प्रदेश में प्राचार्यों की पदोन्नति का रास्ता साफ हो गया है। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने प्रमोशन आदेश जारी होने के बाद पोस्टिंग पर लगी रोक हटा दी है। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने राज्य शासन की प्रमोशन नीति को वैध माना है। कोर्ट ने प्राचार्य पदोन्नति के बाद पोस्टिंग पर स्टे निरस्त कर दिया, और बीएड अनिवार्यता के साथ प्रमोशन नीति के खिलाफ दायर सभी याचिकाएं खारिज दी है। करीब 15 दिन पहले जस्टिस रजनी दुबे की डिवीजन बेंच ने मामले की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिस पर आदेश जारी किया गया है। बता दें, कि पदोन्नति से वंचित शिक्षकों ने प्रमोशन नियम को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट के फैसले के बाद अब 3500 स्कूलों में प्राचार्य पोस्टिंग का रास्ता साफ हो गया है।
इस मामले की सुनवाई जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस एके प्रसाद की डिवीजन बेंच में बीते 11 जून से 16 जून तक लगातार हुई थी। इस दौरान याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं ने अपनी बहस पूरी करते हुए बीएड डिग्री को प्राचार्य पद के लिए अनिवार्य बताया। इसके अलावा, उन्होंने माध्यमिक स्कूलों के प्रधान पाठकों से व्याख्याता बने शिक्षकों की वरिष्ठता का मुद्दा भी उठाया। हाईकोर्ट में लगी याचिकाओं में एक मामला साल 2019 से जुड़ा हुआ था, जबकि अन्य याचिकाएं 2025 में बीएड और डीएलएड योग्यता से संबंधित थी। इस दौरान राज्य सरकार की तरफ से कहा गया कि प्रमोशन नियम को लेकर सभी कैटेगरी के शिक्षकों के हितों का ध्यान रखा गया है। इसमें कोई गड़बड़ी नहीं की गई है।
शिक्षा विभाग ने 30 अप्रैल को प्राचार्य पदोन्नति की सूची जारी की थी, जिस पर 1 मई को हाईकोर्ट ने स्थगन आदेश जारी कर दिया। अब हाईकोर्ट का फैसला आ गया है। जिसमें स्थगन आदेश को हटाकर सभी याचिकाएं खारिज की गई है। ऐसे में अब शिक्षा सत्र शुरू होते ही प्रदेश के 3500 स्कूलों में प्राचार्यों की नियुक्ति हो सकेगी।
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