पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग (HRCP) ने आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2023 पर गहरी ‘चिंता’ व्यक्त की है। इसे 17 जनवरी को नेशनल असेंबली में सर्वसम्मति से पारित किया गया था। समा टीवी की रिपोर्ट के अनुसार, एचआरसीपी का मानना है कि इससे पाकिस्तान के संकटग्रस्त धार्मिक अल्पसंख्यकों और अल्पसंख्यक संप्रदायों का ‘उत्पीड़न’ और तेज होने की आशंका है।

होगी आजीवन कारावास की सजा
एक बयान में एचआरसीपी ने कहा कि प्रस्तावित कानून धार्मिक व्यक्तियों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी का उपयोग करने के लिए सजा को तीन साल से बढ़ाकर आजीवन कारावास की सजा देता है ‘जो 10 साल से कम नहीं होगा।’ बिल अपराध को गैर-जमानती भी बनाता है, जिससे अनुच्छेद 9 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संवैधानिक रूप से गारंटीकृत अधिकार का सीधे उल्लंघन होता है। बयान में कहा गया, “ऐसे समय में जब नागरिक समाज इन कानूनों के दुरुपयोग को रोकने के लिए संशोधन की मांग कर रहा है, इस सजा को मजबूत करना इसके विपरीत होगा।”
कानून का दुरुपयोग बढ़ेगा
समा टीवी ने बताया कि इन संशोधनों को धार्मिक अल्पसंख्यकों और संप्रदायों के खिलाफ असंगत रूप से ‘हथियार’ बनाने की संभावना है, जिसके परिणामस्वरूप झूठी एफआईआर और उत्पीड़न होगा। एचआरसीपी ने कहा कि कथित ईशनिंदा के लिए जुर्माना बढ़ाने से व्यक्तिगत प्रतिशोध को निपटाने के लिए कानून का दुरुपयोग बढ़ेगा, जैसा कि अक्सर ईशनिंदा के आरोपों के मामले में होता है।
ये भी जानें
दि एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक बिल के उद्देश्यों के बयान में कहा गया है कि पैगंबर के साथी और अन्य धार्मिक व्यक्तित्वों का अपमान करना ना केवल देश में आतंकवाद और व्यवधान को बढ़ावा देता है बल्कि सभी क्षेत्रों के लोगों को नुकसान पहुंचाता है।
बढ़ सकता है उत्पीड़न
एचआरसीपी अध्यक्ष हिना जिलानी ने कहा, “जबकि इस विधेयक का घोषित उद्देश्य संप्रदायवाद पर अंकुश लगाना है, एचआरसीपी का मानना है कि ये पाकिस्तान के संकटग्रस्त धार्मिक अल्पसंख्यकों और अल्पसंख्यक संप्रदायों के उत्पीड़न को बढ़ा सकता है।”
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