रायपुर 30 अक्टूबर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का तीसरा और अंतिम दिन भी आज सुबह से शाम तक मांदर की थाप, घुंघरूओं की खनक, मधुर स्वर लहरियों और रंग-बिरंगे परिधानों से गुलजार रहा।
विभिन्न राज्यों से आए आदिवासी नर्तकों ने साइंस कॉलेज मैदान के भव्य मंच पर दिन भर अपने-अपने राज्यों की संस्कृति की छटा बिखेरी। ओड़िशा के कलाकारों ने धाप, लद्दाख के कलाकारों ने हाहानु, असम के कलाकारों ने बोडो और तमिलनाडू के कलाकारों ने इरूला नृत्य की प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्र-मुग्ध किया।
ओड़िशा के कलाकारों ने वहां के पश्चिमी जिलों संबलपुर, सुंदरगढ़, कालाहांडी और बलांगीर क्षेत्र में लोकप्रिय धाप नृत्य प्रस्तुत किया। केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के नर्तकों ने विवाह के अवसर पर किए जाने वाले हाहानु नृत्य की प्रस्तुति दी। परंपरागत परिधान और सिर पर फूलों से सजी-धजी आकर्षक पगड़ी में युवा कलाकारों ने गीत और नृत्य के माध्यम से वहां की संस्कृति से रू-ब-रू कराया।
असम के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत बोडो नृत्य के दौरान उनके परिधानों में पीला, लाल और हरा रंग का गजब का संयोजन देखने को मिला। परंपरागत वाद्ययंत्रों मांदर, झांझ और बांसुरी की मधुर स्वर लहरियों के बीच 12 युवतियों ने इस आकर्षक नृत्य की प्रस्तुति दी। परंपरागत रूप से बोडो नृत्य मौसम के बदलने पर आपस में सुख-दुख साझा करने के लिए ग्राम प्रधान के घर किया जाता है।
तमिलनाडु के कलाकारों ने प्रकृति के संरक्षण का संदेश देता इरूला नृत्य प्रस्तुत किया। वहां के आदिवासी जंगल से वनोपज एकत्र कर लाने के बाद अपनी खुशियों का इजहार करने के लिए यह नृत्य करते हैं।
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