प्रधानमंत्री जी के 19 मार्च को कोरोना वायरस से बचाव के लिए 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के आह्वान के बाद देश में कोरोना की चर्चा गंभीरता से बढी है,और साथ ही नए प्रश्न भी सामने आए हालांकि आज के दौर में सत्ताधीशो से प्रश्न पूछना राष्ट्रद्रोह और मानसिक प्रताड़ना का अपराध बन गया है।
विशेषतःफेसबुकिये बाहुबलियों की एक गैंग है जो चाहती है कि सरकार से कोई सवाल न पूछे जाएं और उनकी चर्चा करते ही हिंदू विरोधी,राष्ट्र विरोधी आदि आदि हथियारों के साथ हमले शुरू हो जाते हैं। मेरी 20 मार्च की एक फेसबुक की पोस्ट जिसमें मैंने प्रधानमंत्री को जनता कर्फ्यू की घोषणा उसके इतिहास और तरीके तथा उसके संभावित परिणामों और सरकारों के दायित्वों पर पर्याप्त विचार नहीं किए जाने का उल्लेख किया था।फेसबुकिये बाहुवलियो पहलवानों ने मुझ पर जो अपशब्द बाण शुरू किए अगर उनको लिखा जाए तो कईयो पेज भर सकते है। मुझे इटली भेजने ,कोरोना से मरने ,सोनिया गांधी की गैंग में शामिल होने आदि राष्ट्र विरोधी ,धर्म विरोधी ,मोदी विरोधी जैसी उपाधियों से विभूषित कर दिया गया।बहरहाल मैं अपने लोकतांत्रिक मानस के चलते लगभग 72 घंटे फेसबुक बाहुवलियो से जूझता रहा ।मैं जानता हूं कि जब तर्क समाप्त हो जाते हैं तो गालियां शुरू होती है।यह फेसबुकिये गिरोह तर्क नहीं करते यह तो केवल गाली -आतंकवाद फैलाना चाहते हैं।कुछ लोगों घबड़ाकर या योजना के तहत मुझे सोशल मीडिया पर नहीं लिखने का सुझाव दिया और अप्रत्यक्ष रूप से सोशल मीडिया के संवाद माध्यम को छोड़कर उन्हें खुला मंच देने की योजना बनाई।
गत 20 मार्च को मैंने दिल्ली के बाजार में बिक रहे 250 सौ से 850 तक के मास्क और सैनेटाइजर दाम वृध्दि का समाचार लिखा था।उसके कुछ प्रमाण चित्र डाले थे। प्रधानमंत्री जी ने से उनके दायित्वों के बारे में पूछा था।क्या उन्हें अपने संबोधन में या कार्य सूची मे उन जरूरी उपकरणों को उचित दामो पर नहीं बिकवाना चाहिए।कितना अच्छा होता कि 19 मार्च को जनता कर्फ्यू की अपील करते समय प्रशासन और व्यापारियों से यह भी अपील करते कि कालाबाजारी नहीं होने देंगे या अच्छा होता कि सरकार की ओर ओर से छात्रों मजदूरो को पांच करोड मास्क सरकार की ओर से निशुल्क बंटबाने की घोषणा करते। मैंने यह भी सवाल पूछा था कि क्या प्रधानमंत्री के द्वारा जनता कर्फ्यू के अलावा कोई और शब्द उचित नहीं होता।
जनता कर्फ्यू शब्द का प्रयोग 1973 में गुजरात के छात्र आंदोलन में फिर 1974 के जेपी आंदोलन में हुआ था जिसके हम लोग हिस्सेदार रहे हैं।अगर जनता को ही जनता को रोकना था तो फिर सरकार ने 21 मार्च को 4000 रेलगाड़ियां रद्द क्यों की।सब दूर व्यापारियों और जनता को 22 को बंद रखने के लिए पुलिस प्रशासन का इस्तेमाल क्यों किया।उन्होंने सफाई के साथ सीधे कर्फ्यू लगाने की घोषणा क्यों नहीं की।परंतु प्रधानमंत्री जी एक कुशल इवेंट मैनेजर हैं।उन्होंने यह भी अपील की कि शाम को पांच बजे अपने घरों के सामने तालियां थालियां बजाकर उन कर्मचारियों का अभिनन्दन करें जो कर्फ्यू के दौरान काम करते रहे ।परंतु क्या यह उचित नहीं होता कि वे उनके अघोषित आदेश को क्रियान्वित करने वाले कर्मचारियों को व उनके काम को पुरस्कृत करने के लिए कुछ राशि भी देने की घोषणा करते।अगर जनता को यात्रा से रोकना था तो फिर सरकार ने पहले ही रेलगाड़िया रोकने का ऐलान क्यों नहीं किया ताकि लोगो को अग्रिम सूचना मिल जाती।और जनता अपने कार्यक्रम बदल सकती। 22 तारीख की शाम को उनके थाली और ताली के अभिनंदन का रहस्य तब मालूम पड़ा,जब उनके फेसबुक बाहुबलियों ने गिनती गिन कर यह बता दिया कि देश में 53 करोड़ लोगों ने तालियां थाली बजाई ।इतना ही नहीं यह भी अभियान शुरू किया गया कि इतना जनसमर्थन कभी महात्मा गांधी को भी नहीं मिला यानी श्री मोदी जी महात्मा गांधी से भी महान हैं।उनके कुछ समर्थकों ने यह भी लिखना शुरू किया कि जनता कर्फ्यू की महान सफलता के लिए श्री मोदी जी को नोबेल पुरस्कार दिया जाना चाहिए।मैं नहीं जानता हूं कि यह प्रायोजित था या आकस्मिक परंतु ऐसी फेसबुक प्रतिक्रियाये चौंकाने वाली हैं।इनसे उत्साहित होकर 24 मार्च को प्रधानमंत्री ने सरकार द्वारा घोषित तीन दिवसीय कर्फ्यू को 14 अप्रैल तक के लिए यानी 21 दिनों के लिए लागू करने की घोषणा कर दी,क्योंकि उनके घर पर रहने से ही वायरस संक्रमण की चेन कट सकती है।यह सही है पर कुछ प्रश्न जेहन में उठते हैं–
- जब फरवरी माह में ही विश्व स्वास्थ संगठन ने यूएनओ के माध्यम से दुनिया के सभी देशों को कोरोना संक्रमण की चेतावनी और एडवाइजरी जारी कर दी थी तो प्रधानमंत्री जी लगभग एक माह चुप क्यों बैठे रहे।
- चीन इटली अमेरिका और इरान फरवरी से इस संक्रमण से जूझ रहे थे यूरोप भी प्रभावित हो रहा था तब उन्होंने विदेशों से आने वाले यात्रियों पर नियंत्रण और हवाई अड्डों पर रोककर उन्हें प्रवेश की अनुमति देने के पूर्व आइसोलेशन वजाँच के उपरांत ही प्रवेश की अनुमति के आदेश क्यों नहीं दिये।जब कि स्वतः प्रधानमंत्री जी ने फरवरी के अंत से ही अपनी सारी विदेशी यात्राये निरस्त कर दी थी। तो क्या यह कदम देश में नहीं उठाना चाहिए था। पूर्व विदेश सचिव शशांक शेखर ने इस बिलम्ब पर प्रश्नचिन्ह लगाया है।
- 21 दिन के कर्फ्यू की घोषणा के पहले क्या उन्होंने इन प्रश्नों पर विचार किया ..
अ. देश के बड़े हिस्से में कृषि कार्य जारी है और फसल की कटाई हो रही है। जब हार्वेस्टर नहीं चलेंगे मजदूरों के समूह खेत में नहीं जाएंगे तो क्या फसलें खेतों में खड़ी खराब नहीं होंगी और जब किसान उनकी घर बंदी के कारण रखवाली नहीं कर सकेगा तो फसलों का क्या होगा।
ब. अचानक 4000 और बाद में सारी रेलों को बंद करते समय क्या उन यात्रियों के बारे में कुछ विचार किया जो अपनी यात्रा पर रवाना हो चुके थे। और जिन्हें बीच जंगलों में बगैर खाना पानी के खड़ा कर दिया गया।
स. देश के चार करोड़ गरीब लोग और विशेषतः मजदूर झोपड़ पट्टियों में रहने वाले साइकिल रिक्शा चलाने वाले तथा दैनिक वेतन मजदूर अपना दैनिक राशन खरीदते हैं,क्योंकि उनके पास न जमा करने लायक जगह है न खरीदने की क्षमता है ।न साधन है ना स्थान। सस्वतःभारत के योजना आयोग ने यह स्वीकार किया है कि देश के 40 करोड़ लोगों की क्रय क्षमता 20 रूपए प्रतिदिन से भी कम है। प्रधानमंत्री का आदेश मानकर 25 तारीख की सुबह से ही लोग घरों में कैद कर दिए गए।कहां से उनके पास राशन आएगा कहां से बच्चों को दूध दवाई देने पैसा आएगा।
द-क्या यह उचित नहीं था कि प्रधानमंत्री जी देश के तीन करोड़ जनधन खातों में 21 दिन के खर्च के लिए केंद्र के द्वारा 5000प्रति खाता डलवा देते।मुश्किल से 15 हजार करोड़ रुपए में तीन करोड़ परिवार जिंदा रहने लायक राशन खरीद पाते।हालांकि मैं केरल सरकार और उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश की सरकारों को बधाई दूंगा की उत्तर प्रदेश में 35 लाख खातों में एक 1000 रुपया तथा मध्य प्रदेश में सामाजिक सुरक्षा विधवा पेंशन आदि का दो माह का अग्रिम भुगतान का आदेश दिया गया है। केरल सरकार ने दो फरवरी के आरंभ में ही सावधानी बरती थी उन्होंने लगभग उस पर पूरा नियंत्रण कर लिया।क्योंकि केरल में दुनिया से आने वालों की संख्या ज्यादा है।तथा यह केरल सरकार की दूरदृष्टि थी कि उन्होंने समय पूर्व कदम उठा लिए।
- कारखाना बंदी से करोड़ों मजदूर दिल्ली मुंबई जयपुर चंडीगढ़ और जैसे बड़े बड़े महानगरों में फस गए ।घरों से निकल नहीं सकते पैसा है नहीं राशन खत्म हो रहा है और सरकार चुप है। लाचार होकर वे घरों से बच्चों के साथ सामान के साथ पैदल जाने को लाचार हैं ।सैकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा बगैर दाना पानी बगैर पैसे के कैसे कर पाएंगे इसकी कल्पना मात्र से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं ।कितना ही टीवी चैनल इन के फोटो दिखा रहे हैं उन्हें पुलिस से पिटते बता रहे हैं,परंतु प्रधानमंत्री जी चुप हैं।यहां तक कि दूध के टैंकरों और माल गाड़ियों के डिब्बों में छिप कर बैठकर लोग अपने घरों को जा रहे हैं।क्या यह सरकार की अमानवीयता नहीं है। मैंने यह भी अपील की थी कि कुछ सैनिटाइजड रेलगाड़ियां चलाकर उन्हें उनके घरों के पास तक छुड़वाया दिया जाए। भाजपा के श्री विजयवर्गीय ने दावा किया है कि उन्होंने 80 लोगों को गाड़ियों से भिंड में छुड़वाया है। इसकी सच्चाई मैं नहीं जानता परंतु यह सब जानते हैं कि बंगाल में लाखों मजदूर बिहार उ.प्र का है।
कोरोना वायरस से चिकित्सकीय और वैज्ञानिक मुकाबला करने की वजाय अंधविश्वास फैलाया जा रहा है। 22 मार्च को ताली और थाली बजाने वालों ने घोषणा कर दी कि ताली और थाली की आवाज सुनकर कोरोना वायरस भाग जायेगा और शहरों में लोगो ने घरो व छतो पर तथा सड़को पर समूह में निकलकर गो कोरोना गो कोरोना नारे लगाये। एक तरफ यह अंधभक्ति है और दूसरी तरफ अंधविश्वास भी फैलाया जा रहा है।एक जगत गुरु के मंत्र के पाठ करते हुए वीडियो व फोटो डाले गए हैं और कहे अनकहे कहा जा रहा है कि मंत्र पाठ से कोरोना भाग जाएगा। कुछ इमाम साहबों की भी तकरीर मैंने सुनी है कि जिसमें वह कह रहे हैं कि मस्जिद अल्लाह का घर है। इसमें आने वालों कोरोना नहीं होगा। हालांकि बाद में हिन्दू मुस्लिम दोनों धर्म गुरुओं ने सुधार कर अपील भी जारी की है कि नवदुर्गा पूजा व नमाज घर में ही अदा करने की अपील की है। हिंदू मुसलमान और सभी धर्म गुरुओं को स्वीकार करना चाहिए कि मंत्र और नमाज से वायरस नहीं मरते न इटली में , न ईरान में ,न भारत में।
वायरस को तो वैज्ञानिक तरीकों से ही मिटाना होगा ।एक प्रकार की अघोषित आपातकाल जैसी स्थिति है और सोशल मीडिया के माध्यम से तमाम प्रकार की अफवाहे फैल रही हैं। देश के एक प्रबुद्ध तबके के मन में यह भी शक है कि कहीं कोरोना के नाम पर अतिरेकी बंधन लगाकर 80 हजार करोड रुपए के वित्तीय घाटे को छुपाने का प्रयास तो नहीं है।अभी जानकारी मिली है कि पौने दो लाख करोड के पैकेज का ऐलान भारत सरकार ने किया है हालांकि अमेरिका पहले ही लगभग 78 लाख करोड तथा कनाडा सरकार 22 लाख करोड़ के पैकेज का ऐलान कर चुकी है ।कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रुदो ने तो स्पष्ट घोषणा की कि लोग लॉकडाउन के दिनों में घर पर रहे। आपको घर बैठे वेतन सरकार देगी ,यानी इलाज भोजन और वेतन तीनों का संपूर्ण दायित्व कनाडा सरकार ने अपने कंधों पर ले लिया है।कुछ देर से ही सही कल रात भारत सरकार ने पौने दो लाख करोड़ रुपये का राहत पैकेज घोषित कर दिया है।तथा 20करोड महिलाओं के खातों में तीन माह तक 500रु प्रति माह गरीब वरिष्ठ जनों विधवाओं दिव्यांगों डालने के खातों में 1000रुपए डालने पांच किलो राशन व एक किलो मुफ्त दाल उज्ज्वला गैस योजना के तहत निशुल्क गैस देने की घोषणा की है।प्रधानमंत्री जी को इसके लिए साधुवाद।
सम्प्रति- लेखक श्री रघु ठाकुर देश के जाने माने समाजवादी चिन्तक है।प्रख्यात समाजवादी नेता स्वं राम मनोहर लोहिया के अनुयायी श्री ठाकुर लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के संस्थापक भी है।