देश की राजधानी दिल्ली में अक्टूबर-नवम्बर माह में फैले स्माक प्रदूषण की समस्या को देश की चिंता में शीर्ष पर ला दिया है। यह प्रदूषण अक्टूबर माह में दीपावली के पहले काफी बढ़ गया था और एक जनहित याचिका जो तीन अबोध बच्चो के नाम से उनके अभिभावको ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी पर विचार करते हुये सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया था कि पटाखो की दुकाने एन.सी.आर की सीमा से बाहर लगायी जाय।
इस निर्णय का देश के स्वयभू धर्म पुरोधारो ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष विरोध किया और सुप्रीम कोर्ट के ऊपर साम्प्रदायिकता का आरोप तक लगाया। कोर्ट ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी परन्तु आरोपकर्ता कट्टरपथियों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को साम्प्रदायिकता से ग्रसित बताया तथा यह चुनौती भी दी कि किसी अन्य धर्म के लोगो के द्वारा पटाखो को फोड़े जाने पर रोक लगा कर तो देखे। सोशल मीडिया पर इस पर काफी चर्चा हुई और जब मैने उन्हें उत्तर दिया कि एक तो सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश स्वतः हिन्दु ब्राम्हण समाज से है दूसरे पटाखो को फोड़ना कोई धर्म का हिस्सा नही है, यह तो परम्परा और बाजार के प्रचार का हिस्सा है। दूसरे मुस्लिम या ईसाई धर्मालम्बी के त्यौहारों पर पटाखा फोड़ने की परम्परा नही है तो इन मित्रो ने मेरे ऊपर भी आरोप लगाय। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का प्रभाव दीपावली के बाद आई प्रदूषण निंयत्रण बोर्ड की रपट से प्रमाणित हुआ जिसमें कहा गया है कि, केवल एन.सी.आर के बाहर दुकाने जाने से जो पटाखे की ब्रिकी कम हुई उससे 43 प्रतिशत प्रदूषण कम हुआ।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि उन्होंने पटाखा फोड़ने पर रोक नही लगाई केवल दुकानो को सुरक्षा की दृष्टि से एन.सी.आर से बाहर लगाने का आदेश दिया है। नवम्बर माह के आरम्भ से दिल्ली का प्रदूषण फिर खतरनाक स्तर को पार कर गया और हालात ऐसे बिगडे कि एक सप्ताह को स्कूल बंद कर दिये गये। 9 नवम्बर से एक सप्ताह के लिये दिल्ली में ट्रकों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई। चूंकि दिल्ली में धूल और धुआं इतना फैल गया था कि इस धुंध का प्रभाव आम लोगो के स्वस्थ शरीर,श्वास पर अतिरिक्त रुप से पड़ने लगा। इसी बीच हरियाणा और पंजाब में पराली जलाने का धुआं भी दिल्ली की ओर मुखातिक हो गया तथा दिल्ली धुंध से भर गई। कुछ इलाको में तो धुआं इतना सघन हुआ कि 50 सिगरेट के धुये के बराबर एक व्यक्ति के स्वस्थ सांस के साथ अंदर जाने लगा। धूल के कण समूचे वायुमंडल में छा गये और उससे भी समूची दिल्ली थम जैसी गई। सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा और एन.जी.टी ने भी दिल्ली सरकार को लताड़ लगाई। प्रदूषण कम करने के नाम पर दिल्ली सरकार ने पुनः सम-विषम योजना को लागू करने का ऐलान किया, जिसमें एक दिन केवल सम नम्बर की गाड़ियां चलेगी दूसरे दिन केवल विषम नम्बर की। दिल्ली की आप सरकार ने इस योजना से महिलाओ और कुछ विशिष्ट जनो को मुक्त रखने का भी प्रावधान किया, परन्तु
ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इसे रोक दिया और कहा कि पिछले बार लागू की गई सम-विषम योजना से प्रदूषण में कमी नही आई साथ ही महिलाओ कुछ अन्य लोगो को छूट देने से भी इनकार किया।
जब पिछले बार सम-विषम योजना लागू की गई थी तब भी दिल्ली में कारो की खरीदारो की संख्या बढ़ी थी, क्योंकि सम्पन्न लोगो ने दूसरे प्रकार के नम्बर की गाड़ी को भी खरीदना शुरु कर दिया था। दिल्ली की आप सरकार ने पांच हजार बसो को खरीदने की घोषणा भी की थी जो कि अभी तक नही खरीदी गई और एन.जी.टी ने भी इन आधारो पर दिल्ली सरकार की नियत और नीति पर प्रश्न चिन्ह लगाये है।
मैने सम-विषम योजना को लेकर जब उसे पहली बार लाया गया था तभी कुछ सवाल खड़े किये थे।
1.सम-विषम योजना से प्रदूषण कम नही होगा क्योंकि लोग निजी वाहनो के उपयोग के अभ्यस्त है और उन्हें खरीदने की क्षमता रखते है।
2.सार्वजनिक यातायात में बेहतर सुविधाओं के अभाव के कारण दिल्ली में निजी वाहनो का इस्तेमाल करना मध्यवर्गीय लोगो की लाचारी है।
- 10-15 वर्ष पुरानी डीजल-पेट्रोल वाहनो के परिचालन पर प्रतिबंध है। वाहनो की संख्या पर तो कोई विशेष प्रभाव नही पड़ेगा बल्कि कार निर्माता कम्पनियों का जमा भंडार खाली हो जायेगा याने उनकी गाड़ियां बिक जायेगी।
4.जो पुराने वाहन या डीजल वाले वाहन दिल्ली में चल रहे है उन पर प्रतिबंध के बाद वे कहां जायेगे, हो सकता है कि, सम्पन्न लोग उन्हें कवाड़े में बेच दे और फिर वे कबाड़ियो, विचैलियो के माध्यम से दिल्ली के आसपास के जिलो, कस्बो में पहॅुच जायेगे। इसका मतलब होगा कि धुआं दिल्ली से समाप्त नही होगा बल्कि स्थानान्तरित होगा और हुकुमरानो या व्यवस्था की चिंता केवल राजधानी के बासियो और विशेषतः श्रेष्ठ वर्ग को प्रदूषण से बचाने की है न कि देश को। इसलिये यह तरीका भी अपूर्व और दूषित लगता है। सरकारो ने तो यहां तक योजना बनाई थी कि वाहनो के बदलाव पर याने पुराने डीजल वाहन को बेचकर नया वाहन खरीदने के लिये सरकार अनुदान और सस्ता ऋृण भी दिलायेगी। इस तरीके से कम्पनियो की कारो की बिक्री और भी आसान हो जायेगी कई कार कम्पनी वालो ने खरीद और बिक्री की योजना भी बनाई जिसमें वे उनकी कम्पनी के पुराने वाहनो को मामूली दरो पर वापस ले लेगे और उतना पैसा काटकर बकाया कीमत लेकर नई कार देगे।इसके लिये कार मेले भी लगाये गये और यह कोई अनजान तथ्य नही है कि कार कम्पनी वाले इन खरीदे हुये वाहनो को पुनः तैयार करा लेगे और नये रुप में बेचेगे। याने कार निर्माता कम्पनी वालो को सम-विषम योजना तीन प्रकार का लाभ देगी।
(अ) कारो के जमा भण्डार की बिक्री और उसका मुनाफा।
(ब) पुरानी कारो को सस्ती खरीदकर मामूली कीमत में ढांचे इत्यादि की उपलब्धता।
(स) कारो को फाइनेंस के माध्यम से बेचने पर ऋृण ब्याज का फायदा।
कुल मिलाकर उपरोक्त सरकारी योजना प्रदूषण मिटाने को नही है बल्कि प्रदूषण बढ़ाने की है। जिससे न केवल धुये का प्रदूषण बढ़ेगा साथ ही भ्रष्टाचार का प्रदूषण भी बढ़ेगा। हम लोग लम्बे समय से प्रदूषण निंयत्रण के लिये निम्न सुझाव सरकार को दे रहे है।
1.एक परिवार अधिकतम एक कार का कानून बने, इससे सामूहिक यातायात की भावना बनेगी और समाज इसका अभ्यस्त होगा। समाज का समय प्रबन्धन भी इससे मजबूत होगा। क्योकि कई लोगो के समय और सुविधा को एक साथ समायोजित करना होगा। अगर यह कानून बन जाये तो दिल्ली में अकेले लगभग 80 लाख कारे हटेगी और इनका धुआं कम होने से प्रदूषण का स्तर काफी कम हो जायेगा। इस योजना से औसतन 8 करोड़ लीटर डीजल पेट्रोल की खपत कम हो जायेगी, याने औसतन 500 करोड़ रुपये रोज 15 हजार करोड़ रुपया प्रतिमाह और लगभग 175 लाख करोड़ रुपये प्रतिवर्ष की बचत अकेले दिल्ली से हो जायेगी। अगर यह योजना पूरे देश में लागू कर दी जाये तो एक मोटे अनुमान के साथ 8 से 10 करोड़ कारे सड़क से हटेगी और देश का इससे लगभग 20 लाख करोड़ रुपया बचेगा। कच्चे तेल का आयात कम हो जायेगा। दरअसल सरकार की मूल दृष्टि ही त्रृटि पूर्ण है वे धुआं कम करने के नाम पर गाड़ियां बढ़ाना चाहते है और परिणाम स्वरुप डीजल-पेट्रोल की खपत बढ़ाना चाहते है। जब कि हम प्रदूषण कम करने के लिये डीजल-पेट्रोल की खपत ही कम करना चाहते है।
2.लोग आम तौर पर गाडियां खरीदते है और सड़को पर खड़ी कर देते है उपरोक्त तरीके से गाड़ियो की संख्या कम होने से सड़को की भीड़ कम होगी। यातायात के दवाब व जाम से मुक्ति मिलेगी।
3.हमने यह भी सुझाव दिया था कि सरकार यह भी कानून बनाये कि केवल वे ही लोग कार खरीद सके जिनके पास निजी पार्किंग की व्यवस्था हो और नगर पालिका, नगर निगम या किसी अधिकृत ऐजन्सी के प्रमाणपत्र के बाद ही कार कम्पनियां ग्राहक को कार बेच सके। जिनके पास अभी पार्किग नही है उनको 3 से 6 माह की मोहलत दे और पहले 3 माह के लिये 300 रुपये प्रतिमाह फिर अगले तिमाही के लिये 600 रुपये प्रतिमाह और उसके बाद 6 माह के लिये क्रमशः 6 हजार और 12 हजार प्रतिमाह का पार्किग शुल्क ले। अगर कोई गाड़ी मालिक यह जमा न करे तो उनकी गाड़ियां निर्धारित अवधि के बाद जब्त कर ली जाये। इस तरीके से भी कारो की संख्या घटेगी और सरकार की या अर्धसरकारी संस्थाओ की आय में भारी वृद्वि होगी। सड़के खाली हो जायेगी फुटपाथ पैदल चलने लायक बन जायेगा।
4.जो सड़के बनायी जाये उनके साथ फुटपाथ और साइकिल ट्रैकक का बनाना अनिवार्य हो। अगर यह व्यवस्था हो जाये तो एक तरफ कारे हटेगी और दूसरी तरफ लोग पैदल या साइकिल से चलना शुरु करेगे, इससे उनका मार्ग भी सुरक्षित रहेगा। अभी तो महानगरो को तो छोड़ो नगरो तक में और छोटे कस्बो में पैदल और साइकिल पर चलना जान का जोखिम बन गया है इन फुटपाथ व साइकिल ट्रेक के ऊपर दुकाने बनायी जा सकती है जिनसे हजारो लाखो लोगो को रोजगार मिल सकेगा। इस पद्वति से देशी साइकिल उद्योग को व्यापार मिलेगा और अगर जिला और तहसील स्तर पर साइकिल निर्माण कम्पनियां लगायी जाये तो समूचे देश में आसानी से 50 लाख लोगो को रोजगार मिल सकेगा।
5.उपरोक्त योजना से नई-नई सड़के और ओवर ब्रिज बनाने की आवश्यकता कम होगी और यह राशि अन्य बुनियादी विकास के कार्यो पर खर्च हो सकेगी।
6.अभी सम्पन्न लोगो में कारो को खरीदने की होड़ है उच्च मध्यवर्गीय कर्मचारी तबका इन गाड़ियो की खरीद के लिये अपने बेटे बेटियो के शौंक को पूरा करने के लिये भ्रष्टाचार जैसे कृत्य करता है इस योजना से कुछ प्रतिशत भ्रष्टाचार भी कम होगा।
7.पराली जलाना फिलहाल पंजाब हरियाणा के किसानो की लाचारी भी है, क्योकि खेत में उन्हे अगली फसल बोने के लिये पानी देना है और जमीन तैयार कर बोनी करना है चूंकि अब गांव में श्रमिक या तो मिलते नही है या फिर श्रमिको द्वारा काम करने से खेती ज्यादा मंहगी होती है इसलिये किसान लाचार होकर मशीनो का इस्तेमाल कर रहे है। इसके आलावा उसके पास कोई विकल्प नही है। पराली की समस्या का हल पराली को अन्य उपयोग में लाने की योजना सरकार को बनाना चाहिये। मसलन खाद, कागज, सीमेन्ट या कोई अन्य योजना, तभी पराली का स्पष्ट हल निकलेगा। हांलाकि मै यह भी स्पष्ट कर दूं कि दिल्ली के प्रदूषण के लिये अकेले पराली और किसानो को दोष देना प्रायोजित जैसा लगता है पंजाब और हरियाणा में हारवेस्टर का इस्तेमाल पिछले 2-3 दशको से हो रहा है और पराली जलायी जा रही है परन्तु दिल्ली का प्रदूषण खतरनाक सीमा से लांघने की स्थितियां पिछले 4-5 वर्ष में ही ज्यादा बनी है। वैसे भी पराली का धुआं साल में मुश्किल से सप्ताह भर का होता है परन्तु कारो का धुआं 365 दिनो का।
मैं, माननीय सर्वोच्च न्यायालय, ग्रीन ट्रिब्यूनल और भारत सरकार तीनो से अपील करुगां कि बीमारी की जड़ो को नष्ट करें न कि पत्तो को नष्ट करने पर पैसा बरबाद करे।
सम्प्रति- लेखक श्री रघु ठाकुर देश के जाने माने समाजवादी चिन्तक है।वह स्वं राममनोहर लोहिया के अनुयायी है और लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के संस्थापक भी है।