बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हाल में कहा था कि कि उन्होंने जिसे आगे बढ़ाया उसने ही धोखा दिया। नीतीश का राजनीतिक सफर बताता है कि चार दशक के दौरान छोटे-बड़े दर्जनों नेताओं ने साथ छोड़ा। जीतनराम मांझी, पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा एवं आरसीपी सिंह का नाम लिया, लेकिन सूची यहीं तक सीमित नहीं है।
बारी-बारी से बिखरे चारों दोस्त
बात पटना के 32 नंबर विधायक फ्लैट से 1977 से शुरू होती है। चार दोस्त थे। विजय कृष्ण, बशिष्ठ नारायण सिंह एवं बालमुकुंद शर्मा के साथ नीतीश कुमार। बारी-बारी से चारों बिखर गए। विजय कृष्ण ने तो 2004 में बाढ़ संसदीय क्षेत्र से नीतीश को हराया भी। बशिष्ठ नारायण जरूर अभी साथ हैं, किंतु एक दौर ऐसा भी आया जब समता पार्टी का विलय जदयू में होने लगा तो उन्होंने साथ नहीं दिया। यहां तक कि नीतीश के विरुद्ध अभियान भी चलाया। बालमुकुंद का रास्ता भी अलग हो गया। नीतीश के कभी करीबी रहे कई नेता आजकल लालू प्रसाद की टीम में भी हैं।
शिवानंद तिवारी ने छोड़ा नीतीश का साथ
लोहिया विचार मंच के प्रमुख रह चुके शिवानंद तिवारी भी नीतीश के साथ समता पार्टी में थे। उन्हें भी राज्यसभा भेजा गया। किंतु कुछ दिन बाद लालू के पास लौट आए। जगदानंद सिंह अभी राजद के प्रदेश अध्यक्ष और नीतीश की नीतियों के आलोचक हैं। अतीत में उन्हें भी नीतीश ने शीर्ष पर पहुंचने में मदद की। नीतीश के बचपन के मित्र ललन सिंह भी एक बार छिटक चुके हैं। अभी पार्टी की कमान उन्हीं के हाथ में है। मंत्री विजय चौधरी एवं जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी जरूर लंबे समय से साथ बने हुए हैं। किंतु केसी त्यागी का अगला कदम क्या होगा, यह समय बताएगा।
एनके सिंह व दिग्विजय सिंह से भी हुई अनबन
नीतीश ने कभी दिग्विजय सिंह को राज्यसभा भेजा। उनसे भी अनबन हो गई। उद्योगपति मुकेश अंबानी की सिफारिश पर एनके सिंह को भी राज्यसभा भेजा। अब वह इधर-उधर हैं। महेंद्र सहनी के पुत्र अनिल सहनी एवं पसमांदा मुस्लिम की राजनीति से उभरने वाले अली अनवर को राज्यसभा में दो-दो मौके दिए। बाद में दोनों विरोधी हो गए। राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश को भी नीतीश का उपकृत माना जाता है।
चार दलों की जड़ें भी जुड़ीं
बिहार में सक्रिय चार दलों की जड़ें भी नीतीश कुमार से ही निकली हैं। जनता दल को तोड़कर समता पार्टी की पटकथा तो नीतीश ने ही लिखी थी। जीतनराम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) की उत्पत्ति के पीछे भी नीतीश की कृपा ही है। मांझी को नीतीश ने ही मुख्यमंत्री बनाया। बाद में अलग होकर पार्टी बना ली।
राष्ट्रीय लोक जनता दल के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा पर नीतीश की दो-दो बार कृपा बरसी। पहले विधानसभा में प्रतिपक्ष का नेता बनाया। राज्यसभा भी भेजा। किंतु उन्होंने भी साथ नहीं दिया। अलग होकर लोकसमता पार्टी बनाई एवं केंद्र में मंत्री बने। 2019 में हारने के बाद फिर नीतीश के साथ आए और एमएलसी बने। किंतु दो वर्ष होते-होते साथ छोड़ दिया।