Thursday , October 31 2024
Home / MainSlide / थरूर के सवालों से राज्याश्रय में पलती कट्टरता पर बवाल – उमेश त्रिवेदी

थरूर के सवालों से राज्याश्रय में पलती कट्टरता पर बवाल – उमेश त्रिवेदी

उमेश त्रिवेदी

राजनीति और समाज की बौध्दिक इकाइयों में मोदी-सरकार पर कांग्रेस सांसद शशि थरूर के इस राजनीतिक आरोप पर व्यापक बहस होनी चाहिए कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत भारत को हिन्दू-पाकिस्तान बनने की दिशा में उत्प्रेरित कर सकती है। सत्तर सालों से भारत में ‘पाकिस्तान’ शब्द का इस्तेमाल तानाशाही और कट्टरता के संदर्भों में होता रहा है। ‘पाकिस्तान’ एक ‘शब्द’ के रूप में कट्टरता, तानाशाही, धर्मांधता, महिला-उत्पीड़न, आतंकवाद जैसी खूनी प्रवृत्तियों का पर्याय है। शशि थरूर ने ‘हिन्दू-पाकिस्तान’ शब्द का प्रयोग कर मोदी-सरकार के राज्याश्रय में बढ़ती कट्टरता की ओर इशारा किया है। यह एक तिलमिलाने वाला राजनीतिक आरोप है, लेकिन इसका कैनवास लोकतंत्र से जुड़े कई सवालों को उकेरता है।
वोटों के नुकसान के मद्देनजर राजनीतिक दलों को इससे जुड़े सवालों पर चुप्पी नहीं ओढ़ना चाहिए अथवा उन्हें खारिज नहीं करना चाहिए। ये सवाल लोकतंत्र को दीमक की तरह चाट रहे हैं। दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि भाजपा को छोड़ कर ज्यादातर दलों ने इस मुद्दे पर शुतुरमुर्गी मुद्रा अख्तियार कर ली है। भाजपा बयान पर खुश है और कांग्रेस बगलें झांक रही है। मुस्लिमों के सवाल पर कांग्रेस एक डरी हुई पार्टी है। उप्र और गुजरात चुनाव के बाद यह राजनीतिक धारणा बलवती हुई है कि देश में वही दल सफलता का परचम फहरा सकेगा, जो मुसलमानों को हाशिए पर ढकेल कर हिन्दुओं की बात करेगा। भाजपा ने डंके की चोट पर घोषित रूप से उप्र विधानसभा चुनाव में एक भी मुसलमान को टिकट नहीं दिया था। उप्र चुनाव के भुतहे-अक्स अभी भी राजनीतिक दलों के जहन को भयभीत कर रहे हैं। शायद इसीलिए कांग्रेस ने थरूर के बयान से किनारा कर लिया है। थरूर की इस बात के लिए तारीफ की जाना चाहिए कि कांग्रेस व्दारा उनके बयान को खारिज करने के बावजूद वो अपने इस मंतव्य पर अडिग हैं।
शशि थरूर ने अपनी फेसबुक वाल पर लिखा है कि – ‘मैंने पहले भी ऐसा कहा है और एक बार फिर उसे दोहराऊंगा। पाकिस्तान का जन्म एक धर्म विशेष के लिए हुआ था। पाक ने हमेशा अपने देश के अल्पसंख्यकों से भेदभाव किया है। उन्हें मौलिक अधिकारों से वंचित रखा गया है। जिस हिन्दू राष्ट्र के एजेण्डे को इन दिनों आगे बढ़ाया जा रहा है, जहां बहुसंख्य़क देश के अल्पसंख्यकों को दबाकर ऱखना चाहते हैं, उसे हिन्दू-पाकिस्तान का प्रतिबिम्ब ही माना जाएगा।”हमने देश की आजादी की लड़ाई इसलिए नहीं लड़ी थी और ना ही हमारे संविधान में ऐसे हिन्दुस्तान की कल्पना की गई है।”
वैसे भाजपा की ओर से इस राजनीतिक आरोप का सीधा-सादा जवाब यह होना चाहिए कि 2019 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद भी भारत के बुनियादी चरित्र में कोई बदलाव नहीं होगा। भारत कभी भी ‘हिन्दू-पाकिस्तान’ नहीं बनेगा। लेकिन, थरूर के कथन में भाजपा कांग्रेस पर हमला करने के लिहाज से काफी गोला-बारूद ढूंढ रही है। इस बयान को अपनी तरह से परिभाषित और पेश करने की काफी गुंजाइशें हैं। इसीलिए शशि थरूर का बयान सुनते ही भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा किलक उठे थे और पत्रकारों को ब्रीफ करने की गरज से लपक कर माइक के सामने बैठ गए थे। संबित पात्रा शशि थरूर के कथन को हिन्दुओं का अपमान मानते हैं। इस बयान से जाहिर है कि कांग्रेसजन हिन्दुओं से नफरत करते हैं।
एनसीपी सुप्रीमो शरद पंवार इस मामले में शशि थरूर के साथ हैं। उनका कहना है कि पिछले चार सालों में कट्टरतावादी ताकतों को जिस तरीके से राज्याश्रय मिला है, वह शशि थरूर की चिंताओं की पुष्टि करता है। शरद यादव भी थरूर के मत के साथ खड़े हैं। बहरहाल राजनीति के दायरे दिन-ब-दिन छोटे होते जा रहे हैं। शशि थरूर के कथन में राजनीतिक-लाभांश कमाने की होड़ गैरजरूरी है। ऐसे सवालों पर राजनीति से ज्यादा बौध्दिक विमर्श होना चाहिए, ताकि समाज उन चिंताओं पर नजर डाल सके, जो इसके आसपास पनप रही हैं। राजनीति के किसी भी चश्मे से लिंचिंग की घटनाओं को जस्टिफाय नहीं किया जा सकता। अब यह बात कैसे गले उतरेगी कि मोदी-सरकार के नागरिक उड्डयन मंत्री जयंत सिन्हा मॉब-लिंचिंग के गुनाहगारों का हार-फूल से स्वागत करे? गौ-तस्करी के नाम पर होने वाली हत्याओं को लोकतंत्र के लिए निरापद कैसे माना जा सकता है? एक अन्य केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह का नवादा दंगों के आरोपियों से जेल में जाकर मिलना कौन सी प्रवृत्तियों का परिचायक है? सरकार के स्तर पर लिंचिंग अथवा सांप्रदायिक हिंसा के गुनाहगारों का यह समर्थन दर्शाता है कि देश में धार्मिक कट्टरता किस तरह पैर पसार रही है और शशि थरूर की चिंताए गैर-वाजिब कैसे हैं?

 

सम्प्रति- लेखक श्री उमेश त्रिवेदी भोपाल एनं इन्दौर से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है। यह आलेख सुबह सवेरे के 14 जुलाई के अंक में प्रकाशित हुआ है।वरिष्ठ पत्रकार श्री त्रिवेदी दैनिक नई दुनिया के समूह सम्पादक भी रह चुके है।