
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के इस ऐलान की गूंज गरीबों की झोपड़ियों और मुफलिसों के टपरों तक भले ही पूरी तरह से नहीं पहुंच पाई हो कि केन्द्र में कांग्रेस की सरकार बनने की स्थिति में देश के हर गरीब को सालाना 72 हजार रुपए मिलेंगे, लेकिन इसकी अनुगूंज ने दिल्ली स्थित भाजपा के पांच सितारा मुख्यालय के गलियारों में जरूर असमंजस और सनसनी पैदा कर दी है। भाजपा का थिंक-टैंक इससे बेचैन है। बेचैनी वित्तमंत्री अरुण जेटली के ट्वीट और फेसबुक पर उनके ब्लॉग में लिखी इबारतों में जाहिर होती हैं। राहुल की घोषणा के तत्काल बाद खबरिया चैनलों पर अरुण जेटली की प्रतिक्रियाओं का सिलसिला बताता है कि राहुल गांधी की ’न्याय-योजना’ ने भाजपा के राजनीतिक-मर्म पर आघात किया है।
सामान्य तौर पर राजनीतिक दल अन्य पार्टियों के घोषणा-पत्र के ऐसे मुद्दों पर प्रतिक्रियाओ से बचते हैं। वो अपनी बात करते है और अपनी बात कहते हैं। अरुण जेटली का राहुल पर राजनीतिक हमला दर्शाता है कि घोषणा ने भाजपा की रणनीति में कहीं न कहीं खलल पैदा किया है। जेटली की सोच में छटपटाहट नजर आती है कि ’कांग्रेस ने हमेशा योजनाओं के नाम पर छल-कपट किया है। कांग्रेस का इतिहास गरीबी हटाने के नाम पर सिर्फ राजनीतिक व्यवसाय करने का रहा है। कांग्रेस ने गरीबी हटाने के संसाधन भी नहीं दिए हैं’। जेटली ने सिर्फ राहुल गांधी को ही हमले की चपेट में नहीं लिया है, बल्कि पचास साल पुराने राजनीतिक पन्नों को खंगालते हुए श्रीमती इंदिरा गांधी को भी आलोचनाओं के दायरे में समेट लिया है। उनका कहना है कि ’इंदिरा गांधी ने भी 1971 में गरीबी हटाने के नाम पर चुनाव जीता था’। जबकि यह काल-खंड कहता है कि लोकसभा का यह चुनाव कांग्रेस ने बंगलादेश विजय की पृष्ठभूमि में लड़ा और जीता था। जेटली ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि ’इंदिराजी नारों को अर्थ-व्यवस्था से अच्छा समझती थीं। उन्होंने महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और गलत नीतियों से भारत की यात्रा को बाधित किया है’।
भाजपा की बेचैनी का सबब यह भी है कि राहुल ने घोषणा के जरिए देश के चुनावी-समर में ’पाकिस्तान के नाम पर राष्ट्रवाद’ का अमूर्त चेहरा हटाकर देश के गरीबी और गुरबत से तरबतर गरीब के चेहरे को विमर्श के केन्द्र में खड़ा कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कामकाज की ज्यादातर समीक्षाओं के निष्कर्ष यही हैं कि केन्द्र-सरकार का कामकाजी-फलक इतना उजला नहीं है कि उपलब्धियों का इन्द्रधनुष तान कर लोगों को सम्मोहित किया जा सके। पुलवामा में आतंकवादी हमले के बाद बजरिए एयर-स्ट्राइक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनाव की बहस को आतंकवाद, राष्ट्रवाद और सम्प्रदायवाद के अमूर्त मुद्दों की ओर मोड़ने की कोशिश की है। राष्ट्रवाद की मर्यादाएं विपक्ष के तीखे सवालों को भोंथरा करने लगीं थी। राहुल की घोषणा ने भाजपा के रक्षा-कवच में छेद कर दिए हैं।
योजना लोकसभा 2019 के चुनाव में कांग्रेस के घोषणापत्र का हिस्सा है। घोषणा का पैकेजिंग गरीबों के लिए ’न्याय योजना’ के रूप में किया गया है। यदि कांग्रेस-सरकार बनी तो देश के 20 फीसदी सबसे गरीब परिवारों के खातों में हर साल 72 हजार रुपए दिए जाएंगे। योजना को मनरेगा पार्ट-2 माना जा रहा है। यूपीए सरकार के दरम्यान मनरेगा योजना राजनीतिक रूप से कांग्रेस के लिए मददगार साबित हुई थी। लोग अभी जो भी काम कर रहे हैं, वो करते रहेंगे। यदि किसी की आय 6 हजार है, तो उसे 12 हजार के स्तर तक लाने के लिए शेष राशि केन्द्र सरकार देगी। इस योजना से देश के पांच करोड़ परिवारों के 25 करोड़ गरीबों को फायदा मिलेगा।
राहुल ने ब्रेकिंग-न्यूज की तरह घोषणा-पत्र के इस हिस्से का ऐलान करके भाजपा के हाथों से गरीबों के नाम पर शोर मचाने वाली योजनाओं का ’इनिशियेटिव’ छीन लिया है। गरीबी भारतीय राजनीति का स्थायी भाव है। देश की गरीबी और गुरबत पर खुद गरीब जितना नहीं रोते हैं, उससे ज्यादा देश के राजनेता प्रलाप करते है। चुनाव के दौरान राजनेताओं का रूदन, उनका आर्तनाद ज्यादा सुनाई पड़ने लगता है। राहुल की घोषणा पर जेटली ने जो बहस शुरू की है, वह आगे भी जारी रहेगी, लेकिन राहुल ने गरीबों के पक्ष में जो पोलिटिकल-स्ट्राइक की है, उसने चुनाव में नोटबंदी, जीएसटी, ब्लेक-मनी, बेरोजगारी जैसे मुद्दों को फिर से जिंदा कर दिया है, जिनके जवाब देने से मोदी-सरकार बचना चाह रही है।
सम्प्रति- लेखक श्री उमेश त्रिवेदी भोपाल एनं इन्दौर से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है। यह आलेख सुबह सवेरे के 27 मार्च के अंक में प्रकाशित हुआ है।वरिष्ठ पत्रकार श्री त्रिवेदी दैनिक नई दुनिया के समूह सम्पादक भी रह चुके है।
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