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 मानहानि केस में ट्रंप को राहत नहीं, देने होंगे ₹733 करोड़

अमेरिका की दो अदालतों ने अहम आदेश पारित किए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने आप्रवासियों से जुड़ी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सख्त नीतियों का समर्थन किया है। एक अन्य अहम मामला न्यूयॉर्क की संघीय अदालत से सामने आया। जीन कैरोल के मानहानि मामले में अदालत ने राष्ट्रपति पद की प्रतिरक्षा संबंधी दलील खारिज कर दी। ऐसे में ट्रंप को राहत नहीं मिली है। उन्हें अब पीड़िता को 733 करोड़ रुपये देने होंगे। विस्तार से जानिए दोनों आदेश

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को एक मानहानि के मामले में कोर्ट ने राहत देने से इनकार कर दिया। जीन कैरोल के मानहानि मामले में संघीय अदालत ने जूरी का फैसला बरकरार रखा। अदालत ने राष्ट्रपति पद की प्रतिरक्षा संबंधी दलील खारिज करते हुए साफ किया कि उन्हें पीड़िता को 733 करोड़ रुपये देने ही होंगे।

क्या है पूरा मामला
दरअसल, 2019 में कैरोल (81) ने ट्रंप पर 1996 में बर्गडॉर्फ गुडमैन डिपार्टमेंट स्टोर के ड्रेसिंग रूम में हमला करने का आरोप लगाते हुए मानहानि का मुकदमा किया था। 79 वर्षीय ट्रंप ने पहली बार जून 2019 में उनके दावे का खंडन किया था। उन्होंने कहा था कि कैरोल मेरे टाइप की नहीं हैं। उसने अपनी किताब- हमें पुरुषों की क्या जरूरत है? को बेचने के लिए यह कहानी गढ़ी थी। अब न्यूयॉर्क की एक संघीय अपील अदालत ने सोमवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ 733 करोड़ रुपये मानहानि के जूरी के फैसले को खारिज करने से इन्कार कर दिया।

कोर्ट ने 50 लाख डॉलर का जुर्माना लगाया था
मैनहट्टन स्थित द्वितीय अमेरिकी सर्किट अपील न्यायालय ने ट्रंप के इस तर्क को खारिज कर दिया कि जनवरी 2024 के फैसले को पलटना चाहिए, क्योंकि वे राष्ट्रपति पद के लिए प्रतिरक्षा के हकदार हैं। तीन न्यायाधीशों की सर्वसम्मत समिति ने अहस्ताक्षरित निर्णय में कहा कि मामले का रिकॉर्ड जिला न्यायालय के इस निर्णय का समर्थन करता है। कोर्ट ने कहा कि ट्रंप के आचरण की निंदनीयता का स्तर उल्लेखनीय रूप से उच्च और संभवतः अभूतपूर्व था। मई 2023 में एक अलग जूरी ने ट्रंप को कैरोल के प्रति यौन शोषण और मानहानि का दोषी पाया था, लेकिन दुष्कर्म का नहीं और उन्हें 50 लाख डॉलर का जुर्माना लगाया था। अपील अदालत ने जून में उस फैसले को बरकरार रखा था।

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने आप्रवासियों पर ट्रंप की सख्ती का समर्थन किया
एक अन्य अहम मामले में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सख्त आव्रजन दृष्टिकोण का समर्थन किया है। इसके तहत आप्रवासियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा रही है। अमेरिकी शीर्ष अदालत ने सुरक्षा एजेंसियों को दक्षिणी कैलिफोर्निया में लोगों को नस्ल या भाषा के आधार पर निर्वासित करने के लिए छापे मारने की अनुमति दे दी। शीर्ष अदालत ने यह फैसला 6-3 की बहुमत से सुनाया। तीन उदारवादी जजों ने सार्वजनिक रूप से निर्णय पर असहमति जताई। एक न्यायाधीश ने कहा कि लैटिनी लोगों को किसी भी समय पकड़ा जा सकता है।

अटॉर्नी जनरल पाम बॉन्डी ने फैसले को बड़ी जीत बताया
सुप्रीम कोर्ट ने न्याय विभाग की उस याचिका को स्वीकार कर लिया जिसमें एक न्यायाधीश के आदेश पर अस्थायी रोक लगाने का अनुरोध किया गया था। न्यायाधीश ने अपने आदेश में एजेंटों को बिना किसी उचित संदेह के नस्ल या भाषा के आधार पर लोगों को रोकने या हिरासत में लेने से रोक दिया गया था, कि वह देश में अवैध रूप से रह रहे हैं। राष्ट्रपति ट्रंप की ओर से नियुक्त अमेरिकी अटॉर्नी जनरल पाम बॉन्डी ने फैसले को बड़ी जीत बताया। सोशल मीडिया पर उन्होंने लिखा कि आव्रजन प्रवर्तन अधिकारी अब बिना किसी रोक के कैलिफोर्निया में गश्त जारी रख सकते हैं।

ट्रंप ने विदेशी मदद रोकने को सुप्रीम कोर्ट से आदेश मांगा
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने विभिन्न देशों को दी जाने वाली अरबों डॉलर की सहायता पर रोक लगाने के लिए सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से आपातकालीन आदेश जारी करने की अपील की है। इस कानूनी लड़ाई का मूल मुद्दा अमेरिकी संसद द्वारा स्वीकृत लगभग पांच अरब डॉलर की सहायता है, जिसके बारे में राष्ट्रपति ट्रंप ने पिछले महीने कहा था कि वह इसे खर्च नहीं करेंगे। उन्होंने उस विवादित प्राधिकार का हवाला देते हुए यह कहा, जिसका पिछली बार उपयोग लगभग 50 वर्ष पहले तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा किया गया था। पिछले हफ्ते, अमेरिकी जिला न्यायाधीश आमिर अली ने फैसला सुनाया कि रिपब्लिकन प्रशासन का धनराशि रोकने का निर्णय संभवतः अवैध है।