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धान एवं मक्के को समर्थन मूल्य पर बेचने के साथ ही होगा भुगतान – रमन

रायपुर 12 नवम्बर।छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कहा हैं कि 15 नवम्बर से समर्थन मूल्य पर धान एवं मक्के की खरीद शुरू हो रही है।इसके लिए व्यापक बन्दोबस्त किए गए है।इस बार इनकी बिक्री के तुरंत बाद किसानों के खातों में पैसा स्थानान्तरित करने की खास व्यवस्था की गई है।

डा.सिंह ने आज सवेरे अपनी मासिक रेडियो वार्ता ‘रमन के गोठ’ में कहा कि इस वर्ष धान बेचने के लिए पिछले साल के मुकाबले एक लाख 27 हजार से ज्यादा किसानों ने अपना पंजीयन करवाया है। इन्हें मिलाकर राज्य की सहकारी समितियों में धान बेचने के लिए पंजीयन कराने वाले किसानों की संख्या 15 लाख 79 हजार हो गई है। पिछले वर्षों की तुलना में यह सबसे ज्यादा है।

डॉ.सिंह ने कहा कि धान खरीदी 15 नवम्बर से शुरू हो रही है, जो 31 जनवरी तक चलेगी। सारी व्यवस्थाएं कर ली गई हैं। किसान भाई-बहनों को अपना धान बेचने के लिए ज्यादा दूर न जाना पड़े इसके लिए औसतन प्रत्येक साढ़े पांच ग्राम पंचायतों के बीच एक धान खरीदी केन्द्र खोला गया है। प्रदेश में धान खरीदी केन्द्रों की संख्या एक हजार से बढ़ाकर  एक हजार 992 अर्थात दोगुनी कर दी गई है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि खरीदी और भुगतान की पारदर्शी व्यवस्था की गई है। जिस दिन धान खरीदी होगी, उसी दिन किसानों के बैंक खातों में राशि चली जाएगी। इस वर्ष धान के समर्थन मूल्य में 80 रूपए प्रति क्विंटल की वृद्धि की गई है। उन्होने कहा कि धान के साथ ही मक्का की खरीदी भी 15 नवम्बर से शुरू हो रही है और 31 मई तक करीब साढ़े छह महीने तक चलेगी। इस वर्ष मक्के का समर्थन मूल्य 1365 रूपए से बढ़ाकर 1425 रूपए प्रति क्विंटल कर दिया गया है।डॉ.सिंह ने कहा कि जिन केन्द्रों में धान खरीदी होगी, उन्हें केन्द्रों में मक्के की भी खरीदी की जाएगी और उसका भुगतान भी किसानों के बैंक खातों में तुरंत किया जाएगा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि धान की फसल छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाकों की जीवन रेखा है तो तेन्दूपत्ता वन क्षेत्रों और आदिवासी बहुल इलाकों की जीवन रेखा है।  हमने समर्थन मूल्य पर धान खरीदी और किसानों को बोनस देने की व्यवस्था करके लगभग 14 लाख किसानों को एक नई ताकत दी है। लगभग इतनी ही संख्या में वनवासी और आदिवासी परिवारों को तेन्दूपत्ते के कारोबार से लाभ देने की व्यवस्था की गई है। डॉ. सिंह ने कहा – बस्तर और सरगुजा संभाग के जिलों के अलावा आंशिक रूप से राजनांदगांव, बालोद, कबीरधाम, धमतरी, गरियाबंद, महासमुंद, बलौदाबाजार, बिलासपुर, रायगढ़, कोरबा, जांजगीर-चाम्पा आदि जिलों में भी तेन्दूपत्ता होता है, जिसके संग्रहण और बिक्री का लाभ स्थानीय ग्रामीण जनता को मिलता है।

उन्होने कहा यह लगभग 14 लाख परिवारों की आजीविका का मुख्य साधन है। इस बात को ध्यान में रखकर राज्य सरकार ने तेन्दूपत्ता संग्रहण का पारिश्रमिक 450 रूपए प्रति मानक बोरा से बढ़ाकर 1500 रूपए और 1800 रूपए तक पहुंचाया और अब नये सीजन के लिए इसकी संग्रहण दर 2500 रूपए प्रति मानक बोरा करने का निर्णय लिया गया है। इस प्रकार हमने तेन्दूपत्ता संग्रहण का पारिश्रमिक 555 प्रतिशत या साढ़े पांच गुणा से ज्यादा बढ़ा दिया है। एक बार में 700 रूपए प्रति मानक बोरा पारिश्रमिक बढ़ाना बहुत बड़ा कीर्तिमान है।

डा.सिंह ने कहा कि धान की तरह हम तेन्दूपत्ता मजदूरों को भी बोनस देते हैं। वर्ष 2016 के तेन्दूपत्ता बोनस के रूप में 274 करोड़ 38 लाख रूपए का भुगतान किया जाएगा। यह राशि 901 प्राथमिक वनोपज समितियों के 14 लाख तेन्दूपत्ता श्रमिकों को मिलेगी। तेन्दूपत्ता बोनस तिहार मनाने का निर्णय लिया गया है। यह तिहार एक दिसम्बर  10 दिसम्बर तक चलेगा। इसमें सिर्फ बोनस ही नहीं बांटा जाएगा, बल्कि वनवासियों के जीवन में बदलाव लाने वाली योजनाओं का प्रचार-प्रसार करते हुए हितग्राहियों को उनका लाभ भी दिलाया जाएगा।