
पंजाब नैशनल बैंक व्दारा प्रायोजित 11000 करोड़ के ‘द ग्रेट इंडियन बैंकिंग शो’ के महानायक, गीतांजलि, गिन्नी, नक्षत्र और नीरव के ब्राण्ड-नेम से हीरे-जवाहारात के चमचमाते गहनों की मन-भावन श्रृंखला के महान रचनाकार, मालिक नीरव मोदी का भाग कर विदेश चले जाना जेम्स बॉण्ड के कारनामों से भी ज्यादा हैरतअंगेज है। देवकीनंदन खत्री की चंद्रकांता संतति के अय्यारों और आर्थर कानन डॉयल के ‘शरलॉक होम्ज’ की जासूसी, अय्यारियों और मक्कारियों को मात करने वाला यह कारनामा अपने पीछे जो क्लू छोड़ रहा है, वो शासन-प्रशासन और समाज के शिखर पर विराजमान राजनेताओं, अधिकारियों और उद्योगपतियों के गठजोड़ की ओर इशारा करते हैं।
‘ग्रेट इंडियन बैंकिंग शो’ की रहस्यमयी स्क्रिप्टठ का दिलचस्प पहलू यह भी है कि सारे लुटेरे एक छत के नीचे इकट्ठा होकर गुनाहगारों को फिक्स करने की कोशिश कर रहे हैं। मोदी-सरकार के प्रवक्ता स्कैण्डल पर ‘घोटाला-2011’ की सील चस्पा कर इसे यूपीए-सरकार का पाप निरूपित कर रहे हैं, जबकि यूपीए के ढाई-तीन साल के बाद, मोदी-सरकार के चार सालों के दरम्यान भी नीरव मोदी के लूट-शो का राजनीतिक-ग्लैमर बरकरार रहा। इस परिप्रेक्ष्य में नीरव मोदी के इस शो की ब्राडिंग कुछ यूं भी हो सकती है- ‘द ग्रेट इंडियन बैंकिंग शो- तीन साल, मनमोहन सिंह बनाब चार साल, नरेन्द्र मोदी …।’ मोदी-सरकार यह कैसे भूल रही है कि उसके कार्यकाल में भी नीरव मोदी पूरी शिद्दत से बैंकिंग-संसाधनों का शोषण कर रहा था? ‘दे ग्रेट इंडियन बैंकिंग शो’ में कई राजनीतिक और प्रशासनिक सीक्रेट छिपे हैं। ये सीक्रेट चौंकाने वाले हैं। शक की सुई भाजपा और कांग्रेस के बीच घूम रही है। पेण्डुलम भाजपा की ओर झुका हुआ है।
नीरव मोदी से जुड़े राजनीतिक आरोपों के मामले में मोदी-सरकार के प्रवक्ताओं के तेवरों में तीखापन दर्शाता है कि दाल में कुछ काला है। नीरव मोदी से उनका पिंड आसानी से छूटने वाला नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी के पास इसका जवाब नहीं है कि उनके कार्यकाल में भी पंजाब नैशनल बैंक के कारिन्दे नीरव मोदी की फैक्टरी में ‘डायमण्ड-कटिंग’ क्यों और कैसे करते रहे? मोदी-सरकार के कार्यकाल में तीन चर्चित घपलों में नीरव मोदी का घोटाला राजनीतिक रूप से उन्हें ज्यादा परेशान करेगा। ललित मोदी के 275 करोड़ के आयपीएल घोटाले और विजय माल्या के 6-7 हजार करोड़ के घोटालों की तुलना में नीरव मोदी कांड कई गुना बड़ा है। लेकिन इन तीनों घोटालों में कॉमन-फैक्टर यह है कि ललित मोदी, विजय माल्या और आखिर में नीरव मोदी हजारों करोड़ रूपए की पालकी अपने कंधों पर उठाकर फुर्र हो गए।
सवाल यह है कि इन तीनों लुटेरों को नरेन्द्र मोदी की सल्तनत में फरार होने के लिए ‘सेफ-पैसेज’ कैसे मिला और किसकी बदौलत मिला ? भाजपा महज यह कहकर नहीं बच सकती कि घोटालों की जो सहस्त्र धारा यूपीए सरकार के कार्यकाल में बह रही थी, ललित मोदी, विजय माल्या और नीरव मोदी उसी का राष्ट्रीय उत्पाद हैं। 2014 में नरेन्द्र मोदी को जनादेश ही यह मिला था कि वो कांग्रेस की सत्तर साल पुरानी गंदगी को साफ करेंगे। नरेन्द्र मोदी यह कहते नहीं थकते थे कि ‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा।’ लेकिन भ्रष्टाचार की दावतों का सिलसिला आज-तक नहीं रुका है। आर्थिक लुटेरों को ‘सेफ-पैसेज’ देने की रणनीति भी लगभग समान है। तीनों के खिलाफ मामले उनके उड़ जाने के बाद ही दर्ज किये गए हैं। उनके खिलाफ लुकआउट नोटिस, पासपोर्ट जब्त् करने या इंटरपोल से मदद मांगने का क्रम समान रहा है। तीनों की फरारी में सरकार की ‘मोडस-ऑपरेण्डी’ में समानता के कारणों का पता लगाया जाना चाहिए।
मोदी-सरकार चार सालों में घोटालेबाजों की पहचान क्यों नहीं कर पाई? लोकतंत्र में सरकार एक सतत चलने वाली स्थायी प्रक्रिया है। सत्ता-परिवर्तन से यह निरन्तरता खत्म नहीं होती है। प्रधानमंत्री के बनने या हटने से सरकार का कारोबार और कारिन्दे नहीं बदलते हैं। फिर भाजपा और उसके कर्ताधर्ता राजनीति में जिस भोलेपन का परिचय दे रहे हैं, राजनीति उतने भोलेपन से नहीं चलती है। जो राजनीति के गलियारों की तासीर से वाकिफ हैं, वो भलीभांति जानते हैं कि पक्ष-विपक्ष के हर बड़े और सक्रिय नेता और अधिकारी को शासकीय और राजनीतिक मशीनरी के पापों की समूची जानकारी होती है और उन पापियों की जन्मपत्री उनके पास होती है, जिनके पाप-कर्म घोटालों की इबारत लिखते हैं।
ललित मोदी से विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की प्रीति किसी से छिपी नहीं है और विजय माल्या भाजपा की मदद से ही राज्यसभा की देहरी लांघ सके थे। भाजपा के प्रवक्ता नीरव मोदी से संबंधों को नकार रहे हैं। लेकिन क्या यह विश्वसनीय है कि हर मुद्दे पर बारीक नजर रखने वाले नरेन्द्र मोदी की नजर में सीआयआय की सूची में उन उद्योपतियों की जानकारी नहीं हो, जो उनके प्रेजेंटेशन का हिस्सा हों… मोदी उस नीरव मोदी नाम के उस व्यक्ति को नहीं जानते, जो अंबानी परिवार का रिश्तेदार हो… उस नीरव मोदी को नहीं जानते, न्यूयार्क के मेडिसन-एवेन्यू में जिसके ज्वेलरी शो-रूम का उद्घाटन डोनाल्ड ट्रम्प ने किया था। उस वक्त वो राष्ट्रपति नहीं बने थे…उस नीरव मोदी को नहीं जानते हों,जो उनके फोटो-शूट का हिस्सा हो…। मोदी-सरकार को यह सफाई तो देना ही पड़ेगी कि नीरव मोदी की फरारी के लिए कौन जिम्मेदार है?
सम्प्रति- लेखक श्री उमेश त्रिवेदी भोपाल एनं इन्दौर से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है। यह आलेख सुबह सवेरे के 17 फरवरी के अंक में प्रकाशित हुआ है।वरिष्ठ पत्रकार श्री त्रिवेदी दैनिक नई दुनिया के समूह सम्पादक भी रह चुके है।
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