गो सेवा, जीव-जंतुओं में ईश्वर की उपस्थिति, ईशोपनिषद का श्लोक, प्राणियों का कल्याण…। आईवीआरआई के 11वें दीक्षांत समारोह में सोमवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के संबोधन में शामिल इन शब्दों से सनातन संस्कृति की आभा और प्रकृति के प्रति उनकी संवेदनशीलता झलकती है।
राष्ट्र, जन एवं पशुओं के कल्याण की चिंता जताकर उन्होंने सनातन संस्कृति की मूलभावना को जीवंत किया। साथ ही, तकनीक के सर्वाधिक इस्तेमाल का आह्वान कर उन्होंने देश की प्रगतिवादी सोच का प्रमाण भी दिया। पशुओं को जीवन धन बताते हुए कहा कि उनके बिना हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते।
भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान के 11वें दीक्षांत समारोह में शामिल होने आईं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने वैदिक वाङ्मय के श्लोकों के जरिये विद्यार्थियों, वैज्ञानिकों व आमजन से संवाद स्थापित किया। ईशोपनिषद के पहले श्लोक ईशावास्यमिदं सर्वं… का उल्लेख करते हुए उन्होंने संस्कृति के मूल आशय को स्पष्ट किया।
पशुओं में ईश्वर का प्रतिरूप देखें
राष्ट्रपति ने कहा कि पशुओं से हमारे ऋषि-मुनियों का संवाद होता रहा है। भगवान के कई अवतार भी इसी विशिष्ट श्रेणी में हुए। ऐसे में जब आप एक चिकित्सक या शोधकर्ता के रूप में कार्य करें तो बेजुबान पशुओं में ईश्वर का प्रतिरूप देखें। सर्वे भवन्तु सुखिनः की अवधारणा को साकार करें।
राष्ट्रपति ने आईवीआरआई के ध्येय वाक्य सत्त्वात् संजायते ज्ञानं (सत्य से ज्ञान की प्राप्ति होती है) का भी हवाला दिया। उम्मीद जताई कि इसी भावना के साथ आपने यहां शिक्षा प्राप्त की होगी और आगे भी इसी मूल भावना के साथ कार्य करते रहेंगे।
उपयोग पर उपभोग आधारित संस्कृति नुकसानदायक
राष्ट्रपति ने कहा कि कोरोना महामारी ने मानव जाति को आगाह किया है। उपयोग पर उपभोग आधारित संस्कृति न केवल मानव जाति बल्कि जीव-जंतुओं, बल्कि पर्यावरण को अकल्पनीय क्षति पहुंचा सकती है। ऐसे में हमें इससे बचना चाहिए।
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