते हैं। राजनेता के दायीं ओर जो बात सच होती है, बायीं ओर वही बात झूठ होती है। विशेष अदालत में 2-जी स्पैक्ट्रम के फैसले पर वित्तमंत्री अरुण जेटली का तर्क है कि यूपीए सरकार इसे अपने लिए कैरेक्टर-सर्टिफिकेट नहीं माने, जबकि कर्नाटक में भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के घोटालों पर कोर्ट-जजमेंट को सोने की कलम से लिखी इबारत मानते हुए भाजपा उनके माथे पर राज-तिलक लगाने पर उतारू है। कर्नाटक का अगला चुनाव येदियुरप्पा के नेतृत्व में ही लड़ने की तैयारी चल रही है। यह दिलचस्प है कि एक कोर्ट का फैसला जेटली के लिए खरा है, जबकि दूसरी कोर्ट का निर्णय खोटा है। पार्टियों और राजनेताओं के तर्कों के सिक्कों में ‘हेड-टेल’ जैसी आकृतियां नहीं होती हैं। उनके सिक्कों में सिर्फ ‘हेड’ होता है और इसीलिए उनके तर्कों के अलावा राजनीति में अन्य बातें फिजूल होती हैं। 2-जी स्पैक्ट्रम के निर्णय के बाद मीडिया के मैदान में भाजपा और कांग्रेस अपने-अपने सिक्कों  के साथ ‘हेड-टेल’ करने लगे हैं।

भाजपा कांग्रेस को ‘एडवांटेज’ देने को तैयार नहीं है। यह उसकी राजनीतिक मजबूरी है। यूपीए-सरकार के कार्यकाल में भ्रष्टाचार के आरोपों के घटाटोप में प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह ने कहा था कि मेरे कार्यकलापों का मूल्यांकन आरोपों की राजनीति नहीं, बल्कि देश का इतिहास करेगा। फैसले पर मनमोहन सिंह की राहत भरी प्रतिक्रिया गौरतलब है कि ‘भाजपा ने सारे आरोप खराब नीयत से लगाए थे। सारे आरोप राजनीतिक-प्रोपेगैंडा थे और यूपीए-1 के खिलाफ साजिश थी।’ मोदी के देशद्रोह संबंधी आरोपों के बैक-ड्रॉप में मनमोहन सिंह की प्रतिक्रिया का वजन बढ़ गया है। इतिहास की तुला पर मनमोहन सिंह के कामों की वजनदारी को लोग महसूस करने लगे हैं।

मनमोहन सिंह से माफी मांगने को लेकर जारी संसदीय-गतिरोध में 2-जी स्पैक्ट्रम का मसला कारगर हथियार के रूप में कांग्रेस को मिल गया है। इस मामले में भाजपा आसानी से हथियार डालने वाली नहीं है, क्योंकि यह मसला उसकी राजनीतिक-विश्वसनीयता से जुड़ा है। जाहिर है कि गुजरात के चुनाव में पैदा राजनीतिक कर्कशता की अनुगूंज आसानी से ठंडी होने वाली नहीं है। क्योंकि कोर्ट के आदेश के बाद 2-जी स्पैक्ट्रम घोटाले की रिपोर्ट देने वाले पूर्व-ऑडिटर-जनरल विनोद राय पर भी उंगलिया उठने लगी हैं कि घाटे की काल्पनिक-रिपोर्ट देकर देश को गुमराह करने के लिए विनोद राय को देश से माफी मांगना चाहिए। कांग्रेस के पूर्व दूर संचार मंत्री कपिल सिब्बल ने आरोप लगाया है कि विनोद राय और मीडिया के साथ भाजपा ने ऐसा माहौल बनाया कि टेलीकम्युनिकेशन इंडस्ट्री गंभीर स्थिति से गुजर रही है। कैग से रिटायर होने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने विनोद राय को फरवरी 2016 में बैंक्स बोर्ड ब्यूरो का चेयरमैन बनाया है और मार्च 2016 में उन्हें पद्मभूषण से भी नवाजा था। लोग इस राजनीतिक कृपा के मायने भी पूछ रहे हैं।

यहां यह भी गौरतलब है कि बोफोर्स तोपों की खरीदी के मामले में राजीव गांधी की सरकार के खिलाफ रिपोर्ट देने वाले ऑडिटर-जनरल टीएन चतुर्वेदी को भाजपा ने सांसद-पद से नवाजा था। बाद में उन्हें कर्नाटक का राज्यपाल भी बनाया था। बोफोर्स-कांड में राजीव-सरकार उखड़ गई थी। सवाल यह है कि कैग, चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक-संस्थाओं के पदाधिकारियों पर यह राजनीतिक-कृपा क्यों बरसती है? क्या इस पर कोई रोक नहीं होना चाहिए?

 

सम्प्रति – लेखक श्री उमेश त्रिवेदी भोपाल एनं इन्दौर से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है। यह आलेख सुबह सवेरे के आज 22 दिसम्बर के अंक में प्रकाशित हुआ है।वरिष्ठ पत्रकार श्री त्रिवेदी दैनिक नई दुनिया के समूह सम्पादक भी रह चुके है।