उ.प्र. में समाजवादी पार्टी और भाजपा का राजनैतिक टकराव स्वभाविक है। चूंकि भाजपा के बाद दूसरे नंबर की पार्टी समाजवादी पार्टी है, जो कभी सत्ता परिवर्तन से सत्ता हासिल कर सकती है। और इसी कारण मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी जी व नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव के बीच में भी प्रतिद्वंदिता स्वभाविक है। परन्तु उत्तर प्रदेश में पनप रहे, अहम के टकराव और परस्पर दोषारोपण का गिरता हुआ स्तर चिंताजनक है। कुछ दिनों पूर्व उ.प्र.विधानसभा में श्री अखिलेश यादव ने चर्चा में भाग लेते हुए, इलाहाबाद कांड को लेकर मुख्यमंत्री योगी पर आरोप लगाया और कानून व्यवस्था की गिरावट तथा इलाहाबाद कांड के लिये श्री योगी के लियें जिम्मेदार ठहराया। मैं मानता हूं कि कानून व्यवस्था की समस्या सर्वदेशिक हो रही है। केवल उ.प्र. में ही नहीं बल्कि पूरे देश में चिंताजनक स्थिति है। और इसका मुख्य कारण राजनीति और अपराधियों का गठजोड़ है। इस अपराध से समाजवादी पार्टी भी मुक्त नहीं है। और अनेकों अपराधी व माफिया उनके संरक्षण में पले बड़े है। हालांकि यह भी सच है कि अनेकों अपराधी वर्तमान सरकार के साये में सुरक्षित है। फर्क केवल हिन्दू और मुसलमान का है।
श्री अखिलेश यादव के आरोप से श्री योगी जी विचलित हुए और अपने उत्तर में वे भाषा और लक्ष्य दोनों का संशय खो बैठे। जिस कटु भाषा में उन्होंने उत्तर दिया वह तथ्यपरक हो सकता है, परन्तु भाषा का स्वर लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता।
आक्रोश में उत्तर देते श्री योगी जी ने भटककर समाजवादी विचारधारा पर ही हमला बोल दिया। उन्होंने कहा की:-
- समाजवाद पाखंड है।
- समाजवाद बहरूपिया ब्रांड है।
- समाजवादी के कई रूप है। लोकतांत्रिक समाजवाद – प्रगतिशील समाजवाद, प्रजातांत्रिक समाजवाद, पारिवारिक समाजवादी,
- उन्होंने प्रश्न पूछा की क्या यह सब देश का भला कर सकते है यह केवल मृगतृष्णा ही पैदा कर सकते हैं।
- उन्होंने यह भी कहा उ.प्र. राम राज्य की धरती है और देश राम राज से चलेगा।
श्री योगी जी की पृष्ठभूमि एक मठ के मुखिया और हिन्दूवादी संगठन हिन्दू वाहिनी की है। इसलिये समाजवाद के बारे में उन्हें जानकारी नहीं होना स्वभाविक है। और उनकी अज्ञानता क्षम्य है। पर उनकी जानकारी वृद्धि के लिये कुछ तथ्य देना जरूरी है। समाजवाद लोकतांत्रिक या प्रजातांत्रिक तो है ही साथ ही लोकतंत्र एक ऐसी शासन की प्रणाली है, जिसमें जन प्रतिनिधि और सरकारे पेट से पैदा नहीं होतीं बल्कि जनमत और वोट से पैदा होती हैं। क्योंकि श्री योगी जी गोरखनाथ के उत्तराधिकारी है और धार्मिक पीठें आमतौर पर लोकतांत्रिक नहीं होती। पीठाधीश्वर निर्वाचित नहीं होते बल्कि नामजद हेाते हैं। इसलिये योगी जी का विश्वास लोकतंत्र में कम होना भी स्वभाविक है। समाजवाद समता की विचारधारा है, और लोकतंत्र प्रणाली के साथ-साथ एक जीवन शैली भी है। राम राज्य में एक सामान्य व्यक्ति ने सीताजी पर आक्षेप किया था और श्री राम नें आक्षेपकर्ता को न धमकाया न उत्तर दिया न कोई दण्ड दिया बल्कि उसके आक्षेप का हल एक ऐसे तरीके से किया जा आम स्वीकार्य नहीं था न हो सकता है। तथा जिसे एक प्रकार से नारी के विरूद्ध पुरूषोचित ज्यादती कही जा सकती है। वरना अग्नि परीक्षा में सफल होने के बाद भी (यद्यपि वह भी उचित नहीं कही जा सकती) उन्हें वन में छोड़ने का निर्णय कोई भी उचित नहीं कहेगा। परन्तु भगवान राम ने अपने निर्णय से (भले ही वह अतिरेकी रहा हो) एक लोकतांत्रिक मर्यादा जरूर खींची थी कि सत्ता को आलोचना सुनना चाहिए। चाहे वह गलत भी हो पर उसे दण्डित और लांछित नहीं किया जाना चाहिये। परन्तु आक्रोशित योगी जी ने स्वतः ही भगवान राम की निर्धारित मर्यादा रेखा को तोड़ दिया।
स्व. मुलायम सिंह या लालू प्रसाद यादव ने जो परिवारवाद चलाया है। वह समाजवाद नहीं है। बल्कि वह तो एक प्रकार की विकृति है। हालाकि परिवारवाद से श्री योगी जी भी कुछ कुछ ग्रसित है। जिस संस्था के सहयोग से वे मुख्यमंत्री बने है, वह भी एक वैचारिक परिवारवादी संस्था है। और इसके अलावा उन्हें अवश्य याद होगा कि जब वे पहली बार उ.प्र. के मुख्यमंत्री बने थे तब वे श्रीमती अर्पणा यादव (स्व. मुलायम सिंह यादव की बहू) से मिले थे। कहा जाता है कि वे उनके पैतृक गोत्र विष्ट गोत्र की ठाकुर है। और योगी जी की गोतिया बहिन जैसी हैं। इसी आधार पर उन्होंने यह पक्षपात भी किया था कि श्रीमती अर्पणा यादव की गौशाला के लिये उ.प्र. में सर्वाधिक करोड़ों रूपये का अनुदान दिया था।
योगी जी विकृतियां तो सभी विचारधारा या संस्थाओं में आयी है, और पैदा हो सकती है। आज देश में कई प्रकार के राष्ट्रवाद है। मसलन धर्म का राष्ट्रवाद है, जातियों का राष्ट्रवाद है, हिंसा का राष्ट्रवाद है और गाँधी और लोहिया का राष्ट्रवाद भी है। अब इस आधार पर अगर कुछ लोग संपूर्ण राष्ट्रवाद को हिंसा या जाति का राष्ट्रवाद कहे और नकारने का प्रयास करें तो क्या वह वैसी ही भूल नहीं होगी, जैसी की आज समाजवाद के बारे में योगी जी कर रहे है। योगी जी देश में योगीयों के कई स्वरूप है। एक भगवान कृष्ण के गीता में वर्णित योगी है, जो निष्काम कर्म करते है। दूसरे महर्षि महेश योगी के अनुयायी व बाल योगी के अनुयायी भी है। इन दिनों कुछ सत्ता पोषित योगी भी उभार पर हैं। यदि सत्ता लोभी योगीयों के कारण हम सभी योगियों को नकारंे तो यह क्या उचित होगा?
योगी जी आज देश में कई प्रकार के संत है श्री आसाराम बापू, श्रीराम पाल – श्री राम रहीम – स्वामी चिन्मयानन्द आदि। इनके कारण क्या हम संत रविदास को संत गोडगे को या कबीर को या अन्य संतों को जो दुनिया में रहकर भी भौतिक इच्छाओं को त्याग कर एक उन्नत व मानव समता के प्रतीक के रूप में आदर्श उदाहरण है को नकार सकते हैं ? क्या इन्हें नकारना उचित होगा? योगी जी श्रृंगेरी मठ के उप मठाधीश श्री शंकराचार्य श्री जयेन्द्र सरस्वती पर हत्या जैसे आरोप लगे और उन्हें जेल में रहना पड़ा तो क्या देश के सभी शंकराचार्यों को इस कारण नकारना उचित होगा?
भगवान राम की विचारधारा और आदर्श राज प्रणाली तो समाजवादी ही थी जिसमें कोई छोटा बड़ा नही था, श्रम का सम्मान था। क्या भगवान राम की आयोध्या में किसी भी पूंजीपति या अमीर लोगों का कोई जिक्र मिलता है। भगवान राम ने तो भरत के माध्यम से संदेश दिया था कि एक ऐसा राज्य होना चाहिये जहां कोई भी भूखा न सोता हो जहां कोई छोटा बड़ा न हो जहां कोई भेदभाव न हो जहां सभी शिक्षित हो, शिक्षकों का सम्मान हो कर्मचारियों को समुचित वेतन मिलता हो और जहां राजा राज्यकोष का धन अपने व अपने परिवार या खुद की सुरक्षा पर खर्च न करता हो। श्री राम जब वनवास पर गये थे तो संपत्तिा और सुरक्षा को छोड़कर केवल तीन ही लोग तो निकले थे। परन्तु मीडिया के अनुसार आपके प्रधानमंत्री जी अपनी सुरक्षित यात्रा के लिये अमेरिका से आठ हज़ार करोड़ के विशेष विमान खरीदते है। खुद आपकी सुरक्षा के लिये सैकड़ों पुलिस लगाई जाती है, बंदूकें होती है, क्या यही राम राज्य है?
दुनिया में 70 से अधिक रामायणें प्रचालित हैं। परंतु किसी भी रामायण में भगवान राम की विशेष सुरक्षा का उल्लेख नहीं मिलता। तो क्या यह माना जाये की कई प्रकार के राम राज्य है? एक मोदी-योगी का राम राज्य एक बिहार के पूर्व सी.एम. कर्पूरी ठाकुर का राम राज्य एक गांधी लोहिया की कल्पना का राम राज्य। एक धनपति शोषकों का राम राज्य? मेरे ख्याल ऐसे प्रकारों को बताना राम राज्य को बदनाम करना होगा। राम राज्य तो वही था, जिसे शासन प्रणाली को श्री राम ने अयोध्या में चलाया था। और राम राज्य के नाम पर हो रही विकृतियों को राम राज्य या राम राज्य को पाखण्ड नहीं कह सकते। योगी जी समाजवाद एक ही है, और वह है – ‘‘आर्थिक-सामाजिक राजनैतिक रंगीय लैगिक समानता और विकेन्द्रीकरण। समाजवाद में लोकतंत्र अंर्तनिहित है। लोकतंत्र के बगैर समाजवाद और समाजवाद के बिना लोकतंत्र संभव नहीं है। समाजवाद पाखण्ड नहीं है, बल्कि समाजवाद राम राज्य की आज के कालखण्ड में रूपांतरित परिकल्पना है। आशा है आप घोषित या अघोषित रूप से सहमत होंगे और भविष्य में अपने कथन को संशोधित करेंगे।
सम्प्रति- लेखक श्री रघु ठाकुर जाने माने समाजवादी चिन्तक और स्वं राम मनोहर लोहिया के अनुयायी हैं।श्री ठाकुर लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के भी संस्थापक अध्यक्ष हैं।