
27 मार्च 2019, बुधवार के दिन एंटी-सेटेलाइट मिसाइल (ए-सेट) के सफल परीक्षण के बाद ’मिशन-शक्ति’ की सफलता का समाचार देने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरीके से कोई पौन घंटे तक देश को ’होल्ड’ पर रखा, उसमें असामान्य राजनीतिक और अतिशय कूटनीतिक प्रवृत्तियों के दिग्दर्शन होते हैं। लोकसभा चुनाव की पूर्वबेला में जिस तरह से प्रधानमंत्री ने खुद ट्वीट करके देश को सूचित किया कि वो फलां समय पर देश के संबोधित करने वाले हैं, उससे देश में बरबस व्यग्रता, बेताबी, उत्सुकता, आशंका-कुशंका का जो माहौल पैदा हुआ, वह चौंकाने वाला हैं। ’मिशन-शक्ति’ की सफलता और ऐतिहासिकता की सूचना देने के इस घटनाक्रम के पीछे एक सोची-समझी गोपनीय ’मार्केटिंग-स्ट्रेटजी’ काम कर रही थी, जिसका सीधा उद्देश्य लोकसभा चुनाव के मद्देनजर उन चर्चाओं के हवा देना था, जो भाजपा के लिए फायदेमंद हो सकती है।
प्रधानमंत्री ने सबेरे लगभग सवा ग्यारह बजे ट्वीट किया था कि वो पौने बारह से बारह बजे के बीच राष्ट्र से मुखातिब होकर लोगों को संबोधित करेगें। मोदी का यह व्यक्तिगत ट्वीट लोकसभा चुनाव के बेकड्रॉप में राजनीतिक सनसनी पैदा करने के लिए पर्याप्त था। मोदी कोई सवा बारह बजे राष्ट्र से मुखातिब हुए, लेकिन इस बीच देश के सभी न्यूज-चैनल लगभग होल्ड पर रहे। हिंदी-अंग्रेजी के सभी न्यूज-चैनलों पर अनुमान की पतंगे अंतरिक्ष में उड़ रही थीं कि लोकसभा की आचार-संहिता के प्रतिबंधों के बीच मोदी कौन सी घोषणा राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में करने वाले हैं? मीडिया के साथ-साथ भाजपा सहित सभी विपक्षी दल टकटकी बांधे मोदी के इस संबोधन को लेकर व्यग्र थे। सभी जानते थे कि आचार-संहिता के मद्देनजर प्रधानमंत्री देश की सुरक्षा से जुड़े मसलों के अलावा कोई नीतिगत घोषणा नहीं कर सकेंगे। आंतरिक सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर अनुमानों की इस पतंगबाजी के बीच किसी न्यूज-चैनल पर यह कहा जा रहा था कि भारत ने दाउद इब्राहिम को गिरफ्तार कर लिया है, तो कोई अजहर मसूद को लेकर पतंगबाजी में तल्लीन था। एक चैनल पर सूचना चली कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल का कोई करतब सामने आ सकता है, क्योंकि पिछले दो-तीन दिनों से वो देश में मौजूद नहीं थे। मीडिया में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के उस बयान को लेकर भी अटकलें लगाई जा रही थीं कि ’भारत में लोकसभा चुनाव तक भारत-पाक के बीच शांति की कोई सार्थक पहल संभव नहीं है’। उमर अब्दुल्ला का यह ट्वीट भी चर्चा में था कि मोदी लोकसभा चुनाव के परिणाम घोषित करने वाले हैं। यह बहस भी सुर्ख थी कि अपने संबोधन में मोदी राहुल गांधी की ’न्याय-योजना’ का जवाब देने वाले हैं।
बहरहाल, प्रधानमंत्री मोदी ने ’मिशन-शक्ति’ की सफलता को लेकर जो राजनीतिक-मायाजाल रचने का उपक्रम किया, उसके अपेक्षित परिणाम और प्रतिक्रियाएं सामने नहीं आ रही हैं। इस वैज्ञानिक उपलब्धि को मोदी जिस तरीके से सिर्फ अपने और सिर्फ अपने खाते में डालना चाहते थे, बजरिए शक्ति-मिशन वो अपने इस राजनीतिक-मिशन में सफल होते नजर नहीं आ रहे हैं। भले ही इस मिशन की सफलता के बाद भारत अमेरिका, रूस और चीन के बाद चौथी चुनिंदा अंतिरक्ष महाशक्ति बन गया है, लेकिन इस सफलता का श्रेय अकेले लेने में मोदी कभी भी कामयाब नहीं होंगे। कामयाबी की यह कहानी भले ही अब सामने आई हो, लेकिन इस योजना पर काम काफी पहले से चल रहा था। जब चीन इस तकनीकी पर और आगे काम कर रहा था, उसी वक्त जून 2012 में डीआरडीओ के प्रमुख विजय कुमार सारस्वत ने कहा था कि भारत के पास भी सेटेलाइट्स तबाह करने की क्षमता मौजूद है। उन्होंने दावा किया था कि एंटी-सेटेलाइट सिस्टम को लेकर जो तैयारियां होनी चाहिएं, वो मुकम्मल तौर पर भारत हासिल कर चुका है। पर उनका कहना था कि फिलवक्त भारत इसके परीक्षण के रास्ते पर नहीं जाना चाहता, क्योंकि इससे तबाह हुए सेटेलाइट के टुकड़ों से दूसरे सेटेलाइट को खतरा पैदा हो सकता है। सारस्वत ने बताया था कि भारत के पास एक लांग रेंज ट्रेकिंग रडार है, जिसका इस्तेमाल बेलेस्टिक मिसाइल डिफेंस प्रोग्राम में किया जा चुका है। रडार की क्षमता 600 किलोमीटर है, जिसे बढ़ाकर 1400 किलोमीटर किया जा रहा है।
कभी-कभी महसूस होता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने नाम आजाद भारत के इतिहास की हर वो घटना दर्ज कराना चाहते हैं, जिनके कारण देश के कतिपय प्रधानमंत्री इतिहास में अभूतपूर्व स्थान हासिल कर चुके हैं। इस श्रृंखला में सबसे पहले जवाहरलाल नेहरू का नाम दर्ज है। उसके बाद लालबहादुर शास्त्री (1965-पाक युध्द), इंदिरा गांधी (1971 बंगला देश विजेता, 1975 पोखरण परमाणु विस्फोट) और अटलबिहारी वाजपेयी (1999 कारगिल युध्द और परमाणु विस्फोट) का उल्लेख होता है। सर्वमान्य सिद्घांत है कि अपने इर्द-गिर्द कौतुक और कौतूहल का इन्द्रजाल रचने से इतिहास खुश नहीं होता है। इसमें देश, काल और परिस्थितियों की अपनी भूमिका और प्रभावशीलता होती है। उसके बिना निर्मम इतिहास के पन्नों में किसी को भी पनाह नहीं मिलती है। ऐतिहासिकता के लिए देश, काल और परिस्थितियों को तोड़ने-मरोड़ने पर अनर्थ हो सकता है। मोदी को धीरज के साथ अपनी बारी का इंतजार करना चाहिए।
सम्प्रति- लेखक श्री उमेश त्रिवेदी भोपाल एनं इन्दौर से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है। यह आलेख सुबह सवेरे के 28 मार्च के अंक में प्रकाशित हुआ है।वरिष्ठ पत्रकार श्री त्रिवेदी दैनिक नई दुनिया के समूह सम्पादक भी रह चुके है।
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