देश में पहली बार मालगाड़ी के डिब्बे एल्युमिनियम के बनाए गए हैं. इसका संचालन भी शुरू हो गया है. इसका उद्घाटन पिछले दिनों 16 अक्टूबर को रेल, संचार व इलेक्ट्रॉनिक्स,सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव (Ashwini vaishnav) ने किया. रेल मंत्री ने भुवनेश्वर रेलवे स्टेशन से हरी झंडी दिखा कर एल्युमिनियम रैक को बिलासपुर के लिए रवाना किया था. भारतीय रेलवे ने आरडीएसओ (RDSO), बीईएससीओ (BESCO) और Hindalco की मदद से इस रैक को तैयार करवाया गया है. ये रैक मेक इन इंडिया के तहत बनाए गए हैं, जिसका लाभ भारतीय रेलवे को आर्थिक रूप से होगा
भारत में पहली बार एलमुनियम के बने रैक
जानकारी के मुताबिक रेलवे ने माल लदान के लिए एल्युमिनियम के रैक तैयार किये हैं. इस नए एल्युमिनियम रैक के सुपरस्ट्रक्चर पर कोई वेल्डिंग नहीं है. ये पूरी तरह लॉकबोल्टेड हैं. इस एल्युमिनियन रैक की खासियत ये है कि ये सामान्य स्टील रैक से हल्के हैं और 180 टन अतिरिक्त भार उठा सकते हैं. इसके कम किए गए टीयर वेट से कार्बन फुटप्रिंट कम हो जाएगा. इस रैक को इस तरह की तकनीक से बनाया गया है कि इसका वजन बहुत कम है. एल्युमिनियम का होने की वजह से वजन कम होगा ही साथ ही इसकी मजबूती भी स्टील के रैक के बराबर होगी.
14,500 टन कम कार्बन उत्सर्जन
इसमें खाली दिशा में ईंधन की कम खपत और भरी हुई स्थिति में माल का अधिक परिवहन होगा. समान दूरी और समान भार क्षमता के लिए यह सामान्य और स्टील रैक की तुलना में इसमें कम ईंधन की खपत होगी. इससे ईंधन की भी बचत करेगा और इससे कार्बन उत्सर्जन भी कम होगा. एक एल्युमिनियम रैक अपने सेवा काल में करीब 14,500 टन कम कार्बन उत्सर्जन करेगा. यह रैक ग्रीन और कुशलतम रेलवे की अवधारणा को पूरा करेगा.
स्टील के रैक की उम्र 10 साल होगी
नए निर्मित एल्युमिनियम रैक की रीसेल वैल्यू 80% है. हालांकि, इसके निर्माण में एल्युमिनियम रैक सामान्य स्टील रैक से 35% महंगे हैं, क्योंकि इसका पूरा सुपर स्ट्रक्चर एल्युमिनियम का है, लेकिन एल्युमिनियम होने की वजह से इसका रीसेल वेल्यू 80% होगा. इसकी उम्र भी सामान्य स्टील रैक से 10 साल ज्यादा है और इसका मेंटेनेन्स कॉस्ट भी कम है, क्योंकि इसमें जंग और घर्षण के प्रति अधिक सहने की क्षमता है. एल्युमिनियम फ्रेट रैक बड़े पैमाने पर आधुनिकीकरण अभियान में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है.
स्टील की बजाए एल्युमिनियम का होने पर आसानी से और तेजी से माल ढुलाई किया जा सकेगा. कम खर्च में अधिक कमाई देगा और ज्यादा माल ढुलाई किया जा सकेगा. इसके अलावा एल्युमिनियम पर स्विच करने से कार्बन फुटप्रिंट में काफी कमी आएगी. वहीं एक अनुमान के मुताबिक, केंद्र सरकार द्वारा शुरू किए जाने वाले 2 लाख रेलवे वैगनों में से पांच फीसदी अगर एल्युमिनियम के हैं तो एक साल में लगभग 1.5 करोड़ टन कार्बन उत्सर्जन तो बचाया जा सकता है.
180 टन से ज्यादा माल परिवहन करने की क्षमता
बिलासपुर के CPRO साकेत रंजन ने बताया कि नए एल्युमिनियम रैक को कोयला परिवहन को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है. यह डिब्बे विशेष रूप से ही माल ढुलाई के लिए डिजाइन किए गए हैं. इसमें स्वचालित स्लाइडिंग प्लग दरवाजे लगे हुए हैं. आसान संचालन के लिए लॉकिंग व्यवस्था के साथ ही एक रोलर क्लोर सिस्टम से भी लैस हैं. इस रैक का कोयले के माल लदान के लिए कोरबा क्लस्टर कोल साइडिंग के साथ ही अन्य कोल साइडिंग लदान के लिए उपयोग किया जाएगा. स्टील के बने परंपरागत रैक निकेल और कैडमियम की बहुत अधिक खपत करता है जो आयात से आता है और इससे देश की निर्भरता विदेशों पर बढ़ती है. एल्युमीनियम वैगनों के उपयोग से कम आयात होगा और स्थानीय एल्युमीनियम उद्योग के लिए बेहतर अवसर साबित होगा.
बिलासपुर से माल लेकर दौड़ेगी एलमुनियम रैक
इससे देश की विदेशों पर निर्भरता कम होगी. भारत में पहली बार बनी इस नई तकनीक की एल्यूमीनियम निर्मित रैक का मेंटेनेंस और उपयोग बिलासपुर मंडल में किया जाएगा. इसकी सबसे बड़ी और खास बात यह है कि यह सामान्य स्टील रैक से 180 टन ज्यादा माल परिवहन कर सकता है. इससे परिवहन में ज्यादा माल परिवहन किया जा सकेगा. जानकारी के मुताबिक अगले कुछ दिनों में यह एलमुनियम की मालगाड़ी बिलासपुर जोन से जल्द ही माल लोडिंग करके पहली बार पटरी पर दौड़ेगी. इसके लिए बिलासपुर रेलवे प्रशासन तैयारियों में जुट गया है. कुछ टेस्टिंग के बाद इस एलमुनियम की मालगाड़ी में माल लोड किया जाएगा. उसके बाद उसके निर्धारित स्थान पर पहली बार यह मालगाड़ी पटरी पर दौड़ेगी.