रायपुर 17जनवरी। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग से छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखण्ड, बिहार एवं पश्चिम बंगाल की सरकारों ने खरीफ फसलों का समर्थन मूल्य बढ़ाने की मांग की है।
कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के अध्यक्ष प्रो. विजय पाल शर्मा की अध्यक्षता में आज यहां हुई पूर्व क्षेत्र के राज्यों की क्षेत्रीय बैठक में छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखण्ड, बिहार एवं पश्चिम बंगाल सरकार के कृषि तथा खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभागों के वरिष्ठ अधिकारी, कृषि विश्वविद्यालयों के अधिकारी और वैज्ञानिक तथा किसान संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हुए।सभी राज्यों के प्रतिनिधियों ने फसल उत्पादन लागत तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारण के संबंध में विचार व्यक्त करते हुए खरीफ मौसम 2018-19 में प्रमुख फसलों के समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी किये जाने की मांग रखी।
कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के अध्यक्ष प्रो.शर्मा ने बैठक में कहा कि भारत सरकार द्वारा किसानों को उनकी फसल की उचित कीमत दिलाने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया जाता है ताकि इससे कम कीमत में कृषि उत्पादों की खरीदी ना हो। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षो से फसलों की उत्पादन लागत बढ़ रही है और उत्पादकता में उस अनुपात में वृद्धि नहीं हो रही है जिसके कारण किसानों द्वारा समर्थन मूल्य बढ़ाने की मांग की जा रही है।
उन्होंने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करते समय उत्पादन लागत के साथ-साथ कई अन्य कारकों पर भी ध्यान देना पड़ता है जिनमें मांग एवं आपूर्ति, अंतर्देशीय तथा अंतर्राष्ट्रीय बाजार में फसल की कीमत, फसल उत्पादन में विभिन्न फसलों का संतुलन और संसाधनों का प्रभावी उपयोग आदि शामिल हैं। उन्होंने कहा कि खेती को लाभकारी बनाने के लिए उत्पादकता बढ़ानी होगी, उत्पादन लागत में कमी लानी होगी और उत्पादन के पश्चात होने वाले नुकसान को कम करना होगा।
छत्तीसगढ़ के प्रतिनिधि मण्डल ने बैठक में धान का समर्थन मूल्य 1550 रूपये से बढ़ाकर 2250 रूपये, मक्के का समर्थन मूल्य 1425 रूपये से बढ़ाकर 1550 रूपये, अरहर का समर्थन मूल्य 5450 रूपये से बढ़ाकर 6700 रूपये, उड़द का 5400 रूपये से बढ़ाकर 6700 रूपये, मूंगफली का समर्थन मूल्य 4450 रूपये से बढ़ाकर 5700 रूपये और सोयाबीन का समर्थन मूल्य 3050 रूपये से बढ़ाकर 3400 रूपये करने का प्रस्ताव रखा। अन्य राज्यों के प्रतिनिधि मण्डल ने भी न्यूनतम समर्थन मूल्य में इजाफा किये जाने की मांग की। बैठक में शामिल किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करते समय किसानो के श्रम एवं समय के मूल्य का न्यायसंगत मूल्यांकन किये जाने का अनुरोध किया।