भले ही पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी आज हमारे बीच में नहीं हैं , लेकिन उनके आदर्श व गोनर्द की धरती पर में छोड़ी गईं यादें आज भी यहां के लोगों के दिलों में बसी हैं। अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत अटल बिहारी वाजपेयी ने अविभाजित गोंडा की बलरामपुर संसदीय सीट से ही की थी।
अटल जी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में हुआ था, लेकिन राजनीतिक जन्मस्थली गोनर्द की भूमि रही है। भारत रत्न व पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कर्मस्थली होने के कारण आज भी गोनर्दवासी गौरव महसूस करते है। अटल जी की राजनीतिक पारी खास तौर पर यहीं से शुरू हुई थी। वह जनसंघ के टिकट पर अविभाजित गोंडा की बलरामपुर संसदीय सीट से 1957 से चुनाव जीते थे।
1967 में बलरामपुर से जीता था चुनाव
वर्ष 1962 का चुनाव वह हार गए थे, लेकिन वर्ष 1967 में वह एक बार फिर इसी सीट से सांसद चुने गए थे। हालांकि अब बलरामपुर गोंडा से अलग होकर नया जिला हो गया है। यह सीट भी उसी जिले में चली गई। वहीं, रामजन्मभूमि आंदोलन के दौरान भी अटल जी यहां पर खासा सक्रिय रहे। वह नेता प्रतिपक्ष रहते हुए भी कई बार यहां आए और कार्यकर्ताओं में जोश का संचार किया।
गोंडा आज भी अटल बिहारी वाजपेयी की यादें संजोये है। इटियाथोक के जयप्रभाग्राम, दतौली, चौक बाजार व प्रेम पकड़िया, माधवपुर सहित कई क्षेत्रों में यहां उनकी चौपाल सजती थी। पूर्व विधायक तुलसीदास रायचंदानी के अलावा कई लोग उनके साथ रहा करते थे। कहते हैं अटल जी की यादें ही उनकी पूंजी। वह उन पलों को याद कर भाव विभोर हो उठते हैं।
कार्यकर्ताओं में यूं भरते थे जोश
वर्ष 1962 में अटल जी बलरामपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव हार गए थे। हार की सूचना मिलने पर कार्यकर्ता निराश खड़े थे। अटल बिहारी वाजपेयी आवास-कार्यालय से बाहर निकले और निराशा का भाव दूर करने के लिए कार्यकर्ताओं से कहा कि निराश मत हो, मैं फिर चुनाव लड़ूंगा और जीतूंगा। इसके बाद वह वर्ष 1967 में वह वहीं से चुनाव जीते भी। यहां से सीट छोड़ने के बाद भी उनका लगाव यहां के लोगों के प्रति बना रहा।
प्रधानमंत्री बनने के बाद दी थी सौगात
वर्ष 2004 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सरयू नदी पर बने गोंडा के शिवदयालगंज कटरा-अयोध्या रेलवे लाइन और रेलवे पुल का लोकार्पण किया था, इसके बाद वह कटरा से विशेष ट्रेन से अयोध्या गए थे। इस तरह उन्होंने गोंडा व बलरामपुर के लोगों को अयोध्या से सीधे रेल सेवा से जोड़ने का काम किया। इससे काशी और प्रयागराज की रेल सेवा भी सुगम हुई।