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चुनाव की फसल के लिए किसानों का पानी समुन्दर में बहाया – उमेश त्रिवेदी

उमेश त्रिवेदी

12 दिसम्बर, 2017 को नर्मदा के पानी से किलकारी भरती साबरमती के रिवर-फ्रंट से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सी-प्लेन की उड़ान गुजरात विधानसभा चुनाव अभियान के दौरान महत्वपूर्ण और सबसे ज्यादा बिकाऊ चुनावी-पलछिन थे। सी-प्लेन के जरिए मोदी ने भाजपा की संभावनाओं में चार चांद जड़े थे और जबरदस्त प्रचार बटोरा था। साबरमती की लहरों के साथ भाजपा के कार्यकर्ता भी किलक रहे थे कि ‘रामा-रामा गजब हो गया’। लेकिन यह बात शायद ही किसी को पता होगी कि चुनाव की फसल काटने के लिए भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने गर्मी में गरीब किसानों की खेती के लिए जमा नर्मदा के पानी को समुन्दर में बहा दिया है। और अब, चुनाव जीतने की खातिर सरदार सरोवर बांध का पानी बेवक्त खंभात की खाड़ी याने अरब सागर में बहा देने के वाले गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी किसानों से दुराग्रह कर रहे हैं कि वो गर्मी में खऱीफ की किसी फसल की बुवाई नहीं करें…।

हिन्दुस्तान में यह अपनी तरह की पहली घटना है कि कोई मुख्यमंत्री अपने राज्य के किसानों को यह हिदायत दे कि वो बुवाई नहीं करें, क्योंकि खेती के लिए आरक्षित पानी चुनाव की संभावनाओं को हरा-भरा बनाने में व्यय हो चुका है। विजय रूपाणी की राजनीतिक दबंगई सिर्फ किसानों तक सीमित नहीं है। उससे भी आगे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की सरपरस्ती में गुजरात ने नर्मदा से अतिरिक्त जल-प्रदाय के लिए मध्यप्रदेश को आंखें दिखाना भी शुरू कर दिया है। मध्यप्रदेश सरकार पेशोपेश में है कि गुजरात की इस जिद को कैसे पूरा किया जाए?

गुजरात में नर्मदा नदी पर बना सरदार सरोवर बांध लगभग खाली हो चुका है। मुख्य जलाशय का स्तर 112.22 मीटर रह गया है। इसका न्यूनतम जलस्तर 110.7 मीटर होना चाहिए। हालात गुजरात विधानसभा चुनाव की बदौलत बने हैं। सितम्बर 2017 में सरदार सरोवर में 130.74 मीटर पानी था। दिसम्बर 2017 में भी जलस्तर 124 मीटर था,लेकिन गुजरात चुनाव के दरम्यान सरदार सरोवर का 12 मीटर पानी बहाने के कारण किसानों और आम जनता को ये दिन देखना पड़ रहे है।

मुख्यमंत्री विजय रूपाणी की मंशा है कि मप्र सरकार इंदिरा सागर और ओंकारेश्वर बांध के जरिए गुजरात को मिलने वाले पानी की मात्रा और रफ्तार बढ़ा दे, ताकि वह खरीफ के मौसम में जल-संकट से निपट सके। गुजरात की इच्छा है कि मप्र  से मिलने वाले पानी को रिशिड्यूल किया जाए। गुजरात की राजनीतिक-प्रभुता रंग दिखाने लगी है। मप्र में भाजपा सरकार की यह हैसियत नहीं है कि वो प्रधानमंत्री मोदी के गृह राज्य को मन-मुआफिक पानी देने से इंकार कर सके।

फिलवक्त मध्यप्रदेश ने नर्मदा सागर से गुजरात के लिए ज्यादा पानी छोड़ना शुरू कर दिया है। मध्य प्रदेश ने जितना पानी जनवरी में दिया था, फरवरी के पहले पखवाड़े में उसका दो-तिहाई हिस्सा दिया जा चुका है। यदि इसी रफ्तार से पानी का सप्लाय जारी रहा तो गुजरात के पानी का कोटा 15 अप्रैल तक खत्म हो जाएगा। शिड्यूल के मुताबिक यह पानी 15 जून तक दिया जाना है। गुजरात की एक मुश्त पानी देने की जिद मध्य प्रदेश के सामने भी संकट पैदा कर रही है। इन हालात में मध्य प्रदेश की आधी आबादी 25 मई के बाद पानी के लिए त्राहि-त्राहि करने लगेगी। मप्र में भी इंदिरा सागर बांध का जलस्तर फिलहाल 252 मीटर है। इसका न्यूनतम स्तर 247 मीटर है। पुनासा उद्वहन सिंचाई योजना से हर साल किसानों को पांच बार पानी दिया जाता था,लेकिन इस बार तीन बार से ज्यादा पानी नहीं दिया जा सकेगा।

नर्मदा के मामले में प्रधानमंत्री मोदी का रुझान और झुकाव हमेश गुजरात की तरफ रहा है। 12 जून 2017 को नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण की बैठक की खुद अध्यक्षता करते हुए मोदी ने गुजरात के केवड़िया स्थित सरदार सरोवर बांध पर 17 मीटर ऊंचे गेट लगाकर बांध की ऊंचाई 121.92 मीटर से बढ़ाकर 138.38 मीटर करने की मंजूरी दे दी थी। गुजरात की तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल के ट्वीट के अनुसार ये गुजरात में अच्छे दिनों की शुरुआत थी, मप्र के लिए यह बुरे दिनों का अपशकुन था। मोदी की सरपरस्ती में मप्र के लिए गुजरात की भूमिका कभी भी अच्छे पड़ोसी की नहीं रही है। गुजरात ने महज इसलिए गिर के सिंह देने से इंकार कर दिया था कि इससे उसकी पहचान जुड़ी है। नर्मदा योजना के मामले में मप्र घाटे में रहा है। मप्र ने करीब 20,882 हेक्टेयर उपजाऊ जमीन की डूब और तकरीबन 45 हजार परिवारों के विस्थापन के साथ इसकी कीमत चुकाई है। भाजपा समर्थक मानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का चुनाव प्रबंधन बेमिसाल है। लेकिन हजारों किसानों का निवाला छीनने वाले चुनाव प्रबंधन को कैसे सराहा अथवा स्वीकार किया जा सकता है?

 

सम्प्रति- लेखक श्री उमेश त्रिवेदी भोपाल एनं इन्दौर से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है। यह आलेख सुबह सवेरे के 19फरवरी के अंक में प्रकाशित हुआ है।वरिष्ठ पत्रकार श्री त्रिवेदी दैनिक नई दुनिया के समूह सम्पादक भी रह चुके है।