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भाजपा के दबाव में जन सुराज पार्टी के तीन प्रत्याशियों ने नामांकन वापस लिया: प्रशांत किशोर

पटना 21 अक्टूबर।बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मियों के बीच जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर (पीके) ने भारतीय जनता पार्टी पर गंभीर आरोप लगाया है। उन्होंने दावा किया कि भाजपा नेताओं के दबाव और धमकियों के चलते उनकी पार्टी के तीन उम्मीदवारों को चुनाव मैदान से हटने पर मजबूर होना पड़ा।

    श्री किशोर ने आज यहां आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में पीके ने कहा कि यह लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक संकेत हैं और निर्वाचन आयोग को तत्काल इस मामले में कार्रवाई करनी चाहिए।

नामांकन वापसी की अंतिम तारीख से ठीक पहले तीन प्रत्याशियों ने छोड़ा मैदान

  श्री किशोर ने बताया कि बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण के लिए नामांकन वापसी की अंतिम तिथि 23 अक्टूबर है। लेकिन उससे पहले ही उनकी पार्टी के तीन उम्मीदवारों ने दबाव में आकर अपने नामांकन वापस ले लिए।उन्होंने कहा कि “जन सुराज के उम्मीदवारों को भाजपा के नेताओं की ओर से सीधा या परोक्ष रूप से धमकाया जा रहा है। डराने-धमकाने के ऐसे प्रयास यह साबित करते हैं कि सत्तारूढ़ गठबंधन विपक्ष की बढ़ती लोकप्रियता से घबराया हुआ है।”

ब्रह्मपुर के प्रत्याशी जयप्रकाश तिवारी का मामला सबसे चर्चित

प्रशांत किशोर ने विशेष रूप से ब्रह्मपुर विधानसभा क्षेत्र का उदाहरण देते हुए कहा कि जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार जयप्रकाश तिवारी ने पार्टी का सिंबल प्राप्त किया, विधिवत नामांकन किया और प्रचार अभियान भी चलाया।

  लेकिन नामांकन वापसी के अंतिम दिन उन्होंने अचानक नाम वापस ले लिया। इसके तुरंत बाद उन्हें भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के साथ देखा गया, जिससे राजनीतिक हलकों में चर्चा तेज हो गई है।

चुनाव आयोग से सुरक्षा और निष्पक्षता सुनिश्चित करने की मांग

पीके ने कहा कि वे इस पूरे प्रकरण की शिकायत निर्वाचन आयोग से करेंगे। उन्होंने आयोग से यह भी आग्रह किया कि सभी प्रत्याशियों—विशेष रूप से नई और छोटी पार्टियों के उम्मीदवारों—की सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित की जाए ताकि वे स्वतंत्र माहौल में चुनाव लड़ सकें।

“अगर प्रत्याशियों को डराकर मैदान से हटाया जाएगा, तो यह लोकतंत्र की आत्मा पर चोट होगी,” — प्रशांत किशोर।

राजनीतिक विश्लेषण: नई पार्टी के लिए बड़ी चुनौती

जन सुराज पार्टी, जो बिहार की सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की घोषणा कर चुकी है, के लिए यह घटना एक संगठनात्मक और मनोवैज्ञानिक झटका मानी जा रही है।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि प्रशांत किशोर की पार्टी, जो “जनभागीदारी से शासन” के नए मॉडल की बात करती है, अब अपने प्रत्याशियों की सुरक्षा और मनोबल दोनों बनाए रखने की चुनौती से जूझ रही है।

दूसरी ओर, भाजपा और एनडीए के नेताओं ने अब तक इस आरोप पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन सत्तारूढ़ गठबंधन के सूत्र इसे “राजनीतिक नौटंकी” और “जनसुराज की विफल रणनीति का बहाना” बता रहे हैं।

आगे की राह

अब देखना यह होगा कि प्रशांत किशोर की शिकायत पर निर्वाचन आयोग क्या रुख अपनाता है, और क्या भाजपा इन आरोपों पर खुलकर प्रतिक्रिया देती है।