नई दिल्ली 10 दिसम्बर।लोकसभा ने लम्बे विचार-विमर्श और मत विभाजन के बाद नागरिकता संशोधन विधेयक को कल रात पारित कर दिया। 311 सदस्यों ने विधेयक के समर्थन में और 80 ने विरोध में मतदान किया।
यह विधेयक पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान जैसे देशों से उत्पीड़न के कारण वर्ष 2014 के अंत तक भारत आ गए हिंदू, जैन, पारसी, बौद्ध और इसाई समुदाय के लोगों के लिए नागरिकता का प्रावधान करता है।
हालांकि छठी अनुसूची में शामिल कुछ जनजातीय क्षेत्रों और पूर्वोत्तर राज्यों में इनर लाइन परमिट व्यवस्था के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों को विधेयक के दायरे से अलग रखा गया है। यह विधेयक नागरिकता अधिनियम 1955, पासपोर्ट अधिनियम 1920 और विदेशी नागरिक अधिनियम 1946 में संशोधन करता है।
गृहमंत्री अमित शाह ने सदन में बहस का जवाब देते हुए कहा कि विधेयक अनुच्छेद-14 सहित संविधान के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता।श्री शाह ने कहा कि पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के कारण यह विधेयक लाना जरूरी हो गया था।उन्होंने इन तीन पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यक आबादी लगातार कम होने का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि यह विधेयक मुस्लिमों के खिलाफ नहीं है।
उन्होने कहा कि…किसी को डरने की जरुरत नहीं है। राशन कार्ड हो न हो आपको ये विधेयक शक्ति देगा। आप नागरिक बन सकते हो। हम बचा लेंगे। आइए, राशन कार्ड निकाल दीजिए, आइए, ये सर्टिफिकेट ले जाइए। मान्यवर, मैंने कहा है डाक्यूमेंट है, नहीं है, डेट चली गई है, आधा है, अधूरा है, पूरा नहीं है सबको नागरिक बनाना है।कोई जरुरत नहीं डक्यूमेंट की। मान्यवर ये जो अफवाहें फैलायी जा रही हैं वो अफवाओ में किसी को आने की जरुरत नहीं, किसी को डरने की भी जरुरत नहीं…।
श्री शाह ने कहा कि मणिपुर को इस विधेयक के लिए इनर लाइन परमिट व्यवस्था के अंतर्गत लाया जाएगा। पक्ष के बार-बार सवाल उठाने पर कि यह विधेयक अभी क्यों पेश किया जा रहा है, गृहमंत्री ने कहा कि धर्म के आधार पर देश के बंटवारे के कारण यह जरूरी हो गया था।उन्होंने कहा कि इस विधेयक से भारत में किसी भी अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना नहीं बनाया गया है।उन्होंने कहा कि सभी पूर्वोत्तर राज्यों ने विधेयक का समर्थन किया है और उनकी चिंताओं का समाधान किया गया है। श्री अमित शाह ने जोर देकर कहा कि राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर किसी भी कीमत पर लागू किया जाएगा।
इससे पहले, चर्चा की शुरूआत करते हुए कांग्रेस के मनीष तिवारी ने विधेयक को संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन बताया।उन्होने कहा कि..जो मूलभूत ढांचा है हमारे संविधान का जो ये कहता है कि हर कानून पंथ निरपेक्ष होना चाहिए। आज जो ये विधेयक आया है, ये विधेयक उस मूलभूत आधार का उल्लंघन करता है..।
डी.एम.के. पार्टी के दयानिधि मारन ने सवाल उठाया कि श्रीलंका के तमिलों को विधेयक के दायरे से बाहर क्यों रखा गया है।राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की सुप्रिया सुले ने कहा कि इससे मुस्लिम असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।मॉर्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के वेंकटेशन ने कहा कि यह विधेयक संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस के अभिषेक बनर्जी ने कहा कि धार्मिक या सांस्कृतिक पहचान नागरिकता के फैसले का आधार नहीं बन सकती।
बहुजन समाज पार्टी के अफज़ल अंसारी ने कहा कि विभाजन के दौरान भारत से पाकिस्तान गए मुस्लिमों को भी वहां भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है।नेशनल पीपल्स पार्टी की सुश्री अगाथा संगमा ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि पूर्वोत्तर राज्यों के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद इसे पेश किया गया है।