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राजनीति में सिंहासनों के आसपास वंशवाद की नागफनी – उमेश त्रिवेदी

उमेश त्रिवेदी

कहना मुश्किल है कि राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के मामले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह तंज कितना असरकारी होगा कि कांग्रेस को औरंगजेब राज मुबारक हो, हमारे लिए देश बड़ा है, लेकिन उनके इस तंज ने राजनीति मे परिवारवाद की कहानियों के उन पन्नो को भी खोल दिया है, जो भारतीय जनता पार्टी सहित लगभग सभी दलों के परिवादवार के दलदल में खड़ा दिखाता है। भाजपा भी इस मामले में ज्यादा पीछे नही है। यहां मोदी संत कबीर की इस सीख को अनदेखा करते नजर आते हैं कि जब हम सामने वाले आरोपो की उंगली उठाते हैं तो तीन उंगलिया हमारी ओर भी इशारा करती दीखती है। प्रधानमंत्री मोदी राहुल गांधी के नाम पर जिस परिवारवाद की ओर इशारा करते हैं, वो सही अर्थो में सभी दलो में उसी तादात में मौजूद है। प्रधानमंत्री मोदी अपनी भाषण-शैली से यह प्रभाव छोड़ना चाहते हैं कि भाजपा  परिवारवाद के रोगाणुओं से पूरी तरह मुक्त है, लेकिन तथ्यो का खुलासा उनकी प्रभावशीलता को फीका करता चलता है।

पिछले दिनो राहुल गांधी नें अपने अमेरिका-प्रवास के दौरान जब यह कहा था कि देश में वंशवादी राजनीति एक चलन है, अपवाद नही है, तो भाजपा ने सोशल-मीडिया पर उनकी खूब खिल्ली उड़ाई थी। लेकिन राहुल गांधी का यह कथन एक कठोर सच्चाई को सामने रखता है। न्यूयार्क यूनिवर्सिटी की रिसर्च-स्कॉलर कंचन चंद्रा के एक अध्ययन के मुताबिक मौजूदा लोकसभा के 21 प्रतिशत सांसद किसी न किसी राजवंश से संबंधित हैं।याने मौजूदा लोकसभा के हर पांचवा सदस्य किसी राजनीतिक-परिवार का उत्तराधिकारी है। 2009 में राजनीतिक परिवारो सेजुड़े सांसदो की संख्या 29 प्रतिशत थी। वंशवाद के ये हालात सिर्फ लोकसभा तक सीमित नहीं है। इनकी जड़ें विधानसभाओ तक फैली है। लोकसभा मे परिवार आधारित राजनीतिक दलो की संख्या 23 है और ऐसे राजनीतिक दलो के सांसदो की भागीदारी 64 प्रतिशत हो जाती है।

देश के प्रधानमंत्री की हैसियत से जनता के सामने गुमराह करने वाले तथ्यों की यह परोसकारी मोदी को पसंद करने वाले लोगों को चुभती है। प्रधानमंत्री गांधी-नेहरू परिवार की जिस राजनीतिक-डॉयनेस्टी को अभिशाप की तरह प्रस्तुत करते हैं, उसी डॉयनेस्टी के दो सितारे मेनका गांधी उनकी केबीनेट में मंत्री हैं और उनके बेटे वरूण गांधी लोकसभा सांसद हैं। विरोधाभासों की इस कहानी के सिरे बहुआयामी हैं। केन्द्रीय विधिमंत्री रविशंकर प्रसाद के पिता ठाकुर प्रसाद बिहार में संयुक्त विधायक दल की सरकार में मंत्री थे। केन्द्रीय मंत्री पीयुष गोयल के पिता वेद प्रकाश गोयल अटलजी की सरकार में मंत्री थे। राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह के बेटे रणवीरसिंह सांसद हैं और नाती  संदीप सिंह विधायक हैं। केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह भाजपा विधायक हैं तो राजमाता विजयाराजे सिंधिया की बेटियां वसुंधरा राजे दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं और य़शोधरा राजे मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री हैं। बिहार के रामविलास पासवान और उनके बेटे चिराग पासवान मोदी के साथ ही राजनीति में काम कर रहे हैं। भाजपा में परिवार वाद की यह श्रंखला हर उस राज्य में फैली है, जंहा भाजपा की सरकारे  कार्यरत हैं। सवाल सिर्फ कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करने से जुड़ा है। भाजपा या कांग्रेस के अलावा राष्ट्रीय जनता दल ( लालू यादव) समाजवादी पार्टी (मुलायमसिंह यादव), नेशनल कांफ्रेंस ( अब्दुल्ला परिवार), डीएमके ( करूणानिधि परिवार), बहुजन समाजवादी पार्टी( मायावती परिवार), लोकदल(चौटाला परिवार), शिवसेना (ठाकरे-परिवार) जैसे अनेक नाम इस बात का उदाहरण हैं कि सिर्फ कार्पोरेट-जगत में ही उत्तराधिकार की परम्परा नही हैं, बल्कि भारतीय राजनीति में भी मुनाफे का यह धंधा अपनी पूरी कूबत के साथ मौजूद है। दिलचस्प यह है कि कांग्रेस की उम्र सवासौ साल है जबकि भाजपा मात्र सैंतीस साल पुरानी पार्टी है। दोनो राजनीतिक दलो में परिवारों की राजनीतिक-सक्रियता का ब्यौरा कहता है कि राजनीति में यह वंशवाद सत्तावाद का दंश है, जो सिंहासनो के आसपास नागफनी की तरह घेर कर बैठ गया है…।

 

सम्प्रति– लेखक श्री उमेश त्रिवेदी भोपाल एनं इन्दौर से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है। यह आलेख सुबह सवेरे के आज 06 दिसम्बर के अंक में प्रकाशित हुआ है।वरिष्ठ पत्रकार श्री त्रिवेदी दैनिक नई दुनिया के समूह सम्पादक भी रह चुके है।