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वादों का बोझ, राजस्व की तलाश: दो साल बाद विष्णुदेव सरकार की चुनौती -अशोक कुमार साहू                                     

छत्तीसगढ़ की लगभग दो वर्ष पुरानी विष्णुदेव सरकार को चुनावी लोक लुभावन वादो को पूरा करने के लिए बजट पर पड़ रहे भारी बोझ को कम करने और विकास के लिए ज्यादा धनराशि जुटाने में काफी मशक्कत करनी पड़ रही है,इसके बावजूद उसकी राह बहुत आसान नही है।पूर्ववर्ती सरकार की कई लोक लुभावन योजनाओं को बन्द करने के बाद भी समर्थन मूल्य पर धान खरीद तथा महतारी वंदन योजना के ही भारी बोझ ने उसे परेशान कर रखा है।

     पूर्ववर्ती सरकार की 400 यूनिट तक बिजली बिल आधा योजना को बन्द कर उसने बजट से इस छूट के लिए दी जाने वाली राशि से सरकार ने राहत पाने की कोशिश की लेकिन उसे लोगो के भारी आक्रोश तथा पार्टी के भीतर से भी इससे नुकसान होने की आशंका की खबरों के बाद थोड़ा पीछे कदम खींचने पड़े है,वहीं जमीनों के पंजीयन से राजस्व जुटाने के लिए कलेक्टर द्वारा जमीनों की निर्धारित की जाने कीमत में भारी इजाफे से एक बड़ा वर्ग आक्रोशित है।आम लोगो,व्यवसायिकों,विपक्षी दल ही नही सत्ता पक्ष से भी इसके खिलाफ आवाजे उठ रही है।वरिष्ठ भाजपा नेता एवं रायपुर के सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने इसके खिलाफ मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को चिठ्ठी लिखकर खुलकर आवाज उठाई है और इसे तुरंत वापस लेने की मांग की है।   

    साय सरकार ने गर्मियों के समाप्त होते ही पूर्ववर्ती सरकार की 400 यूनिट तक बिजली बिल में आधी छूट की योजना में परिवर्तन कर महज 100 यूनिट तक उसे सीमित कर दिया।उसमें भी 100 यूनिट से एक यूनिट भी ज्यादा होने पर छूट लाभ से वंचित करने का प्रावधान कर दिया। सरकार ने यह कहते हुए छूट खत्म किया कि वह राज्य में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना चाहती है।भारी भरकम बिल के बाद जब राज्यभर से इसके खिलाफ आक्रोश की खबरें आई तो सरकार ने थोड़ा कदम पीछे करते हुए पिछली कैबिनेट बैठक में घरेलू उपभोक्ताओं के बिजली बिल को कम करने के लिए मुख्यमंत्री ऊर्जा राहत जन अभियान (M-URJA) को 1 दिसम्बर 25 से लागू करने का निर्णय लिय़ा।  

    इस निर्णय के अनुसार अब घरेलू उपभोक्ताओं को 200 यूनिट प्रति माह तक बिजली खपत पर 50 प्रतिशत छूट का लाभ मिलेगा, जबकि पहले यह छूट केवल 100 यूनिट तक सीमित थी। इसके अतिरिक्त, 200 से 400 यूनिट प्रति माह बिजली खपत करने वाले उपभोक्ताओं को भी अगले एक वर्ष तक 200 यूनिट तक 50 प्रतिशत छूट प्राप्त होगी। इस निर्णय से लगभग 6 लाख उपभोक्ताओं को सीधा लाभ मिलेगा।हालांकि भाजपा ने बिजली बिलों में रियायत देने का कोई वादा नही किया था फिर भी उसने अपने कदम पीछे खींचे।

   जमीन की कलेक्टर दरों में किए गए भारी इजाफे से उपजे आक्रोश से एक बार फिर साय सरकार लोगो को निशाने पर है।राज्य में कुछ जगह पर लोग इसके विरोध में सड़कों पर भी उतरे। दुर्ग में तो प्रदेश भाजपा अध्यक्ष को वाहन का घेराव और विरोध प्रदर्शन हुआ।पुलिस को इसके बाद विरोध करने वाले लोगो पर बल प्रयोग करना पड़ा और कुछ लोग गिरफ्तार भी किए गए।सरकार ने इसके सम्बन्ध में जो तर्क दिए है वह केवल आम लोगो ही नही बल्कि सत्तारूढ़ दल के लोगो के भी पल्ले नही पड़ रहा है।इस पूरे प्रकरण में वित्त एवं पंजीयन मंत्री ओ.पी.चौधरी निशाने पर हैं।उन पर आरोप लग रहे है कि उन्होने बगैर व्यापक विचार विमर्श किए वित्तीय संसाधन जुटाने के लिए इतना बड़ा फैसला करवा लिया।

   श्री चौधरी जमीन की गाइड लाइन बढ़ाए जाने को केवल रिफार्म मानते है।उनका साफ कहना है कि इससे राजस्व में इजाफे की सोच ही नही है।श्री चौधरी के अनुसार कोई रिफार्म जब होता है तो उसे समझने में समय लगता है,लोग जब इसे समझेंगे तो उन्हे इससे गड़बड़ नजर नही आयेगी।उनके अनुसार पिछले आठ वर्ष से राज्य में जमीन की कलेक्टर दरों में इजाफा नही हुआ जिसकी वजह से तमाम विसगंतियां आ गई थी।उन्होने बताया कि नए रिफार्म में ग्रामीण क्षेत्रों में स्क्वायर फुट दरे समाप्त कर दी गई है।इससे सरकारी योजनाओं के लिए जमीन अधिग्रहण के दौरान टुकड़ों में बांटकर भारत माला जैसे घोटालों से बचा जा सकेगा।श्री चौधरी ने कहा कि 68 प्रतिशत जमीनों की रजिस्ट्री  कलेक्टर गाइड लाइन से ऊपर इस परिवर्तन से पहले ही हो रही थी।दुनिया में सभी चीजों के रेट बढ़ रहे है तो जमीन की गाईड लाइन दरें नही बढ़ाना कहां तक उचित है।

    उन्होने कहा कि इससे निगेटिव सोच रखने वाले ब्यूरोक्रेट,राजनेता एवं कच्चा पक्का वाले लोग ही ज्यादा परेशान है।वह स्वयं इसे जुड़े पक्षों को बुलाकर बात कर रहे है और उन्हे समय भी दे रहे है।जहां कुछ अव्यवहारिक होगा उसे ठीक भी करेंगे।जमीन की गाइड लाइन दरे बढ़ने के बाद भी पंजीयन की दरे पूर्ववत रखने के बारे में उनका कहना हैं कि इस बारे में सरकार उचित समय पर उचित कदम उठायेंगी।श्री चौधरी भारतीय प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा देकर राजनीति में आए है,यह उनकी ताकत और कमजोरी दोनो है।भाजपा के ही एक प्रभावी वर्ग का उन पर आरोप है कि वह राज नेता नही बल्कि ब्यूरोक्रेट की तरह निर्णय लेते है।इसकी उन्हे कोई परवाह नही होती कि जनता पर और पार्टी पर इसका क्या प्रभाव होगा।

   जमीन गाइडलाइन दरे बढ़ाने के विरोध में सांसद बृजमोहन अग्रवाल खुलकर आ गए है।श्री अग्रवाल ने मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को खुला पत्र भेजकर अपना आपत्ति दर्ज करवायी है।उन्होने कहा कि यह निर्णय वित्त वर्ष के शुरू में आना था और इससे पूर्व सम्बधित पक्षों के साथ ही जनप्रतिनिधियों से भी व्यापक विचार विमर्श होना चाहिए था।यह फैसला अचानक आया है।उन्होने मुख्यमंत्री से अनुरोध किया है कि इस फैसले को स्थगित कर उच्च स्तरीय समिति गठित कर इस पर व्यापक विचार विमर्श कर निर्णय होना चाहिए।उन्होने कहा कि गाइड लाइन की दरें बढ़ने से पंजीयन शुल्क भी बहुत बढ़ गया है।इससे जमीन कारोबारी या ब्रोकर को कोई प्रभाव नही पड़ेगा बल्कि सीधा असर आम लोगो को पड़ेगा जोकि मकान या जमीन खरीदेंगे।  

     श्री अग्रवाल ने कहा कि कुछ अधिकारियों की बनाई रिपोर्ट के आधार पर गाइड लाइन दरे बढ़ाई गई है।उन्होने कहा कि 18 वर्षों तक वह मंत्री रहे है,ब्यूरोक्रेट तमाम बार ऐसी कोशिशे उनके सामने भी करते थे लेकिन सरकार के निर्णय का जनता पर क्या असर पड़ेगा,वह ध्यान में रखकर उनके अनुचित प्रस्तावों को रोक देते थे।उन्होने कहा कि राज्य में लगभग एक लाख करोड़ रूपए का जमीन व्यवसाय है।अगर इस निर्णय को वापस नही लिया गया तो आने वाले तीन वर्षों में राज्य की अर्थव्यवस्था चरमरा जायेंगी।   

    राज्य में सत्ता में आने के बाद से ही विष्णुदेव सरकार पर अनुभवी लोगो की सरकार एवं नौकरशाही में अनदेखी करने के आरोप लगते रहे है।सरकार में मंत्री कौन होगा इसका निर्णय पार्टी आलाकमान से होता है इसलिए मुख्यमंत्री इसके लिए जिम्मेदार नही माने जा सकते।नौकरशाही में अनुभवी लोगो को शुरूआती दौर में तरजीह नही मिलने पर जरूर उन पर उंगुली उठ सकती है।लेकिन यह भी सच है कि उसी टीम के साथ कामकर उन्होने लोकसभा,पंचायत एवं नगरीय निकाय चुनावों में शानदार सफलता दिलाई।मुख्यमंत्री सचिवालय में शुरूआती दौर में उन अफसरों को जिम्मेदारी मिली जिनके पास कभी भारत सरकार में ही काम करने का अनुभव नही था बल्कि किसी के पास मुख्यमंत्री सचिवालय में भी काम करने का अनुभव नही था।उस समय तो कई कई महीने तक फाइलों का मूवमेंट लगभग ठप होने की खबरें सुनाई पड़ती थी।बाद में तो उनमें इगो क्लेश की खबरे आनी शुरू हो गई थी।जनसम्पर्क आयुक्त का पद आईपीएस के हवाले था जिसको मीडिया के बारे कोई पूर्व अनुभव नही था।           

    यह सभी चीजे ऊपर तक पहुंची और फिर कदम उठाए गए और पिछले वर्ष दिसम्बर केन्द्र की प्रतिनियुक्ति से वापस बुलाकर श्री सुबोध सिंह को मुख्यमंत्री का प्रमुख सचिव बनाया गया।उनके पास भारत सरकार में काम करने के अनुभव के साथ ही डा.रमन सिंह के कार्यकाल में मुख्यमंत्री सचिवालय में काम करने का खासा अनुभव था।उन्होने दायित्व संभालने के बाद मुख्यमंत्री सचिवालय की प्रशासनिक व्यवस्था को मजबूत बनाने के साथ ही वहां की कमियों को दुरूस्त किया।फाइलों का मूवमेंट बेहतर हुआ।बेहतर सुलझे अधिकारी माने जाने वाले श्री सिंह ने डा.सिंह के कार्यकाल के समय के सचिवालय प्रमुखों की तरह सभी वर्गों से मिलना जुलना फीडबैंक लेना भी शुरू किया,लेकिन बाद में उनके भी इससे दूरी बनाने की खबरें आती रही है।  

   श्री सिंह के आने के बाद केन्द्र की प्रतिनियुक्ति से पूर्व में लौटे और डा.रमन सिंह के कार्यकाल में मुख्यमंत्री सचिवालय में काम कर चुके रजत कुमार को उद्योग सचिव के साथ ही सामान्य प्रशासन का दायित्व सौंपा गया,आईपीएस को हटाकर युवा आईएएस रवि मित्तल को आयुक्त जनसम्पर्क बनाया गया और पी दयानंद से जनसम्पर्क सचिव का दायित्व वापस लेकर रोहित यादव को जनसम्पर्क सचिव बनाया गया।श्री मित्तल को मुख्यमंत्री सचिवालय में विशेष सचिव बनाए जाने के साथ ही विशेष सचिव विमानन का भी आयुक्त जनसम्पर्क के अलावा दायित्व सौंपा गया है।इस सभी कवायद में श्री सिंह की ही भूमिका मानी जाती है।

    पिछले सितम्बर माह में प्रतिनियुक्ति पर एशियन विकास बैंक के कार्यकारी निदेशक पद से वापस बुलाकर श्री विकासशील को राज्य का मुख्य सचिव बनाया गया है।श्री विकासशील साफ सुथरी छवि के अधिकारी माने जाते है।ऐसी खबरें है कि मुख्य सचिव एवं मुख्यमंत्री सचिवालय मिलकर मंत्रालय से लेकर निचले स्तर तक सरकारी मशीनरी को चुस्त दुरूस्त करने में लगे है,देखना है कि यह केवल कागजों पर ही होता है या फिर निचले स्तर तक इसकी धमक सुनाई पड़ती है।   

लेखक-अशोक कुमार साहू सेन्ट्रल ग्राउन्ड न्यूज(cgnews.in) के सम्पादक तथा संवाद समिति यूएनआई के छत्तीसगढ़ के पूर्व राज्य प्रमुख हैं।