लोकसभा-2019 के चुनाव की पूर्व-बेला में आचार-संहिता के उल्लंघन के मामलो में दुनिया भर में अपनी तटस्थता और प्रतिबध्दता के लिए प्रसिध्द भारत का राष्ट्रीय निर्वाचन आयोग फिलवक्त पक्षपात के गंभीर आरोपों के कठघरे में खड़ा है। चुनाव आयोग पर सत्तारूढ़ भाजपा का पक्षधर होने के आरोप कांग्रेस सहित समूचे विपक्ष की राजनीतिक खामोखयाली नहीं है। देश की अखिल भारतीय सेवाओं के 66 पूर्व वरिष्ठ नौकरशाहों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र ने आयोग की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए है।
निष्पक्ष चुनाव कराना आयोग की संवैधानिक जिम्मेदारी है, लेकिन उसकी सत्तोन्मुखी पक्षधरता के मद्देनजर उन सभी लोगों में चिंता व्याप्त है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर संवेदनशील है। राष्ट्रपति को संबोधित पत्र में आचार-संहिता के पालन में आयोग की भूमिका को लेकर 66 वरिष्ठ पूर्व नौकरशाहों ने गहरी चिंता जताई है। चुनाव आयोग के कामकाज पर पूर्व नौकरशाहों की गैर-राजनीतिक आपत्तियों का यह घटनाक्रम हालात की गंभीरता को रेखांकित करन के लिए पर्याप्त है। राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखने वाले नौकरशाहों में पूर्व विदेश सचिव शिवशंकर मेनन, दिल्ली के पूर्व उप-राज्यपाल नजीब जंग, पंजाब के पूर्व डीजीपी जुलियो रिबेरो, प्रसार भारती के पूर्व सीईओ जवाहर सरकार और ट्राई के पूर्व चेयरमेन राजीव खुल्लर जैसी जानी-मानी हस्तियां शरीक हैं। मध्य प्रदेश के तीन वरिष्ठ आईएएस अधिकारी हर्ष मंदर, पूर्व अतिरिक्त प्रमुख सचिव द्वय प्रवेश शर्मा और रश्मि शुक्ला शर्मा के नाम है। मप्र के अलावा अधिकारियों में उप्र, बंगाल, राजस्थान, महाराष्ट्र, दिल्ली, हरियाणा, मणिपुर, तमिलनाडू, केरल, कर्नाटक, गुजरात, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के अधिकारियों के नाम हैं। इनके अलावा इंडोनेशिया, जापान, रोमानिया, बंगलादेश, नेपाल, म्यांमार, स्वीडन, ब्रिटेन के हाई कमिश्नर और राजदूतों के नाम भी शिकायतकर्ताओं में शरीक हैं।
केन्द्र-सरकार की राजनीतिक हठधर्मिता ने संवैधानिक संस्थाओं के सारे तटबंध तोड़ दिए है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और सत्तारुढ़ भाजपा के खिलाफ आचार-संहिता के उल्लंघन की शिकायतों के प्रति चुनाव आयोग के ढीले-ढाले रुख से स्पष्ट हो जाता है कि आयोग का रूझान क्या है? लोकतंत्र में भरोसा रखने वाले सभी लोग और संस्थाएं चुनाव-आयोग के रवैये से चिंतित हैं। सवाल यह है कि क्या आयोग ने प्रधानमंत्री मोदी को आचार-संहिता के दायरों से बाहर कर दिया है।
आयोग की शिकायत मे राष्ट्रपति का ध्यान उन शिकायतों की ओर खासतौर से आकर्षित किया गया है, जो प्रधानमंत्री मोदी के राजनीतिक आचरण से जुड़ी है। ’ऑपरेशन-शक्ति’ के दौरान एंटी सैटेलाइट मिसाइल के परीक्षण के बाद प्रधानमंत्री मोदी का राष्ट्र के नाम संबोधन को लेकर मोदी भी सवालों के कठघरे मे हैं। नौकरशाह मोदी पर बनी बॉयोपिक फिल्म, वेब-सीरीज और नमो-टीवी के जबरिया प्रसारण पर आयोग की अनदेखी और निष्क्रियता को भी न्याय-संगत नही मानते हैं। साथ ही ’मोदी, ए कॉमनमेन्स जर्नी’ जैसे प्रायोजित टीवी-शो के पांच एपीसोड का दूरदर्शन पर प्रसारण भी चौंकाने वाला और मर्यादाहीन है।
पत्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित कई भाजपा-नेताओं के भाषणों का जिक्र है, जो देश मे विभाजन और सांप्रदायिक विद्वेष को बढ़ाने वाले हैं। भारतीय सेना को मोदी-सेना कहने के पर आयोग द्वारा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के महज चेतावनी देने की कार्रवाई को भी अपर्याप्त माना है। ऐसे कई मामलों का पत्र में उल्लेख है। वर्धा में भाजपा की रैली कि संबोधित करते हुए तो मोदी ने लोकतांत्रिक मर्यादाओं की सभी हदों को तोड़ दिया है कि ’कांग्रेस ने हिंदुओं का अपमान किया है। लोग कांग्रेस को दंडित करना चाहते हैं, इसी डर से कांग्रेस के नेता हिंदू वर्चस्व वाले संसदीय क्षेत्रों में चुनाव लड़ने से कतरा रहे हैं। राहुल गांधी के केरल के वायनाड से चुनाव लड़ने के संदर्भ में मोदी ने कहा कि इसीलिए वो क्षेत्रों में पनाह ले रहे हैं, जहां बहुसंख्यक हिंदू अल्पसंख्यक हैं’। वर्धा के भाषण की शिकायत के बावजूद मोदी सेना के नाम पर वोट मांगने से बाज नहीं आ रहे हैं। मंगलवार को लातूर, महाराष्ट्र की रैली में प्रधानमंत्री ने भाजपा को वोट देने की अपील करते हुए कहा कि ’पहली बार मतदान करने वाले देश के युवा अपना पहला वोट देश के बहादुर जवानों को समर्पित कर सकते हैं’।
सच्चाई, ईमानदारी, निष्ठा और नागरिकों की राष्ट्र-भक्ति की चौकसी के लिए एकाएक चौकीदार बने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारत के निर्वाचन आयोग की कारनामों और करतूतों की ओर पीठ फेर कर खड़े हैं। राष्ट्रवादी अवधारणाओं की अंधी आंधी में वो सभी पैमाने टूटते नजर आ रहे हैं, जो लोकतंत्र की आत्मा को आहत करते हैं। आयोग सत्तारूढ़ भाजपा के निर्धारित एजेण्डे पर काम कर रहा है।
सम्प्रति- लेखक श्री उमेश त्रिवेदी भोपाल एनं इन्दौर से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है। यह आलेख सुबह सवेरे के 10 अप्रैल के अंक में प्रकाशित हुआ है।वरिष्ठ पत्रकार श्री त्रिवेदी दैनिक नई दुनिया के समूह सम्पादक भी रह चुके है।