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मोदी के ‘फिटनेस-मार्केट’ में गरीब-राजनीति का खलल – उमेश त्रिवेदी

उमेश त्रिवेदी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की नई जवानी को चुस्त-दुरुस्त और फिट रखने की नीयत से सुबह की अपनी कसरत का 1 मिनट 48 सेकण्ड का वीडियो ट्वीटर पर शेयर किया है। इस वीडियो को शेयर करने के बाद उन्होंने ’हम फिट तो इंडिया फिट’ अभियान के तहत थुल-थुल बदन वाले कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी को फिटनेस-चैलेंज दिया है।  कुमारस्वामी ने चैलेंज मंजूर तो कर लिया, लेकिन उसे कर्नाटक राज्य की फिटनेस से जोड़कर मोदी के फिटनेस अभियान के राजनीतिक स्वरूप में ऩए आयाम जोड़ दिए।

उन्होंने मोदी से अपेक्षा की है कि वो कर्नाटक राज्य की फिटनेस का ध्यान रखें। सामान्य तौर पर हिन्दुस्तान में पुरुषों के लिए सामान्य भोजन में प्रति दिन 2500 कैलोरी और महिलाओं के लिए 2000 कैलोरी ऊर्जा जरूरी होती है। जबकि वैश्‍विक खाद्य सुरक्षा सूचकांक की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत में  23 करोड़ लोग अल्पपोषित श्रेणी में आते हैं। इन्हें जीवनयापन में रोजाना औसतन बमुश्किल 240 कैलोरी ऊर्जा मिल पाती है।

इन आंकड़ों के परिप्रेक्ष्य में कुमारस्वामी ने कर्नाटक की फिटनेस की बात करके देश और समाज की उन बीमार सच्चाइयों को नंगा किया है, जो आम-जनता की फिटनेस में सबसे बड़ा अवरोध हैं। कार्पोरेट अथवा नव-धनाढ्यों में प्रचलित ’फिटनेस’ का मनोरंजक शिगूफा हिन्दी के महाकवि पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के सड़क पर कटोरा लेकर भटकते उन भिखमंगों को कैसे रास आएगा, भूख की वजह से जिनके पेट और पीठ मिलकर एक हो चुके हैं।

देश के नव-धनाढ्य तबके में ’फिटनेस’ का शिगूफा फिल्म स्टार सलमान खान के सिक्स-पैक की देन है। सलमाल खान के सिक्स-पैक में छलकती कथित सेक्स-अपील की अवधारणाओं ने उच्च मध्यम वर्ग के युवाओं को खूब आकर्षित किया है। ’सिक्स-पैक’ के इस मार्केटिंग हथकण्डे ने गोल्ड्स जिम, तलवलकर्स, फिटनेस फर्स्ट, स्टील-जिम, रीबॉक क्रॉसफिट, स्नैप जिम, ऑजोन फिटनेस जैसी जिमनेशियम की श्रृंखलाओं का बाजार सुर्ख कर दिया है। युवाओ में ’सिक्स-पैक’ के इस क्रेज में राजनीतिक लोकप्रियता की तलाश का यह अजब-गजब खेल इन दिनों काफी सुर्खियां बटोर रहा है। फिटनेस के नाम पर युवाओं के बीच लोकप्रियता की तलाश की इस पहल को मोदी ने हथिया लिया है। टीवी चैनलों पर प्रधानमंत्री मोदी के फिटनेस-वीडियो की कहानियों को पतंगों की तरह हवा में उड़ाया जा रहा है।

फिटनेस की पतंगबाजी का सिलसिला सोशल मीडिया के अखाड़े (सभ्य-सुसंस्कृत भाषा में जिम) में, देश के नीति-नियंताओं और धनपतियों के बीच पिछले महीने उस वक्त शुरू हुआ, जब मिलिट्री ’बैक-ग्राउण्ड’ के ओलिंपियन निशानेबाज कैबिनेट मंत्री राज्यवर्धन सिंह ने मंत्रालय के अपने कार्यालय में ’पुश-अप्स’ लगाते हुए एक वीडियो जारी किया था।

राज्यवर्धन सिंह ने ’हम फिट तो इंडिया फिट’ अभियान की शुरुआत करते हुए प्रसिध्द क्रिकेटर विराट कोहली, रितिक रोशन और साइऩा नेहवाल को नॉमीनेट किया था। विराट कोहली ने फिटनेस का चैलेंज मंजूर करते हुए अपने वीडियो में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी टैग कर दिया था।  चार साल से लगातार बगैर किसी अवकाश के दिन में 18 घंटे काम करने वाले चुस्त-दुरुस्त प्रधानमंत्री को कोहली की यह चुनौती इतनी रास आई कि वो भी ’फिटनेस’ के सोशल-मीडिया अखाड़े में कूद पड़े।

फिटनेस के मंत्रोच्चार में राजनीति की गंध ने इसे गरीब-अमीर की हैसियत से जोड़ दिया है। मोदी के वीडियो की तड़क-भड़क कहती है कि फिटनेस का यह कल्चर सामान्य आदमी के बूते से बाहर है। मोदी की तरह फिटनेस हासिल करने के लिए संसाधनों की कीमत काफी महंगी है। पहले तो मोहल्लों में अखाड़ों की मिट्टी में कसरत हो जाती थी। लेकिन इन दिनों जिम की लागत आम आदमी की हदों के बाहर हो चली है। मोदी की फिटनेस का यह मंत्रोच्चार सबके लिए संभव नहीं है।

महात्मा गांधी को हास-परिहास में ’मिकी-माउस’ के ’निक-नेम’ से संबोधित करने वाली प्रसिध्द स्वतंत्रता सेनानी और कवयित्री सरोजिनी नायडू ने एक मर्तबा महात्मा गांधी की फकीरी के सवाल पर हंसते हुए कहा था कि बापू की गरीबी काफी खर्चीला काम है। यह महज एक मजाक था। महात्मा गांधी के साथ सरोजिनी नायडू के रिश्ते परस्पर सम्मान और हास-परिहास थे। गांधी उनके व्दारा प्रदत्त निक-नेम पर बुरा नहीं मानते थे।

वैसे गांधी की फकीरी और मोदी की फिटनेस को एक तराजू पर ऱखना संभव नहीं है। दोनों में जमीन-आसमान का अंतर है। गांधी की फकीरी सही अर्थों में गरीबों की जिंदगी का पर्याय थी, जबकि मोदी का वीडियो फिटनेस के बहाने विराट कोहली जैसी हस्तियों के बीच अपनी राजनीतिक फिटनेस विज्ञापित करने के लिए है। शायद इसीलिये यह वीडियो लोगों को अपनी जेब टटोलने के लिए मजबूर करता है।

 

सम्प्रति-लेखक श्री उमेश त्रिवेदी भोपाल एवं इन्दौर से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के प्रधान सम्पादक है।यह आलेख सुबह सवेरे के प्रधान सम्पादक है।यह आलेख सुबह सवेरे के 15 जून के अंक में प्रकाशित हुआ है।