पिछले कुछ दिनों से देश में रेल सुविधाओं और रेल व्यवस्था में भारी गिरावट आई है। वैश्विक कारणों से यानी संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्तावों और समझौतों से जो रियायतें वरिष्ठ नागरिकों, महिलाओं और पत्रकारों को दी गई थी, वे सब वर्तमान मोदी सरकार ने वापस ले ली हैं। यह वापसी की शुरूआत यद्यपि कोरोना के नाम पर हुई थी, परन्तु कोरोना की समाप्ति के बाद इसकी पुनः शुरूआत नहीं की गई। ऐसा लगता है जैसे कोरोना जन सुविधायें छीनने का बहाना था। अगर कोरोना के चलते घाटे की वजह से ये सुविधाएं वापस ली गई, यह तर्क सरकार का हो, तब तो यह भी पूछना होगा कि पूर्व सांसद, पूर्व विधायक को दी जाने वाली रियायतें क्यों वापस नहीं हुई ?
भारतीय रेल को अंग्रेजों ने भारत की अचल संपदा को देश के बाहर ले जाने के लिए शुरू किया था और भारत से लोहा, खनिज आदि विदेश भेजे गए थे। कालांतर में उन्होंने अपनी सत्ता को बचाने के लिए रेल लाईन का इस्तेमाल किया ताकि सेना और पुलिस आसानी से देश के किसी भी कोने में तुरंत पहुंच सके। ऐसा लग रहा है कि आज आजाद भारत की सरकारें उसी नीति पर चल रही हैं। रेलवे के लिए सबसे प्रमुख माल ढोना है, और आम यात्रियों के समय और जीवन के प्रति उनकी चिंता है सरकार को अडानी-अम्बानी की मालगाड़ियां जन जीवन से ज्यादा जरूरी है।
बिहार, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, झारखण्ड आदि प्रदेशों में जहाँ खनिज हैं, वहाँ सरकार की प्राथमिकता केवल खनिज निकालना है और अक्सर सरकारें और जुमले बोलते हैं कि रेल यात्री घाटे का यातायात होता है, और मालगाड़ियां मुनाफा कमाती है, यह भी पूर्ण सच नहीं है। सच तो यह है कि भारतीय रेल में जो सरकारी महकमे के लोग बिना टिकट यात्रा करते हैं उनके कारण घाटा होता है। एसी प्रथम, सी सेकेण्ड यहां तक कि एसी-3 अधिकांश सभी शयनयानों पर माननीय लोग एम.पी., पूर्व एमपी, पूर्व एमएलए और अक्सर उनकी सुरक्षा में तैनात पुलिस बल ही यात्रा करते हैं और इस मुफ्त यात्रा से घाटा होता है।
सुविधा की स्थिति यह है कि बड़ी-बड़ी दूरी वाली रेल गाड़ियों में बास बेसिन टूटे हुए हैं जिनकी सालों से कोई मरम्मत नहीं हुई। देश के रेल यात्रियों की प्रतिष्ठित शताब्दी गाड़ी में जो बड़ी महंगी और प्रतिष्ठापूर्ण गाड़ी समझी जाती है, रेल मंत्री जी यात्रा करके देखें तो उन्हें तथ्य मालूम पड़ जाएगा। मैं गत 18 दिसंबर 22 को बैंगलोर से कर्नाटक एक्सप्रेस से दिल्ली गया था। ऐसी सेकण्ड श्रेणी में आरक्षण था, बैंगलोर से चलकर तीसरे स्टेशन येलूहंका पर टीटी महोदय आए। दरअसल वे सेकण्ड एसी के यात्रियों के बीच विवाद सुलझाने आए थे। मैं जिस सीट पर बैठा था, उसी सीट पर एक और महिला दावेदार आ गई थी, जब मैंने टीटी महोदय को बताया तो उन्होंने अपने कागजात पत्रक देखकर बताया कि मेरी श्रेणी का अपग्रेड हो गया है, और मुझे एच-1 में ई-कूपे में बर्थ दी गई है। मेरी उम्र 77 के आसपास है, परन्तु ई कूपे में जो बर्थ दी गई थी, वह ऊपर की थी, जिस पर मुझे चढ़ना संभव नहीं था। जबकि मैंने अपने आरक्षण में नीचे की बर्थ मांगी थी, वही मुझे मिली भी थी। मैंने टीटी महोदय से कहा कि मैं ऊपर नहीं चढ़ सकता, जबकि नीचे की बर्थ पर एक नवयुवक को आरक्षण दिया गया था, जो मुश्किल से 30 वर्ष के होंगे। क्या यह रेलवे की असावधानी नहीं है? मैं दो रात बिल्कुल भी नहीं सो सका और नीचे की बर्थ पर कोने में बैठकर समय काटा। एच ए-1 में एसी सेकण्ड टायर के कमोड टूटे हुए थे जिन पर बैठना भी कठिन था। एसी सेकण्ड टायर के संडासों में भी लगभग यही स्थिति थी न उनमें पानी था न सफाई थी। यहां तक कि वास बेसिन में ब्रश करने लायक पानी भी नहीं था, जो चादर बेड रोल दिए गए थे, वे भी इतने गंदे थे कि उनमें खाने का दाग लगे हुए थे और यह स्थिति अकेले मेरे ही चादरों की नहीं थी, बल्कि अधिकांश यात्रियों के बेड रोल की थी। इसी प्रकार 28 दिसम्बर को मैं निजामुद्दीन से दुर्ग हमसफर एक्सप्रेस में सागर से आरक्षण कराकर बिलासपुर गया था। हमसफर गाड़ी पूरी एसी होती है और उसका किराया भी ज्यादा होता है। उस गाड़ी की स्थिति यही थी कि ना तो संडास साफ थे, बल्कि इतने गंदे थे कि बदबू मार रहे थे। ना चादर साफ थे, ना संडास, वास बेसिन में पानी नहीं था। इसी प्रकार कर्नाटक एक्सप्रेस में पानी की शिकायत मैंने सुबह 139 नंबर पर की थी उस पर मुझे उत्तर आया कि विजयवाड़ा स्टेशन पर पानी भर दिया जाएगा। जबकि उस समय गाड़ी मथुरा स्टेशन पर थी या दिल्ली के नजदीक पहुंचवने वाली थी तथा मैं दिल्ली की यात्रा कर रहा था। शिकायतों को देखने वाले शिकायत का हल बिना गाड़ी देखे कर रहे है। वे इतना भी नहीं जानते कि बेड रोल की गंदगी की शिकायत अमूमन सभी गाड़ियों की मिल रही है। ऐसा लगता है कि ठेकेदार लोगों ने बेड रोल को एक यात्रा के बाद धुलवाना बंद कर दिया है और पैसा खाये जा रहे हैं।
छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में आने वाली अधिकांश रेल गाड़ियां कैंसिल कर दी जाती है, या डायवर्ट कर दी जाती है। हमसफर एक्सप्रेस सागर लगभग तीन घंटे लेट आई थी, और इसी प्रकार वह बिलासपुर दो घंटे लेट पहुंची थी, रास्ते में मैंने रेल अधिकारियों से पूछा तो उन्होंने बताया कि यह तो हर ट्रेन की कहानी है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अभी 30 दिसम्बर 22 को प्रधानमंत्री श्री मोदी जी से मिले थे। उन्होंने छत्तीसगढ़ के लाखों रेल यात्रियों की तकलीफों के बारे में, गाड़ियों के अनियमितताओं के बारे में, और रद्द हो जाने के बारे में उन्हें अवगत कराया है ऐसा उन्होंने प्रेस को कहा है। मैं नहीं जानता हूं कि सीएम के द्वारा पीएम को दी गई शिकायत को लेकर खुद मुख्यमंत्री जी संजीदा हैं या नहीं और प्रधानमंत्री जी भी उस बाबत् कितने संजीदा हैं? या तो दोनों के द्वारा केवल प्रचारात्मक औपचारिकता भर की गई है, मुख्यमंत्री के द्वारा बताई गई, परंतु यह सूचना अखबारी खबर बनी है, और लाखों यात्रियों ने उसे पढ़कर मुख्यमंत्री को धन्यवाद दिया कि कम से कम उन्होंने बात तो पहुंचाई। इसी प्रकार प्रधानमंत्री ने उन्हें आश्वस्त कर अपनी लोकतांत्रिक संवेदनाशीलता और प्रशासनिक छवि को मजबूत किया है। कुल मिलाकर सीएम और पीएम के उद्देश्य पूरे हो गए परन्तु यात्रियों का संकट अभी भी यथावत है। अच्छा होता कि अगर मुख्यमंत्री इन हालातों के सुधार के लिए कोई ठोस प्रस्ताव लेकर जाते और प्रधानमंत्री जी भी एक प्रदेश के मुख्यमंत्री की शिकायत पर तत्काल कुछ ठोस निर्णय करते। रेल मंत्री और रेल अध्यक्ष को बुलाते। कुछ हल निकालते परंतु भारतीय राजनीति जिस सिद्धांत पर चल रही है, वह है – तुम्हारी भी जय… जय…. हमारी भी जय… जय… न तुम हारे ना हम हारे।
मैं प्रधानमंत्री मोदी जी से अपील करूगा कि:-
1.वरिष्ठ नागरिकों को उनकी उम्र के आधार पर उन्हें नीचे की सीट देने का नियम बने, अगर नियमों में सीट खाली नहीं है तो उन्हें आरक्षण लेने से इंकार करने का अवसर मिले।
- रेलवे की शिकायतों के लिए 139 नंबर के साथ कोई मोबाईल नं. भी रहे, जिस पर यात्री एस.एम.एस. या वाट्सअप से शिकायत कर सके ताकि उसका रिकार्ड रहे व निराकरण कर दिए जाने की गलत सूचना दर्ज न हो सके।
- अगर कोयला लोडिंग के वजह से यात्री गाड़ियों का विलंब होना या निलंबित होना जरूरी हो गया हो तो फिर इन यात्री गाड़ीयों के समय को कुछ इस ढंग से निर्धारित किया जाए ताकि एक दो घंटे के अंदर वे सभी गाड़ियां निकल जाएं और उस अवधि में मालगाड़ियों को रोका जाए। अगर किसी आकिस्मक कारण से किसी गाड़ी को रीसिडूल करने की आवश्यकता हो तो उसकी सूचना कम से कम 24 घंटे पूर्व यात्रियों को दी जाए, तथा उन्हें दूसरी गाड़ी से यात्रा करने का भी विकल्प दिया जाए।
- रेलवे का पुराना नियम लागू किया जाए तथा वरिष्ठ नागरिकों, पत्रकारों आदि को किराये में रियायत बहाल की जाए। प्रधानमंत्री जी भारत के 140 करोड़ लोगों में से 100 करोड़ लोग आज भी यात्री गाड़ियों में चलने को लाचार हैं। उनकी आर्थिक क्षमता इतनी नहीं है कि वे अधिक किराया दे सकें। सारे भारत को हवाई जहाज के चश्में से ना दे रहे।
सम्प्रति- लेखक श्री रघु ठाकुर जाने माने समाजवादी चिन्तक और राम मनोहर लोहिया के अनुयायी हैं।श्री ठाकुर लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के भी संस्थापक अध्यक्ष हैं।