अदालत ने जमानत पर सुनवाई स्थगित करते हुए कहा कि जब तक पीड़िता के बयान दर्ज नहीं हो जाते, तब तक जमानत नहीं दी जाएगी। अदालत ने इस मामले में पुलिस की कार्रवाई पर भी सवाल उठाया है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने पॉक्सो के एक मामले में ट्रायल कोर्ट को नाबालिग पीड़ितों के प्रति संवेदनशील होने के लिए कहा है। अदालत इस मामले के आरोपियों की जमानत पर सुनवाई कर रही थी। अदालत ने जमानत पर सुनवाई स्थगित करते हुए कहा कि जब तक पीड़िता के बयान दर्ज नहीं हो जाते, तब तक जमानत नहीं दी जाएगी। अदालत ने इस मामले में पुलिस की कार्रवाई पर भी सवाल उठाया है। अदालत ने स्थानीय एसीपी से विस्तृत रिपोर्ट भी तलब की है। मामला शालीमार बाग थाने में दर्ज एक एफआईआर से जुड़ा है।
न्यायमूर्ति गिरीश कठपालिया की पीठ ने कहा कि पीड़िता के बयान दर्ज होने तक जमानत याचिकाओं पर सुनवाई करना उचित नहीं होगा, क्योंकि अभियुक्त उसी इलाके में रहते हैं जहां पीड़िता रहती है और उन पर पीड़िता को धमकाने का खतरा हो सकता है। अभियोजन पक्ष के वकील लक्ष्य खन्ना ने इस बात का समर्थन किया, जबकि आरोपियों के वकीलों ने इसका विरोध करते हुए कहा कि पीड़िता जानबूझकर कार्यवाही में देरी कर रही है। कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के 18 और 19 मार्च 2025 के आदेशों पर भी गंभीर टिप्पणी की, जिसमें पीड़िता की बीमारी के दावे की जांच के लिए पुलिस को निर्देश दिए गए थे।
कोर्ट ने कहा कि यौन हिंसा की शिकार नाबालिग लड़की के मामले में संवेदनशीलता जरूरी है और उसकी छूट की अर्जी को सामान्य अपराधियों की तरह नहीं देखा जा सकता। हाईकोर्ट ने यह भी नोट किया कि 18 मार्च की रात को एक पुरुष कांस्टेबल पीड़िता के घर गया, जबकि ट्रायल कोर्ट ने जांच अधिकारी या थाना प्रभारी को जांच का निर्देश दिया था। मामले की अगली सुनवाई अब 22 अप्रैल 2025 को होगी।
यह है मामला
वर्ष 2024 में पीड़िता को एक आरोपी प्रिंस ने नशीला पदार्थ पिलाया और फिर प्रिंस व सोनू ने उसके साथ दुष्कर्म किया। आरोपी आश्लोक पर आरोप है कि वह उस समय मौजूद था, जब पीड़िता को नशीला पदार्थ दिया गया और बाद में उसने कमरे को बाहर से बंद कर दिया।