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अमेठीः किलो-किलो बाकी है ! – राज खन्ना

गुलाबी ठंड की गुनगुनी धूप में अमेठी इठलाई हुई थी।खूब उत्साहित।हंसते-मुस्कुराते-नारे लगाते लोग।उनके सांसद और तबके प्रधानमंत्री राजीव गांधी मंच पर थे।अवसर जगदीशपुर के इंडोगल्फ़ के खाद कारखाने को देश को समर्पित करने का था।तारीख थी 24 नवम्बर 1988। तब राजीव गांधी की कही दो बातें 31साल बाद आज भी दोहराई जाती हैं।पहली कि दिल्ली से जो एक रुपया भेजता हूँ,उसका पंद्रह पैसा ही आप तक पहुंचता है। दूसरी अमेठी को लेकर राम सेवक जी के हवाले से ,” कुंटल-कुंटल हो गया।किलो-किलो बाकी है।”
स्व.राम सेवक 1967 से 2007 के बीच के चालीस साल में जगदीशपुर से नौ बार विधायक चुने गए।सरल-सहज।कम पढ़े-खूब कढ़े।अपने परिचय में राम सेवक धीरे से।धोबी जोर से बोलने वाले।गाँव-देस की कहावतें जुबां पर। राजीव जी के साथ अमेठी घूमते राम सेवक की किस्सागोई ठेठ अवधी में चलती।राजीव जी कुछ समझते।बाकी साथ वालों की मदद से समझ कर हंसते। खाद कारखाने के कार्यक्रम में जाते राजीव गांधी से राम सेवक ने कहा था,” कुंटल-कुंटल होय गवा।किलो-किलो बाकी अहये ।” मतलब समझाया।बड़े-बड़े काम हो गए।छोटे-छोटे बाकी हैं।जैसे बड़ी-बड़ी सड़के बन गईं। छोटी बाकी हैं।
तब उत्तर प्रदेश और केंद्र में कांग्रेस की सरकारें थीं।विभागों में होड़ थी अमेठी में कुछ कर दिखाने और गांधी परिवार को खुश करने की।दोनों सरकारों के खजाने का मुँह अमेठी के लिए उदारतापूर्वक खुला हुआ था।

तब की अमेठी! जगदीशपुर में बी एच ई एल का इंदिरा जी 3 मार्च 1983 को उदघाट्न कर चुकी थीं। एच ए एल की कोरवा(मुंशीगंज)इकाई की 3 अप्रैल 1986 को राजीव गांधी शुरुआत कर चुके थे। मुंशीगंज में इंदिरा जी द्वारा 1 सितम्बर 1982 को शिलान्यास किया संजय गांधी अस्पताल मरीजों को सेवा देने लगा था। उत्तर प्रदेश आद्योगिक विकास निगम ने अमेठी के पांचों विधानसभा क्षेत्रों में औद्योगिक क्षेत्र विकसित करने के लिए किसानों की 3703.4 एकड़ भूमि अधिग्रहीत कर ली थी।इसमें 2538.27 एकड़ भूमि विकसित की थी।966 प्लॉट में 929 और सभी पांच औद्योगिक शेड आबंटित हुए थे।उद्यमी उत्साहित थे।पिकप और यू पी एफ सी उन्हें धन मुहैय्या करने को आतुर थे।बैंक भी साथ दे रहे थे।लखनऊ-वाराणसी राजमार्ग का जगदीशपुर औद्योगिक क्षेत्र सबसे ज्यादा गुलजार था। वहां के 22 सेक्टरों में बटे 184 प्लॉटों की रजिस्ट्री हुई।लगभग डेढ़ सौ छोटी-बड़ी इकाइयों और निजी क्षेत्र के मालविका स्टील के बड़े कारखाने की धूम बीच अमेठी के पंख लगे हुए थे।उसके दिन फिरे थे। उसकी सुर्खियां-शोहरत बाकी इलाकों को चिढ़ाती थीं।पर उनके पास कोई गांधी न था!
लेकिन तरक्की के शोर के साथ-साथ अमेठी में दूसरा खेल भी चल रहा था।सड़कें खूब बन रही थी।जल्दी ही गढ्ढों में तब्दील हो रही थीं।ट्यूबवेल लगते।फिर जल्दी टें होते।ट्रांसफार्मर जल्दी फुंकते।फिर बहुत-बहुत दिन तक ठीक न होते।बिजली के खंभे लग जाते और उन पर तार खिंचने का इंतजार लम्बा खिंचता चला जाता।खेती-किसानी।खाद-पानी।दवाई-पढ़ाई जिस मद में भी पैसा आया खूब लूट हुई।सरकारी अमले की बल्ले-बल्ले थी।कमाने-धमाने वाले नेताओं की एक जमात भी खूब फली-फूली-तन्दरुस्त हुई। रुपये के सिर्फ पन्द्रह पैसे हिस्से के सही ठिकाने पहुंचने की राजीव जी की फिक्र से अमेठी अलग नही थी।
1989 में दिल्ली-लखनऊ से कांग्रेस की सरकारों की विदाई के साथ अमेठी की पूछ कम होनी शुरू हुई।कारखानों में स्थानीय लोगों के लिए नौकरियों की गुंजाइश न के बराबर थी।राजनीतिक कारणों से यहां उद्योग लगे।फिर राजनीति ही उन्हें ले डूबने लगी।वित्तीय संस्थाएं निगाहें फेरने लगीं।कुशल श्रमिको का स्थानीय स्तर पर टोटा ।महंगा पड़ने वाला कच्चा माल।तैयार माल के लिए बाजार का अभाव। अनेक की मजबूरियां तो बहुतेरे उद्यमियों की सरकारी कर्ज और सब्सिडी को लेकर बदनीयती। छोटी-बड़ी इकाइयों ने दम तोड़ना शुरू किया।कौहार में लगे सम्राट बाइसकिल कारखाने ने सबसे पहले दगा दी।मालविका का स्टील कारखाना उत्पादन के शुरुआती चरण में ही ठप हो गया।फिर आरिफ़ सीमेंट,जगदीशपुर सीमेंट, मारवाह सीमेंट, धमीजा आर्क इलेक्ट्रोड,आर आर इलेक्ट्रोड, यूनाइटेड इंटरप्राइजेज,फ़ारको फ़ूडज, फ्यूचर फ़ूडज,करसन फ़ूडज,एग्रो पेपर मिल, दून गैल्वनाइजिंग जैसी तमाम इकाईयां एक के बाद बन्द होती गईं।फ़िलहाल जगदीशपुर आद्योगिक क्षेत्र उजाड़ उद्योगों का कब्रिस्तान बन चुका है।चालू उद्योगों की संख्या मुश्किल से दहाई में है।टिकरिया की उषा रेक्टिफायर, गोमतीं सीमेंट और औलक एन्ड कम्पनी अब सिर्फ यादों में है।

त्रिसुण्डी में उद्योग के नाम पर इंडेन का बॉटलिंग प्लांट है।वहां उद्योगों के लिए ली गई जमीन के बड़े हिस्से पर सी आर पी एफ का ग्रुप सेंटर बन गया। ए सी सी का सीमेंट कारखाना, भारत गैस का बॉटलिंग प्लांट, बहादुरपुर में राजीव गांधी पेट्रोलियम इंस्टिट्यूट, फुरसतगंज में इंदिरा गांधी उड्डयन अकादमी और फुटवियर डिजाइनिग संस्थान राजीव जी के बाद की पीढ़ी की देन हैं।उनकी इमारते अमेठी का मान बढ़ाती है।फिर सवाल आ जाता है कि उनसे अमेठी के हिस्से में क्या आया ?
स्मृति ईरानी की आमद के साथ गांधी परिवार की राजनीतिक घेरेबंदी के लिए यह सवाल और जोर-शोर से उठ रहा है।गांधी परिवार से जुड़ाव की शोहरत के मोहक सपनों में डूबती-उतरारती अमेठी जमीनी सच्चाइयों से टकरा अब काफी मुखर हो चली है। भाजपा की सरकारें अमेठी के विकास की सच्चाइयों के बहाने 2019 में हिसाब चुकता करने में जुटी हैं। उधर राहुल गांधी और कांग्रेस पिछले पांच साल में अमेठी के साथ इन सरकारों के सौतेले व्यवहार के अस्त्रों से उसे मात देने की तैयारी में है।चुनाव हैं तो उसका नतीजा भी निकलेगा। पर 31 साल पुराने अमेठी के सवाल ,” किलो-किलो बाकी है” का जबाब जमीन पर उतरता देखना बाकी ही रहेगा। ””और तब रुपये का पन्द्रह पैसा पहुंचता था। ”’अब?

 

सम्प्रति- लेखक श्री राज खन्ना वरिष्ठ पत्रकार है।श्री खन्ना के आलेख विभिन्न प्रमुख समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते है।