बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती ने छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री तथा जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) के अध्यक्ष अजीत जोगी के साथ चुनावी गठबंधन करने के साथ ही इस बात का ऐलान कर दिया है कि यहां गठबंधन की सरकार बनने पर जोगी ही मुख्यमंत्री होंगे। बसपा ने मध्यप्रदेश में भी 22 विधानसभा क्षेत्रों में एकतरफा उम्मीदवारों की घोषणा कर एक प्रकार से कांग्रेस के साथ होने वाले गठबंधन के सामने एक बहुत बड़ा सवालिया निशान लगा दिया है। कुल मिलाकर डेढ़ दशक बाद दोनों राज्यों की सत्ता में वापसी का जो सप्तरंगी सपना कांग्रेस की आंखों में तैरने लगा था उसे धीरे से जोर का झटका मायावती ने दे दिया है। अब छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश दोनों ही राज्यों में कांग्रेस को नये सिरे से अपनी चुनावी जमावट करना होगी। कुछ दिनों के बाद ही इस सवाल का भी उत्तर मिल सकेगा कि कांग्रेस ने मायावती के सम्मानजनक सीटों की मांग की जो अनदेखी की है वह किसी छिपी हुई रणनीति का हिस्सा है या मायावती ने स्वयं झटका दिया है। कांग्रेस के अंदरुनी सूत्रों का दावा है कि कांग्रेस ने ही गठबंधन के लिए बदले हुए परिवेश में उत्सुकता नहीं दिखाई क्योंकि उसे यह भय सताने लगा था कि मध्यप्रदेश में सपाक्स का जो आंदोलन जोर पकड़ रहा है उसमें कहीं इस समझौते से लेने के देने न पड़ जायें। वहीं दूसरी ओर पुन: प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ और चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया ने फिर कहा है कि बसपा से चुनावी तालमेल की चर्चा चल रही है और जल्द ही इसके नतीजे सामने आ जाएंगे। इस प्रकार कांग्रेस ने भी बसपा से तालमेल होने उम्मीद नहीं छोड़ी है।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के भोपाल में हुए धमाकेदार रोड-शो और जोशीले भाषण के बाद जो उत्साह और उमंग की हिमालयीन उछाल कांग्रेसजनों में पैदा हो रही थी उसमें मायावती के फैसले ने गुब्बारे के पूरा फूलने के पूर्व ही पिन चुभो दी। वहीं दूसरी ओर भाजपा कार्यकर्ताओं का जो महाकुंभ भोपाल में होने जा रहा है उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह जो जीत का मंत्र देने वाले हैं वह रही-सही कसर कहीं पूरी न कर दे। जोश में आये कांग्रेस कार्यकर्ताओं में हताशा का भाव न आ पाये इसके लिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ, समन्वय समिति के अध्यक्ष दिग्विजय सिंह, चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया और नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह को नये सिरे से कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए पूरी ताकत लगाना होगी। भाजपा महाकुंभ होने के बाद भी कांग्रेसजनों में उत्साह बना रहे इसके लिए राहुल गांधी 27 और 28 सितम्बर को फिर एक बार विंध्य क्षेत्र जिसे रेवांचल कहा जाता है उसमें रोड-शो और आमसभा करने वाले हैं। राहुल गांधी राम पथ वनगमन यात्रा को या तो हरी झंडी दिखायेंगे या उसमें बीच में शामिल होंगे। इसका मतलब यह है कि कांग्रेस ने गुजरात चुनाव से जो उदार हिंदुत्व का तड़का चुनावी राजनीति में लगाना चालू किया था वह धीरे-धीरे और बढ़ता जायेगा।
जहां तक छत्तीसगढ़ का सवाल है जोगी कांग्रेस 55 सीटों पर और बसपा 35 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इस गठबंधन से सबसे बड़ा झटका कांग्रेस को लगा है क्योंकि कांग्रेस और बसपा के बीच गठबंधन की खबरें काफी समय से आ रही थीं। छग कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल शायद इस बात को नहीं भांप पाये कि जिस दांव से कांग्रेस सरकार बनाने का सपना देख रही है उसके उसी दांव को जोगी पलटते हुए मायावती से समझौता कर लेंगे। जोगी खेमे की ओर से लम्बे समय से यह दावा किया जा रहा था कि उसका समझौता बसपा से होने जा रहा है। ऐसे में बघेल जो कि जोगी के तौर-तरीकों से भलीभांति परिचित हैं वह यह बात कैसे नहीं भांप पाये। कांग्रेस के साथ ही साथ इस गठजोड़ का एक बड़ा खामियाजा भाजपा को भी उठाना पड़ सकता है क्योंकि छत्तीसगढ़ में 10 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं और इनमें से 9 सीटों पर भाजपा और एक पर कांग्रेस का कैंजा है। इन 9 सीटों को बचाये रखना अब भाजपा के लिए टेड़ी खीर होगी।
मध्यप्रदेश में एट्रोसिटी एक्ट के खिलाफ चल रहे सवर्ण आंदोलन के बीच बसपा ने 22 विधानसभा सीटों के लिए अपने उम्मीदवार घोषित कर कांग्रेस से गठबंधन की अटकलों पर विराम लगा दिया है। हालांकि अभी भी उम्मीद की एक हल्की-सी किरण कांग्रेस के कुछ नेताओं के मन में है। ज्योतिरादित्य सिंधिया और अजय सिंह गठबंधन के लिए पहले से ही कुछ अनमने रहे हैं और ये दोनों लगभग एक दर्जन से अधिक सीटें देने को राजी नहीं थे। कमलनाथ भी मायावती को केवल उतनी ही सीटें देने के पक्षधर थे जो बसपा जीत सके। गठबंधन पर विराम लग गया है, इसका आभास इस बात से भी लगता है कि जो 22 उम्मीदवार बसपा ने घोषित किए हैं उनमें कुछ जगहों पर अभी कांग्रेस के विधायक हैं। गठबंधन न होना एक प्रकार से भारतीय जनता पार्टी की कांग्रेस को शिकस्त देने की पहली रणनीतिक जीत माना जा सकता है क्योंकि इससे फायदा केवल भाजपा को होना है। कांग्रेस गठबंधन को अधिकतम 30 सीटें देना चाहती थी जिसमें बसपा के साथ ही समाजवादी पार्टी, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और कुछ अन्य समान विचारधारा वाले दल शामिल हैं। बसपा ने जिन सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए हैं उनमें राज्य विधानसभा के उपाध्यक्ष डॉ. राजेंद्र सिंह का अमरपाटन भी शामिल है। मायावती मध्यप्रदेश में 50 से अधिक सीटें चाहती थीं। राज्य में बसपा के कुल 4 विधायक हैं और पिछले विधानसभा चुनाव में उसे 6.29 प्रतिशत वोट मिले थे।
2013 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 227 उम्मीदवार उतारे थे जिनमें से 194 की जमानत जब्त हो गयी थी, केवल दर्जन भर सीटें ही ऐसी थीं जहां बहुजन समाज पार्टी दूसरे या तीसरे नम्बर पर थी। जहां बसपा तीसरे नम्बर पर थी उसमें भी अधिकांश पर भाजपा को फायदा हुआ था इसलिए कांग्रेस इसी अंक के आधार पर बसपा के लिए डेढ़ दर्जन से अधिक सीटें नहीं छोड़ना चाहती थी। समाजवादी पार्टी के लिए कांग्रेस ने 5 और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के लिए 6 सीटें चिन्हित कर रखीं थीं। कांग्रेस इससे ज्यादा सीटें देकर मतदाताओं के बीच यह संदेश नहीं देना चाहती थी कि वह अपने दम पर सरकार नहीं बना सकती। सवर्ण आंदोलन भी समझौता न हो पाने की एक मुख्य वजह बना, इससे भी इन्कार नहीं किया जा सकता। प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा को छोड़कर कोई तीसरा राजनीतिक दल नहीं है जो अपने बूते पर सरकार बनाने की स्थिति में हो। कांग्रेस रणनीतिकारों का यह मानना है कि मौजूदा हालातों में बसपा से समझौता न करने से ही सवर्ण मतदाता कांग्रेस के पक्ष में आ सकता है। मप्र में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 35 सीटों में से 28 पर भाजपा का कैंजा है।
एक मौजू सवाल यह भी है कि क्या किसी रणनीति के तहत कांग्रेस ने ही बसपा से गठबंधन करने में अति उत्साह नहीं दिखाया, ताकि कांग्रेस सवर्णों का आक्रोश भुनाकर उन्हें अपने पाले में ला सके। कहीं ऐसा तो नहीं कि गठबंधन का कमलनाथ का दावा केवल बयानों तक ही सीमित रहा हो और कांग्रेस आत्म-समर्पण की मुद्रा में समझौता करने की मन:स्थिति में न हो। जैसे ही सवर्णों का आक्रोश बढ़ने लगा वैसे ही कांग्रेस ने गठबंधन की दिशा में अपने बढ़ते कदम धीरे-धीरे वापस लेना चालू कर दिये। कांग्रेस को तो चम्बल-ग्वालियर, बुंदेलखंड एवं विंध्य अंचलों में एक दर्जन से कम सीटों का नुकसान होगा लेकिन समझौता न होने का ज्यादा नुकसान बसपा को होगा। बसपा को अधिक नुकसान इस कारण होगा क्योंकि उसे सपाक्स आंदोलन के चलते केवल प्रतिबद्ध दलित मतदाताओं पर ही आश्रित रहना होगा। ऐसे में देखने की बात यही होगी कि इस बार विधानसभा में उसका खाता खुल पायेगा या नहीं। भले ही उसका खाता न खुल पाये लेकिन वह कांग्रेस को सत्ता के करीब पहुंचने से रोक सकती है, यही कारण है कि गठबंधन टूटने से भाजपा ने राहत की सांस ली है।
और यह भी
मायावती से झटका खाने के बाद कांग्रेस अब गुजरात की तर्ज पर मध्यप्रदेश में ‘जयस‘ के डॉ. हीरा अलावा, अजाक्स के महासचिव पी.सी. जाटव के बेटे देवाशीष झरारिया और बुधनी में किसानों व आदिवासियों की लड़ाई लड़ रहे अर्जुन आर्य को अपने पक्ष में सक्रिय करने की कोशिश कर रही है, ये तीनों कांग्रेस के संपर्क में हैं। डॉ. अलावा लम्बे समय से प्रदेश की राजनीति में अपना वजूद तलाश रहे हैं और आदिवासी समाज को स्वर देने का काम कर रहे हैं। मालवा-निमाड़ में उनके संगठन जयस का अच्छा प्रभाव देखा जा रहा है। देवाशीष दिल्ली में रहकर आईएएस की तैयारी कर रहे हैं और इनकी पहचान अम्बेडकरवादी के रुप में है। इनके ट्वीटर को 23 हजार लोग फालो कर रहे हैं। बसपा के लिए देवाशीष ने 6 लाख युवाओं को जोड़ने का रिकार्ड भी बनाया है। अर्जुन आर्य बुधनी में किसानों-आदिवासियों के हितों की लड़ाई लड़ते हुए जेल भेजे गये थे, जहां दिग्विजय सिंह ने जब उनसे मुलाकात की तब से वे अधिक चर्चा में आये हैं। इस प्रकार तीनों युवा चेहरे दिग्विजय के संपर्क में हैं।
सम्प्रति-लेखक श्री अरूण पटेल अमृत संदेश रायपुर के कार्यकारी सम्पादक एवं भोपाल के दैनिक सुबह सबेरे के प्रबन्ध सम्पादक है।