पीलीभीत पहुंचते ही सुल्तानपुर के सांसद वरुण गांधी के अंदाज़ बदले हुए हैं। 2014 में वह सुल्तानपुर से लोकसभा के लिए चुने गए थे। अपने चुनाव प्रचार में नरेंद्र मोदी का नाम नही लेते थे। अपनी सभाओं में मोदी के नाम के नारों से उन्हें परहेज़ था। जीत के बाद भी पूरे कार्यकाल में मोदी के नाम और उनकी सरकार के कामों की चर्चा से वह बचते रहे। समय-असमय अपने बयानों में उन्होंने पार्टी-सरकार के खिलाफ लाइन भी ली। अपने इन तेवरों के चलते पार्टी में हाशिये पर रहे। 2019 में उन्होंने सुल्तानपुर सीट छोड़ने में भलाई समझी। मां की सीट पीलीभीत से इस बार मैदान में हैं। 29 मार्च को वहां नामांकन के मौके पर वरुण का भाषण गुजरे पांच साल में मोदी को लेकर उनके रुख से जुदा था। वरुण ने कहा, ” एक अरसे बाद ऐसा प्रधानमंत्री मिला है, जिसके बारे में छाती चौड़ी करके बोल सकते हैं कि हमारे पास ऐसा प्रधानमंत्री है। मोदी के लिए देश के सिपाही की तरह उनका झंडा लेकर खड़ा हूँ। जो काम उन्होंने पांच साल में किया है, वह अगले पायदान पर जाकर देश के मान सम्मान को बढ़ाएगा। केंद्र सरकार ने काफ़ी काम किया है। लेकिन हमारे लिए सुरक्षा एक अहम मुद्दा है।” तो क्या वरुण भी मान चुके हैं कि” भाजपा में रहना है तो मोदी-मोदी कहना है !”
गांधी परिवार के दूसरे धड़े के कुलदीपक वरुण पहली बार 2009 में अपनी मां की पीलीभीत सीट पर उग्र हिंदुत्व के पैरोकार के रूप में उभरे थे। उस चुनाव में अपने तीखे भाषणों के चलते उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। पर उनकी जीत जोरदार थी। उन्हें मिले 4,19,539 वोटों के मुकाबले दूसरे स्थान पर रहे कांग्रेस के वी एम सिंह के वोट 1,38,038 थे। जीत का अन्तर बड़ा 2,81,501 वोटों का था। लेकिन पुत्र को स्थापित करने की कोशिश में मेनका को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा था। वह आंवला में मुश्किल से जीतीं। सिर्फ 7,681 वोटों के फासले से। उन्हें 2,16,503 और दूसरे स्थान पर रहे सपा के धर्मेंद्र कुमार को 2,08,822 वोट मिले थे।
अगले छः महीने के भीतर वरुण गांधी एक सुरक्षित चुनाव क्षेत्र की तलाश में सुल्तानपुर में थे। तबकी उनकी छवि और पारिवारिक जुड़ाव के कारण सुल्तानपुर का प्रतीकात्मक महत्व था। उसके एक ओर भाजपा के हिंदुत्व की प्रयोगशाला अयोध्या है जिसने पार्टी के उत्थान में बड़ी भूमिका निभाई। दूसरी ओर अमेठी जिसे वरुण के पिता संजय ने गांधी परिवार से जोड़ा। यह वह दौर था जब भाजपा उत्तर प्रदेश में फिर से खड़े होने की कोशिश में थी। वरुण का आकर्षण और भीड़ खींचने की क्षमता उन्हें चर्चा में बनाये हुई थी। 20 दिसम्बर 2009 को उन्होंने ख़ुर्शीद क्लब में बड़ी जनसभा की । यह वही मैदान था जहां पच्चीस साल पहले उनकी मां मेनका गांधी ने सभा की थी। परिवार से बगावत करके वह जेठ राजीव गांधी के खिलाफ 1984 के लोकसभा चुनाव में अमेठी से उम्मीदवार थीं। उस सभा में अपने साथ हुई नाइंसाफी का जिक्र करते हुए उन्होंने इंदिरा जी, राजीव-सोनिया जी सब पर तीखे हमले किये थे। तब वरुण के सुल्तानपुर से जुड़ाव को पड़ाव माना गया था। निशाने पर विरासत की प्रतीक अमेठी समझी गई। अटकलें थीं कि यह पारिवारिक लड़ाई का अगला चरण है। पर वरुण का रुख उस सबसे अलग था। भीड़ के जोश-उत्साह और नारेबाजी के बीच उन्होंने एक बार भी प्रतिद्वन्दी खेमे के भाई राहुल गांधी का कोई जिक्र नही किया था। पीलीभीत चुनाव में उग्र हिंदुत्व के पोस्टर ब्वॉय बने वरुण उस चोले को छोड़ चुके थे। इस सभा में उन्होंने कहा था , ” मैं हवाई अड्डे पर उतरा। वहां फायर ब्रिगेड की गाड़ियां खड़ी थीं। मैंने कहा इसकी क्या जरूरत है? मैं यहां आग लगाने नही। मैं तो यहां आग बुझाने आया हूँ!”
वरुण आगे भी इस रुख़ पर कायम रहे। जिन्हें लगता था कि उनकी सुल्तानपुर में मौजूदगी बगल अमेठी में राहुल गांधी के कारण ,” गांधी बनाम गांधी ” के टकराव का सबब बनेंगी उन्हें निराशा हाथ लगी। निराश वे भाजपाई भी हुए जो वरुण की सुल्तानपुर की सक्रियता के चलते अमेठी में उसका लाभ आंक रहे थे।पार्टी के मुकाबले पारिवारिक रिश्तों को तरजीह के संकेत वरुण ने 2014 के लोकसभा चुनाव के साल भर पहले 16 मई 2013 को खुर्शीद क्लब की बड़ी सभा में फिर से दिए। तबके पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी मंच पर साथ थे। वरुण ने फैजाबाद, जौनपुर ,प्रतापगढ़ की सीटों का नाम लेकर वहां पार्टी प्रत्याशियों को जिताने की अपील की लेकिन अमेठी का नाम लेने से भी परहेज किया।
2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार का वाक़या दिलचस्प है। एक अप्रैल को सीताकुण्ड स्थित मारवाड़ी भवन में शिक्षकों की एक बैठक में वह पीलीभीत के अनुभवों को साझा कर रहे थे। वरुण के मुताबिक वहां उनकी कोशिशों से स्थापित दो चीनी मिलों में सिर्फ 18 लोगों को नौकरी मिल सकी। खुद को कुटीर उद्योगों का हिमायती बताते हुए उन्होंने अमेठी में राहुल गांधी की महिला स्वयं सहायता समूहों के जरिये रोजगार दिलाने की कोशिशों की सराहना कर डाली थी। अगले दिन अमेठी के भाजपा कार्यकर्ताओं ने बैठक करके उन्हें अमेठी के विकास का सच जानने के लिए अमेठी आने की चुनौती दी थी। अपने ही गोल पोस्ट में गोल कर देने के लिए नाराजगी भी जताई थी। प्रत्याशी स्मृति ईरानी से सवाल हुआ था कि क्या वरुण उनके लिए प्रचार करेंगे? खिन्न होकर उनका जबाब था ,” वह अपना चुनाव देखें !” पार्टी के ऐतराज और मीडिया में मचे शोर के बीच वरुण ने सफाई दी थी कि उनकी बात को किसी दल अथवा उम्मीदवार के समर्थन के रूप में न देखी जाए। बार- बार पिता की कर्मभूमि का जिक्र करने पर उन्हें अमेठी की याद दिलाई गई थी। उनका जबाब था ,” मां ने दिल की जगह दिमाग के इस्तेमाल की नसीहत दी है। जाऊंगा अमेठी। चुनाव बाद।”
पर दूसरा खेमा वरुण को लेकर उदार नही था। चुनाव में इस खेमे की पहली और आखिरी वफ़ादारी अपनी पार्टी और उसके उम्मीदवार के लिए थी। राहुल गांधी 2014 में अमेठी से नामांकन के लिए अमहट हवाई पट्टी पर उतरे। पहले ही फुरसतगंज पहुंच चुके प्रियंका और उनके पति रॉबर्ट सड़क मार्ग से राहुल को लेने अमहट आये। फिर अमहट से गौरीगंज (अमहट) की ओर प्रस्थान किया। सुलतानपुर के हिस्से में आने वाले 15 किलो मीटर क्षेत्र में प्रत्याशी अमिता सिंह के पक्ष में रोड शो किया। प्रियंका गांधी इतने पर ही नही रुकीं। उन्होंने वरुण को हराने की खुली अपील की। एक विपक्षी नेता की तरह प्रहार किए। 14 अप्रैल 2014 को मुंशीगंज में उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा , ” वरुण ने गांधी परिवार के साथ विश्वासघात किया है। जनता उन्हें कभी माफ़ नही करेगी। राजनीति एक विचारधारा की लड़ाई है। इसे घर की चाय पार्टी न समझें। वरुण गांधी विरोधी विचारधारा से जुड़ें हैं। इसलिए वे वरुण से सवाल पूछ रही हैं। चूंकि वरुण ने परिवार से विश्वासघात किया है। इसीलिए मैं बार-बार सवाल उठा रही हूं।”
प्रियंका ने तब यह भी कहा था, ” उनकी रगों में नफ़रत और बगावत नही है बल्कि एकता और अखंडता का खून भरा है। परिवार का एक सदस्य अगर गलत रास्ते पर जाता तो उसे घर के बड़े-बुजुर्गों को रास्ते पर लाना पड़ता है। वरुण ने पिछले चुनाव में कुछ विचार रखे थे लेकिन मैं उन पर बिल्कुल यकीन नही करती। ये परिवार के साथ धोखा है। मेरे पिता देश की एकता-अखंडता के लिए मर गए। इसलिए मैं अपमान नही कर सकती। बात भाई की नही विचारों से जुड़ी है।”
पहला पलटवार मेनका गांधी ने किया था। उन्होंने कहा था , ” देश प्रेम और देश भक्ति क्या होती है, इसके लिए उन्हें सर्टिफिकेट की जरूरत नही। देश तय करेगा कौन सही रास्ते पर है?”
14 अप्रैल को ही वरुण गांधी ने विज्ञप्ति जारी करके प्रियंका का नाम लिए बिना जबाब दिया था, ” मैं मर्यादित राजनीति करता हूँ। मैंने दूसरों के मान-सम्मान को हमेशा अपना मान-सम्मान माना है। इस पिछले दशक में अपने भाषणों में किसी व्यक्ति को लेकर, चाहे मेरे परिवार का सदस्य रहा हो या अन्य किसी राजनीतिक दल का वरिष्ठ नेता,मैने मर्यादा की लक्ष्मण रेखा पार नही की। मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि मेरी शालीनता और उदारता को मेरी कमजोरी न समझा जाये। आजकल मेरे पथ की बात हो रही। मैने अपने पथ से हमेशा देश के पथ को महत्वपूर्ण समझा है। अपने जीवनकाल में राष्ट्र निर्माण में रचनात्मक योगदान दे पाता हूँ तो अपने जीवन को सार्थक समझूंगा।”
रोचक तथ्य यह है कि प्रियंका ने भले सुल्तानपुर के मतदाताओं से वरुण को हराने की अपील की। लेकिन वरुण ने पारिवारिक वफ़ादारी निभाई। चुनाव और फिर अगले पांच साल तक वह प्रतिद्वन्दी खेमे के भाई राहुल गांधी को लेकर खामोशी साधे रहे। नाम तो वह मोदी और उनकी सरकार का भी नही लेते थे। पर 14 अप्रेल की उनकी विज्ञप्ति इसका अपवाद थी जिसमे उन्होंने नरेंद्र मोदी को देश की धड़कन बताते हुए देश को उनके हाथों में सुरक्षित बताया था। उन्होंने अटल बिहारी बाजपेयी को अपने दिल में, आडवाणी के स्नेह, राजनाथ के मार्गदर्शन, सुषमा स्वराज के प्यार और गडकरी के सहयोग का इस विज्ञप्ति में जिक्र कर चुनाव के मौके पर उन कार्यकर्ताओं को जोड़ने की कोशिश की थी, जिन्हें उनके भाषणों में पार्टी नेताओं का नाम न लेने की शिकायत और टीस थी।
जीत के बाद वरुण आगे फिर उसी रास्ते पर थे। अपने और गांधी परिवार के आभामंडल पर आत्ममुग्ध ! इस दूरी ने ही उन्हें सुल्तानपुर में असुरक्षित होने के संकेत दिए । फिर से इसीलिए पीलीभीत वापसी को मजबूर हुए। तो क्या वरुण बदलें है ? चुनाव तक या बाद के लिए भी !
सम्प्रति- लेखक श्री राज खन्ना वरिष्ठ पत्रकार है।श्री खन्ना के आलेख विभिन्न प्रमुख समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते है।