नई दिल्ली 03 अक्टूबर। सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में अनेक राज्यों की जेल नियमावली में जाति आधारित उन भेदभावपूर्ण प्रावधानों को रद्द कर दिया है, जिनमें कैदियों की जाति के आधार पर काम का आवंटन किया जाता है।
शीर्ष न्यायालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को तीन महीने के अंदर अपनी जेल नियमावली को संशोधित करने और जेलों में जाति-आधारित भेदभाव कायम रखने वाले प्रावधानों को हटाने का निर्देश दिया है।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने जेलों में जाति-आधारित भेदभाव रोकने की मांग करने वाली एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि जाति के आधार पर कैदियों के बीच काम का वितरण भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक है। न्यायालय ने कहा कि कैदियों के साथ बिना सम्मान के व्यवहार करना औपनिवेशिक विरासत का हिस्सा है जिसे समाप्त किया जाना चाहिए और जेल अधिकारियों को कैदियों के साथ मानवीय व्यवहार करना चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय ने पत्रकार सुकन्या शांता की याचिका पर जनवरी में केंद्र और उत्तर प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल सहित 11 राज्यों से इस संबंध में जवाब मांगा था। याचिका में कहा गया था कि इन राज्यों में जेल नियमावली जेलों के अंदर काम के आवंटन में भेदभाव करती है, जिसमें कैदी की जाति उनके रहने तथा काम का निर्धारण करती है।