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क्या है भाजपा के डेमेज कंट्रोल के दावों की हकीकत – अरुण पटेल

अरूण पटेल

लोकसभा चुनाव के लिए मध्यप्रदेश में प्रथम चरण के मतदान में अब दो दिन ही शेष हैं लेकिन भारतीय जनता पार्टी अभी तक पूरी तरह से आंतरिक विरोध पर काबू नहीं कर पाई है और डेमेज कंट्रोल की जो जिम्मेदारी पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष द्वय विनय सहस्त्रबुद्धे और प्रभात झा, प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह और महामंत्री संगठन सुहास भगत आदि को सौंपी गयी थी। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के लिए पूरी तरह डेमेज कंट्रोल करना आसान होता नहीं दिख रहा है। जिसके चलते कहीं-कहीं नये सिरे से नाराज भाजपाई बगावती तेवर दिखा रहे हैं। चूंकि मध्यप्रदेश में चार चरणों में मतदान होना है इसलिए अभी जिन क्षेत्रों में बाद में मतदान है वहां डेमेज कंट्रोल के लिए पार्टी के पास समय है। देखा जाए तो असंतोष का मुख्य कारण टिकट वितरण है। जिन्हे टिकट नहीं मिला है उनमें आक्रोश पनपना स्वाभाविक है। इसके बाद भी भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश नेतृत्व का मानना है कि इस तरह का आक्रोश कोई नया नहीं हैं। चॅूकि पार्टी राष्ट्रहित में काम कर रही है और देश की जनता को भाजपा पर भरोसा है। इसलिए राष्ट्रवाद,सेना का बढ़ता मनोबल और जनकल्याणकारी योजनाओं के चलते पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं को मतदाताओं का पूरा सहयोग मिल रहा है। यही कारण है कि इस तरह का अंसतोष चुनावी नतीजों पर कोई खास असर नहीं डाल पाएगा। जहां तक भाजपा हाईकमान और प्रदेश नेतृत्व का सवाल है तो इनका स्पष्ट तौर पर मानना है कि इस लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए आंतरिक सकारात्मकता दिखाई दे रही है लोगों के मन में भाजपा है लेकिन वे इसका दिखावा नहीं कर रहे हैं। आतंरिक तौर पर जो करंट है वह निश्‍चित तौर पर विरोधियों को चेतावनी दे रहा है। हालांकि यह भी सच है कि लोकसभा चुनाव के नतीजे 23 मई को आना है और उसी में तय होगा कि अंडर करंट किसके फेवर में था या यह भाजपा नेतृत्व की आत्ममुग्धता थी।

भाजपा सांसद बोधराम भगत बतौर निर्दलीय उम्मीदवार बालाघाट में अपनी ही पार्टी के ढालसिंह बिसेन की राह रोकने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं, हालांकि पार्टी ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया है। सागर के लोकसभा सदस्य लक्ष्मीनारायण यादव भी विद्रोही तेवर दिखा रहे हैं और उन्होंने कह दिया कि वे भाजपा के लिए प्रचार नहीं करेंगे क्योंकि सागर सीट का टिकट एक गुट विशेष ने हाईजैक कर लिया है। हालांकि वे पार्टी के हित में किसी अन्य क्षेत्र में प्रचार करने के लिए सहमत हो गए हैं। जहां तक यादव का सवाल है वे स्वभावत: विद्रोही तेवर वाले नेता हैं क्योंकि वे समाजवादी हैं और समाजवादियों के बारे में यह धारणा रही है कि यदि नौ समाजवादी नेता हैं तो वे तेरह गुटों में बंटे हुए हैं। यादव भाजपा में आने से पूर्व कांग्रेस में ही प्रदेश स्तर के पदाधिकारी रह चुके हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे अनूप मिश्रा टिकट कटने से अनमने हैं और वे अपनी नाराजगी को छुपा भी नहीं रहे हैं। मुरैना नगर निगम के अध्यक्ष और भाजपा के पूर्व सांसद अशोक अर्गल तो खुले तौर पर असंतोष जाहिर कर चुके हैं।

उम्मीदवारों की घोषणा के साथ ही विरोधी स्वर मुखर होने का सिलसिला शायद इसलिए हुआ क्योंकि जो उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे गये उन्हें कार्यकर्ता पसंद नहीं करते। चूंकि छतरपुर जिले के पूर्व विधायक आर.डी. प्रजापति समाजवादी पार्टी से उम्मीदवार बनकर टीकमगढ़ क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं जबकि उनका पुत्र भाजपा विधायक है। खरगापुर के उमा भारती के करीबी पूर्व विधायक अजय यादव ने तो कांग्रेस का दामन थाम लिया है। सागर में लक्ष्मीनारायण यादव तो रुठे हुए थे ही, तो वहीं उनके अलावा भाजपा नेता मुकेश जैन ढाना ने वहां निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। राजगढ़, विदिशा, खजुराहो में प्रत्याशियों की घोषणा के बाद विरोध का जो सिलसिला चालू हुआ था वह थमने का नाम नहीं ले रहा, यही कारण है कि पार्टी के बड़े नेता क्षेत्रों में जाकर कार्यकर्ताओं को मनाने में लगे हैंं। कुछ दिन बाद ही अब यह साफ हो सकेगा कि ये नेता अपने प्रयासों में कितने सफल हुए। परिस्थितियां हाथ से न निकल जायें इसलिए अब डेमेज कंट्रोल के प्रयास तेज कर दिये गये हैं। प्रत्याशी चयन को लेकर जो तरीका अपनाया गया उसके कारण भी असंतोष अधिक है। ऐसा लगता है कि किसे खड़ा करना है यह पहले तय कर लिया और बाद में किस क्षेत्र में फिट किया जा सकता है यह तय हुआ। इसका आभास इस बात से भी मिलता है कि भाजपा के प्रदेश महामंत्री विष्णुदत्त शर्मा (वीडी) का नाम पहले भोपाल से चला फिर खिसक कर मुरैना गया और बाद में विदिशा होते हुए अंतत: खजुराहो से प्रत्याशी के रुप में उनके नाम पर मुहर लगा दी गयी। इसी प्रकार विदिशा सीट का मामला भी रहा जहां नाम तो दूसरे चले लेकिन अंत में रमाकान्त भार्गव का नाम फाइनल हुआ। भोपाल का भी कुछ ऐसा ही सिलसिला रहा कि कभी पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, तो कभी उमा भारती का नाम चला और कभी नरेंद्र सिंह तोमर का नाम चल पड़ा लेकिन अंतत: उम्मीदवार प्रज्ञा ठाकुर हुईं। जिनके बारे में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने काफी पहले ही मन बना लिया था। संघ वी.डी. शर्मा को भी चुनाव लड़ाना चाह रहा था, इसीलिए उनका नाम कई क्षेत्रों से चला और अंतत: ठिकाना खजुराहो बना।

 

सम्प्रति-लेखक श्री अरूण पटेल अमृत संदेश रायपुर के कार्यकारी सम्पादक एवं भोपाल के दैनिक सुबह सबेरे के प्रबन्ध सम्पादक है।