नई दिल्ली 05 जनवरी।संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी गई है।
शीतकालीन सत्र के आखिरी दिन आज लोकसभा ने कार्यसूची में शामिल सामान्य कामकाज निपटाया। अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा कि सत्र के दौरान 12 विधेयक पारित किए गए जिनमें तीन तलाक और दिवाला संहिता संशोधन भी शामिल हैं। कार्यवाही में व्यावधानों की वजह से बर्बाद हुए 15 घंटों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि सदन ने आठ घंटे अतिरिक्त बैठकर कामकाज निपटाया।
सत्र में कुल मिलाकर 12 विधेयक पारित किए गए। पारित किए गए कुछ महत्वपूर्ण विधेयक निम्नानुसार हैं। केंद्रीय सड़क निधि संशोधन विधेयक 2017, द रिक्वीजिशन एंड एक्युजिशन ऑफ इममुवेबल प्रोपर्टी बिल 2017, द नेशनल कैपिटल टैरिट्री ऑफ देहली लॉ स्पेशल प्रोविजन सेकंड एमेनमेंट बिल, गुड्स एंड सर्विस टैक्स कम्पनसेशन टू स्टेट्स अमेनमेंट बिल, एसॉलवेंशी एंड बैंककर्प्सी कोड बिल, द मुस्लिम महिला विवाह अधिकार विधेयक प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑफ मैरेज बिल, उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश वेतन और सेवा शर्त बिल।बाद में लोकसभा अध्यक्ष ने सदन की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी।
राज्यसभा में सभापति एम वेंकैया नायडु ने बताया कि सदन ने सत्र के दौरान 9 सरकारी विधेयक पारित किए और चार सौ प्रश्नों के उत्तर मौखिक दिए।उन्होंने कार्यवाही में व्यावधान पर खेद व्यक्त करते हुए कहा कि इस बारे में विचार-विमर्श की आवश्यकता है।
राज्यसभा ने आज सेवानिवृत्त होने वाले अपने तीन सदस्यों को भावभीनी विदाई दी। डॉक्टर कर्ण सिंह, श्री जर्नादन द्विवेदी और श्री परवेज हाशमी इस महीने की 27 तारीख को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली का प्रतिनिधित्व करने वाले ये तीनों सदस्य कांग्रेस के हैं। सभापति एम वेंकैया नायडु ने कहा कि सदन और संसदीय समितियों में इन सदस्यों का योगदान महत्वसपूर्ण रहा जिससे संसदीय लोकतंत्र को मजबूत करने में मदद मिली।
सदस्यों की प्रशंसाओं का जवाब देते हुए डॉक्टर कर्ण सिंह ने कहा कि सदन में विचारविमर्श और बहस के स्तर में गिरावट आई है और कार्यवाही में व्यवधान भी बहुत बढ़ गए हैं।उन्होने कहा कि..इतने वर्षों में संसद का विकास होते देखना शानदार रहा और यह भी कि किस तरह से हमारा संविधान हमारे आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक बाध्यताओं को अंगीकार करने के लिए लचीला रूख अपनाता है।मेरे विचार से,इन 50 सालों में हमें थोड़ा ध्यान देने की जरूरत है कि हम ऐसा क्या करें, जिससे यह सुनिश्चित हो कि विचारों और आदर्शों में मतभेद के बावजूद संसदीय प्रणाली सुचारू रूप से चलती रहे..।
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