वैसे तो भारत में भी लोगों को हैरान करने वाली घटनाएं कुछ कम नहीं घट रही हैं, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और उत्तरी कोरिया के शासक किम जोंग के बीच जारी ‘बड़े’ परमाणु बम और ‘छोटे’ परमाणु बम की धमकियों ने चर्चाओं का रुख अपनी ओर मोड़ लिया है। ट्रम्प और किमजोंग के बीच ‘छोटे-बड़े’ न्यूक्लियर-बटन की यह दावेदारी कूटनीतिक-प्रहसन के बाने में भ्रमित कर रही है कि इसके अंजामों की गंभीरता का आकलन कैसे किया जाए? पता नहीं, मनोचिकित्सकों ने कभी यह अध्ययन किया है या नहीं किया कि पागलों के बीच दुश्मनी के मायने क्या होते हैं ? अथवा जब एक ‘पागल’ दूसरे ‘पागल’ को डराने के लिए धमकी देता है तो कौन सा ‘पागल’ डरता है और कौन सा ‘पागल’ नहीं डरता है? कमोबेश यह स्थिति ट्रम्प और किम जोंग के बीच बनी हुई है। दुनिया यह समझने में असमर्थ है कि कौन किसको डरा रहा है और कौन किससे डर रहा है ?
ट्रम्प व किमजोंग के बीच कूटनीतिक-पागलपन की नई कहानी ने नए साल के पहले दिन आकार लिया है। किम जोंग ने पहली जनवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को मुंह चिढ़ाते हुए कहा था कि ”पलक झपकते ही अमेरिका को स्वाहा करने वाले परमाणु बमों का बटन उनकी टेबल पर ही लगा है।” ट्रम्प को किम जोंग की यह बात नागवार लगी तो उन्होंने तुरंत-फुरंत माइक्रो-ब्लॉगिंग वेबसाइट ट्वीटर पर ही चेतावनी दे डाली कि उनके न्युक्लियर बटन के परमाणु बमों की ताकत किम जोंग के बमों से कई गुना ज्यादा है। किम जोंग ने नए साल के संबोधन में अपनी जनता से कहा था कि उनका न्युक्लियर-बटन मेज पर हमेशा तैयार रहता है। इस पर ट्रम्प ने जवाब दिया था कि ”क्या उनके (किम जोंग) प्रशासन में कोई उनको यह जानकारी देगा कि ‘मेरे पास भी न्यूक्लियर बटन है, लेकिन वह कहीं ज्यादा बड़ा और उनके बटन के मुकाबले ज्यादा शक्तिशाली है? और हां मेरा बटन चलता भी है।”
ट्रम्प और किम जोंग के बीच परमाणु-धमकियों का सिलसिला लंबे समय से जारी है।धमकियों का अंजाम क्या होगा, कहना मुश्किल है, लेकिन दोनों राष्ट्राध्यक्षों की बॉडी-लैंग्वेज उनकी कूटनीतिक-नासमझी और सनकी फितरतों को बखूबी बयां करती है। ट्रम्प ऊलजलूल बयानों को लेकर हमेशा विरोधियों के निशाने पर रहे हैं। पिछले दिनों अमेरिका के 27 मनोचिकित्सकों और मनोवैज्ञानिकों ने ट्रम्प के बयानों और फैसलों का लिटमस-टेस्ट किया था। मनो-विशेषज्ञों ने अपनी रिपोर्ट में ट्रम्प के तीन नकारात्मक पहलुओं का खुलासा किया है। इसके मुताबिक ट्रम्प ‘सोशियोपैथ’ हैं याने उनकी सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि उन्हें अपनी सामाजिक जिम्मेदारी का एहसास नहीं और उनका यथार्थ-बोध नगण्य है। दूसरा वो आत्म-मुग्धता का शिकार हैं और तीसरा वो ‘फैंटेसीलैण्ड’ में रहने वाले व्यक्ति हैं। अमेरिकी मनोवैज्ञानिक फिलिप जोंबार्डो के निष्कर्ष उन खतरों की ओर इशारा करते हैं जिनको लेकर विश्व-समुदाय अक्सर चिंतित रहता है। फिलिप का कहना है कि ट्रम्प दुनिया के लिए सबसे खतरनाक हैं। वो अपनी व्यक्तिगत हानि से या व्यक्तिगत गुस्से के कारण किसी भी राष्ट्र पर मिसाइल दाग सकते हैं। अमेरिका में ट्रम्प पर होने वाले इन शोधों के चलते ट्रम्प को सनकी और निरंकुश नेता माना जाने लगा है।
कूटनीतिक-दुनिया जानती है कि अमेरिकी और उत्तरी कोरिया, दोनों के शस्त्रागारों में परमाणु बमों का जखीरा मौजूद है और विश्व की लीडरशिप यह भी समझती है कि छोटे और बड़े परमाणु बमों की तबाही में मौत के ‘छोटे-बड़े’ आकार से ज्यादा खतरनाक उसका इस्तेमाल है। दुनिया हर हाल में इससे बचना चाहती है, फिर भी ये दोनों नेता अपने गलों में परमाणु बमों की तख्तियां टांगे एक दूसरे पर गुर्राते रहते हैं। किम जोंग दुनिया में सनकी और क्रूर तानाशाह के रूप में कुख्यात हैं, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति के तेवरों में सनकीपन की खबरों के साथ ही उनकी तुनक-मिजाजी भी कूटनीतिक विश्व के लिए कम चिंता का विषय नहीं है। इसकी बानगी ट्रम्प के उस निर्णय में नजर आती है, जिसके तहत उन्होंने दक्षिणी कोरिया और उत्तरी कोरिया के बीच 9 जनवरी को प्रस्तावित उच्चस्तरीय वार्ता को खारिज कर दिया है। किम जोंग की सनक, क्रूरता और तानाशाही के किस्से तो धारावाहिक रूप से सुनने को मिलते रहते हैं, लेकिन ट्रम्प की यह बानगी भी दुनिया को परेशान करने वाली है।
सम्प्रति – लेखक श्री उमेश त्रिवेदी भोपाल एनं इन्दौर से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है। यह आलेख सुबह सवेरे के 04 जनवरी के अंक में प्रकाशित हुआ है।वरिष्ठ पत्रकार श्री त्रिवेदी दैनिक नई दुनिया के समूह सम्पादक भी रह चुके है।